रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Friday, November 27, 2009

धड़कने लगा दिल नज़र झुक गयी....नूतन की अदाकारी और गीता दत्त से स्वर, दुर्लभ संयोग



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 275

'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं पार्श्वगायिका गीता दत्त के गाए हुए कुछ सुरीले सुमधुर गीत जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। इन गीतों को चुनकर और इनके बारे में तमाम जानकारियाँ इकट्ठा कर हमें भेजा है पराग सांकला जी ने और उन्ही की कोशिश का यह नतीजा है कि गुज़रे ज़माने के ये अनमोल नग़में आप तक इस रूप में पहुँच रहे हैं। नरगिस, मीना कुमारी, कल्पना कार्तिक और मधुबाला के बाद आज बारी है अदाकारा नूतन की। नूतन भी हिंदी फ़िल्म जगत की एक नामचीन अदाकारा रहीं हैं जिनके अभिनय का लोहा हर किसी ने माना है। हल्के फुल्के फ़िल्में हों या फिर संजीदे और भावुक फ़िल्में, हर फ़िल्म में वो अपनी अमिट छाप छोड़ जाती थीं। उनके अभिनय से सजी तमाम फ़िल्में आज क्लासिक फ़िल्मों में जगह बना चुकी है। वो एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्होने ५ बार फ़िल्मफ़ेयर के तहत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता। नूतन मधुबाला, नरगिस या मीना कुमरी की तरह बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत या ग्लैमरस नहीं थीं, लेकिन उनकी सादगी के ही लोग दीवाने थे। उनकी ख़ूबसूरती उनके अंदर थी जो उनके स्वभाव और अभिनय में फूट पड़ती। नूतन अभिनेत्री शोभना समर्थ की ज्येष्ठ पुत्री थीं। उन्हे अपना पहला बड़ा ब्रेक मिला था १९५५ की फ़िल्म 'सीमा' में, जिसके लिए उन्हे फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला था। उसके तुरंत बाद देव आनंद के साथ 'पेयिंग् गेस्ट' जैसी हास्य फ़िल्म करके सब को हैरान कर दिया उन्होने। १९५९ में राज कपूर की फ़िल्म 'अनाड़ी' और बिमल रॉय की फ़िल्म 'सुजाता' में उन्हे ख़ूब सराहना मिली। उनके अभिनय से सजी कुछ उल्लेखनीय फ़िल्मों के नाम हैं - सीमा, सुजाता, बंदिनी, दिल ही तो है, पेयिंग् गेस्ट, अनाड़ी, नाम, मेरी जंग, आदि। युं तो नूतन अच्छा गाती भी थीं, फ़िल्म 'छबिली' में उन्होने गीत भी गाए थे। लेकिन क्योंकि सिलसिला जारी है गीता दत्त के गाए गीत सुनने का, तो आज नूतन पर फ़िल्माया हुआ जो गीत हम चुनकर लाए हैं वह है फ़िल्म 'हीर' का।

१९५४ में बनीं फ़िल्म 'हीर' के मुख्य कलाकार थे प्रदीप कुमार और नूतन। यह फ़िल्मिस्तान की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था हमीद बट ने। फ़िल्म में संगीत था अनिल बिस्वास का, जिनके संगीत में इस साल किशोर कुमार व माला सिंहा अभिनीत फ़िल्म 'पैसा ही पैसा' भी प्रदर्शित हुई थी। 'हीर' उन अल्पसंख्यक फ़िल्मों में से एक है जिनमें नूतन नायिका हों और गीता जी ने गीत गाए हों। कहा जाता है कि गुरु दत्त नहीं चाहते थे कि गीता जी इस फ़िल्म में गाए क्योंकि उन्हे अनिल दा पसंद नहीं थे। लेकिन गीता जी की ज़िद के आगे उन्हे झुकना पड़ा और इस तरह से अनिल दा ने इस फ़िल्म में कुछ यादगार गीत रचे गीता जी के लिए। गीता दत्त इस फ़िल्म में कुल ३ एकल और एक हेमन्त कुमार के साथ युगल गीत गाये। आज सुनिए उनकी एकल आवाज़ में "धड़कने लगा दिल नज़र झुक गईं"। युं तो गीता दत्त ने नूतन की चर्चित फ़िल्म 'सुजाता' में भी दो गीत गाये थे लेकिन उनमें से एक शशिकला पर ("बचपन के दिन भी क्या दिन थे") और दूसरा सुलोचना पर ("नन्ही कली सोने चली हवा धीरे आना") फ़िल्माया गया था। १९६० की फ़िल्म 'मंज़िल' में उन्होने नूतन के लिए "चुपके से मिले प्यासे प्यासे" गाया और 'छबिली' में उन्होने गाया "यारों किसी से ना कहना"। तो इन सब जानकारियों के बाद अब वक़्त हो चुका है आज का गीत सुनने का, तो सुनते हैं फ़िल्म 'हीर' का यह गीत जिसे लिखा है मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. जिस अभिनेत्री पर ये गीत फिल्माया गया है उनका असली नाम बेबी खुर्शीद था, पर फ़िल्मी नाम कुछ और...
२. संगीतकार हैं ओ पी नय्यर साहब.
३. मुखड़े में शब्द है -"झूम"..इस पहेली को बूझने के आपको मिलेंगें २ की बजाय ३ अंक. यानी कि एक अंक का बोनस...पराग जी इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकेंगें.

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी आप तो बहुत बढ़िया खेल रही हैं १५ अंकों तक पहुँचने में आपको लगे मात्र ५ दिन, बहुत बढ़िया, हम आपको बता दें कि हमारे कुछ दिग्गज जो जीत चुके हैं अब तक, उन्हें जवाब देने की मनाही है, यही कारण है कि आपको अकेलापन खल रहा है, याद रखिये ३०१ वें एपिसोड से नए सिरे से सबके अंक शुरू होंगें, तो आपके पास अब २५ ही सवाल हैं जिनसे आप ५० के आंकडे पर आ सकती हैं, ५० अंक होने पर ही आपको गेस्ट होस्टबनने का मौका मिलेगा....तो मैदान बिलकुल मत छोडिये...

नोट - ओल्ड इस गोल्ड का अगला एपिसोड आप ३० तारीख़ यानि सोमवार को सुन पायेंगें...तब तक के लिए इज़ाज़त.

खोज - पराग सांकला
आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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3 श्रोताओं का कहना है :

indu का कहना है कि -

thandi hawaa kali ghta aai gai jhumke

श्याम सखा 'श्याम' का कहना है कि -

ab aap dono ke bad hamari kahan himmt

AVADH का कहना है कि -

मेरी समझ से बेबी खुर्शीद नाम था जब नर्गिस जी बाल कलाकार थीं. जहाँ तक मैं जानता हूँ फिल्म छू मंतर में हीरो जॉनी वाकर की नायिका थीं शायद श्यामा जी और नर्गिस जी तो उसमें कतई नहीं थीं. पाबला जी क्या छू मंतर के संगीतकार ओ पी नय्यर साहब थे?
इस लिए शायद इंदु जी का जवाब सही लगता है.
अवध लाल

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