उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'नेकी'
'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ''मन्त्र'' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "नेकी", जिसको स्वर दिया है लन्दन निवासी कवयित्री शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 20 मिनट और 13 सेकंड।
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।
मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८३१-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी तखत सिंह ने हीरामणि की तरफ गौर से देखकर जवाब दिया, "मेरे सामने बीस जमींदार आये और चले गये। मगर कभी किसी ने इस तरह घुड़की नहीं दी।" यह कहकर उसने लाठी उठाई और अपने घर चला आया। (प्रेमचंद की "नेकी" से एक अंश) |
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अगले शनिवार का आकर्षण - मुंशी प्रेमचंद की "आत्माराम"
#Twenteeth Story, Neki: Munsi Premchand/Hindi Audio Book/2008/19. Voice: Shanno Aggarwal



नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








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4 श्रोताओं का कहना है :
ये कहानी जब पढ़ी थी तब भी इतनी ही अच्छी लगी थी, पर आज शन्नो जी ने जिस अंदाज़ में सुनाया क्या कहूँ तारीफ के लिए शब्द कम पढ़ गए हैं. शन्नो जी जिस खूबी से भाव प्रेषण करती है, किरदारों में जान सी आ जाती है और सारा दृश्य आँखों के सामने जीवंत हो उठता है जब सुन रहा था तब गंगा का किनारा लोगों की भीड़ घुड़सवार सब जीवंत ही लगे मुझे तो.....शन्नो जी बहुत बहुत बधाई इस तरह से दिल को छूने का.... सच में प्रेमचंद की कहानिया कालातीत में भी अपनी चमक नही खोती हैं, कितने गजब के साहित्यकार थे...नमन गुरुवर
सजीव जी,
धन्यबाद तो मुझे आपको करना चाहिए कि आपको मेरा कहानी पढ़ने का लहजा अच्छा लगा. आपने मेरे आत्म-बिश्वास में और जान डाल दी है कि मैं और कहानियाँ पढूं. लिहाजा मैं आभार प्रकट करती हूँ. बहुत-बहुत धन्यबाद आपका. आप सबने ही तो मुझे आवाज़ से जुड़ने की हिम्मत दी है. वरना:
कुछ देर को लगा था कि
कहीं तिनके सी न उड़ जाऊं
अब बेसब्री रहती है कि
आवाज़ से और जुड़ जाऊं.
शन्नो
शन्नो जी,
आपका बहुत धन्यवाद जो इतने मर्मस्पर्शी साहित्य को आप मुझ जैसे अनगिनत उन लोगों तक इतनी सहजता से पहुंचा रही हैं जो अब तक ज़िंदगी की भागदौड़ में इसका आनंद उठाने से पीछे रह गए,
बहुत ही मार्मिक कहानी है. ऐसी कहानी पढने के बाद अभी तक प्रेमचंद को ढंग से पढने से वंचित रहने पर अपने-आप को ही डांट लगाने को मन करता है.
अनुराग जी,
मुझे लगता है कि मुझे आप का धन्यबाद करना चाहिए कि मैंने आवाज़ से परिचित होकर आपसे इन कहानियों के बारे में जाना और तब मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ पढ़ने का मौका मिला. वरना मैं कभी इन कहानियो के बारे में जान न पाती और बाद में अपने को दोष देती. बड़ा अच्छा लगता है मुझे भी इन्हे पढ़कर लगता है जैसे कि मैं इन सभी किरदारों से मिल रही हूँ, और उस समय में पहुंचकर उनकी निजी जिंदगी में प्रवेश कर रही हूँ. ऐसा मौका देने के लिए मैं आपकी आभारी हूँ.
शन्नो
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