रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Wednesday, November 18, 2009

चक्के पे चक्का, चक्के पे गाडी....बच्चों के संग एक मस्ती भरी यात्रा पे चलिए



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 266

'ब्रह्मचारी' गीतकार शैलेन्द्र की अंतिम फ़िल्म थी। इस फ़िल्म के गीत "मैं गाऊँ तुम सो जाओ" के लिये उन्हे मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बच्चों पर केन्द्रित फ़िल्मों की फ़हरिस्त में १९६८ की इस फ़िल्म का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस फ़िल्म में कई कालजयी गीत हैं, और कुछ तो लोकप्रियता की कसौटी पर ऐसे खरे उतरे हैं कि आज भी अक्सर कहीं ना कहीं से "आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे" या "दिल के झरोखे में तुझको बिठा के" सुनाई दे जाता है। अनाथ बच्चों पर आधारित इस फ़िल्म में दो बच्चों वाले गीत थे, एक जिसका उल्लेख हमने शुरु में ही किया ("मैं गाऊँ तुम सो जाओ"), और दूसरा गीत था बड़ा ही मस्ती भरा "चक्के पे चक्का, चक्के पे गाड़ी, गाड़ी में निकली अपनी सवारी", जिसे रफ़ी साहब और बच्चों ने बड़े ही बच्चों वाले अंदाज़ में गाया था। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर है इसी गीत की बारी। इस गीत के बोल साफ़ साफ़ इसी बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि यह गीत किसी ख़ास मक़सद या सिचुएशन के लिए नहीं रखा जाना था। बस बच्चों की टोली निकली है मोटर गाड़ी की सैर पर। इस साधारण सिचुएशन के लिए एक गाना चाहिए था। शैलेन्द्र ने भी बहुत ही आम भाषा में गीत लिख दिया, लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि इस 'टाइम-पास' गीत ने भी वही कमाल कर दिखाया जो शैलेन्द्र के दूसरे सीरीयस गीत करते रहे हैं। यही है निशानी एक जीनीयस गीतकार की। आज भी इस गीत को सुनते हुए वही मज़ा आता है जो शम्मी कपूर और उन तमाम बच्चों को आया होगा शूटिंग् के दौरान! सर्वश्रेष्ठ गीतकार के अलावा 'ब्रह्मचारी' ने तमाम फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते, जैसे कि शम्मी कपूर (सर्वश्रेष्ठ अभिनेता), जी. पी. सिप्पी (सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म), शंकर जयकिशन (सर्वश्रेष्ठ संगीतकार), मोहम्मद रफ़ी (सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक - "दिल के झरोखे में"), और सचिन भौमिक (सर्वश्रेष्ठ कहानी)। बस‍ इस फ़िल्म के निर्देशक बप्पी सोनी पुरस्कार से वंचित रह गए क्योंकि उस साल सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला था रामानंद सागर को फ़िल्म 'आँखें' के लिए।

शम्मी कपूर के अलावा 'ब्रह्मचारी' के मुख्य कलाकार थे राजश्री, मुमताज़, प्राण, मोहन चोटी, असीत सेन, तथा बाल कलाकारों में प्रमुख नाम थे बेबी फ़रीदा, मास्टर शाहीद, मास्टर सचिन, महमूद जुनियर, बबी सकीना, मास्टर योनिन, बेबी मीना, बेबी फ़ाओज़िया, मास्टर अनिल, मास्टर विजय, मास्टर वसीम, मास्टर सर्जु और बबी गुड्डी। दोस्तों, क्योंकि आज का गीत शंकर जयकिशन का है और अभिनेता हैं शम्मी कपूर, और अभी हाल ही में शम्मी कपूर से एक मुलाक़ात विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में प्रसारित हुआ था जिसमें शम्मी साहब ने तमाम संगीतकारों से जुड़ी अपनी यादें बताई थी। तो क्यों ना आज शम्मी कपूर की बातें हो जाए जो उन्होने कहे थे शंकर जयकिशन के लिए उस मुलाक़ात में! "जयकिशन और मैं साथ में बड़े हुए। हम लोग हम-उम्र थे। शंकर जी भी थे थियटर में। मेरी पहली पिक्चर जिसमें शंकर जयकिशन ने संगीत दिया, वह थी 'उजाला'। बहुत अच्छी दोस्ती थी, और जैसा म्युज़िक मैने उनसे चाहा, हर बार वैसा मिलता रहा। आप यकीन कीजिएगा, मैं समझता हूँ कि शंकर जयकिशन ना ही केवल काबिल और होनहार, 'they are magicians'। आप उनसे कहिए कि मुझे इस तरह का गाना चाहिए, इस तरह का सिचुएशन है, और अब चाहिए, 'they will immediately make something and give it to you'। मैने ऐसा देखा है होते हुए। मेरे लिए भी हुआ है। मुझे बहुत जल्दी थी, और आउटडोर जा रहा था, कशमीर जा रहा था, या पैरिस जा रहा था, और मैं बाहर चला गया था, और मेरी ग़ैर हाज़िरी में गानें रिकार्ड हुए। सिलेक्शन्स हो चुका था 'ट्युन्स्' का, लेकिन रिकार्डिंग् के वक़्त मैं वहाँ नहीं था। आम तौर पर मेरी आदत थी कि 'I am present in the recordings', कि किस तरह से रफ़ी साहब ने कहाँ कहाँ किस तरह की हरकत लेनी है, जिसपे मैं जो सोचा हुआ है वो करूँगा, ये शंकर जयकिशन के साथ देखा कि जैसा आपने चाहा हो गया वैसे काम!" शम्मी जी ने उस मुलाक़ात में और भी कई बातें कहे शंकर जयकिशन के बारे में जिन्हे हम आगे चलकर आप के साथ बाँटेंगे, फ़िल्हाल वक़्त हो चला है गीत सुनने का, तो चलिए हम सब एक साथ निकल पड़ते हैं इस मस्ती भरे सैर पर!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस गीत में बच्चे किसी रूठे को मना रहे हैं.
२. फिल्म में मुख्य अभिनेत्री हैं आशा पारेख.
३. एक गायिका है कमल बारोट.

पिछली पहेली का परिणाम -

दिलीप जी डबल फिगर यानी १० अंकों पर आ चुके हैं अब आप, कोशिश कीजिये आप भी विजेता का ताज़ अवश्य पहन सकते हैं, हाँ आपकी जिज्ञासा का जवाब तो अवध जी ने दे ही दिया है. जी शरद जी आपने एकदम सहीफरमाया

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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5 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

अब तो बहुत सरल पहेलियाँ आ रहीं हैं फिर भी लोग हिस्सा नहीं ले रहे है । क्या आप लोग भी रूठ गए है ।

Anonymous का कहना है कि -

ya kren log hisa lene lgen

neelam का कहना है कि -

dadi amma ,dadi amma maan jaao

श्याम सखा 'श्याम' का कहना है कि -

हिस्सा तो लेलूं लेकिन फ़ेल होने का डर है इस उपक्रम में बेसुरा जो हूं।

श्याम सखा 'श्याम' का कहना है कि -

पुनश्च: सुनकर आनन्द जरूर लेता रहा हूं क्मेन्ट अब कर रहा हूं क्योंकि ब्लॉग पर यही मेहनताना या पुरस्कार है ना-पह्ले क्मेन्ट न करने का अफ़सोस है

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