रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां
इस सप्ताह की ही नही इस माह की सबसे बड़ी संगीत ख़बर है ऐ आर रहमान का गोल्डन ग्लोब जीतना. आज का ये एपिसोड हम इसी बड़ी ख़बर को समर्पित कर रहे हैं. जिस फ़िल्म के लिए ऐ आर को ये सम्मान मिला है उसका नाम है स्लम डॉग मिलेनिअर. मुंबई के एक झोंपड़ बस्ती में रहने वाले एक साधारण से लड़के की असाधारण सी कहानी है ये फ़िल्म, जो की आधारित है विकास स्वरुप के बहुचर्चित उपन्यास "कोश्चन एंड आंसर्स" पर. फ़िल्म का अधिकतर हिस्सा मुंबई के जुहू और वर्सोवा की झुग्गी बस्तियों में शूट हुआ है. और कुछ कलाकार भी यहीं से लिए गए हैं. नवम्बर २००८ में अमेरिका में प्रर्दशित होने के बाद फ़िल्म अब तक ६४ सम्मान हासिल कर चुकी है जिसमें चार गोल्डन ग्लोब भी शामिल हैं. फ़िल्म दुनिया भर में धूम मचा रही है,और मुंबई के माध्यम से बदलते हिंदुस्तान को और अधिक जानने समझने की विदेशियों की ललक भी अपने चरम पर दिख रही है. पर कुछ लोग हिंदुस्तान को इस तरह "थर्ड वर्ल्ड" बनाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करने को सही भी नही मानते. अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि फ़िल्म इसलिए पसंद की जा रही है क्योंकि विकसित देश भारत का यही रूप देखना चाहते हैं. पर लेखक विकास स्वरुप ऐसा नही मानते. उनका कहना है कि फ़िल्म में स्लम में रहने वालों को दुखी या निराश नही दिखाया गया बल्कि उन्हें ख़ुद को बेहतर बनाने और अपने सपनों को सच करने की कोशिश करते हुए दिखाया गया है, यही उभरते हुए भारत की सच्चाई है. फ़िल्म में एक दृश्य है जहाँ नायक का बड़ा भाई उसे वो इलाका दिखाता हुए कहता है जहाँ कभी उनकी झुग्गी बस्ती हुआ करती थी और जहाँ अब गगनचुम्भी इमारतें खड़ी है,कि -"भाई आज इंडिया दुनिया के मध्य में है और मैं (यानी कि एक आम भारतीय) उस मध्य के मध्य में..." यकीनन ये संवाद अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है. बहरहाल हम समझते हैं कि ये वक्त बहस का नही जश्न का है. जब "जय हो" और "रिंगा रिंगा" जैसे गीत अंतर्राष्ट्रीय चार्ट्स पर धूम मचा रहे हों, तो शिकायत किसे हो. अमूमन देखने में आता है कि गोल्डन ग्लोब जीतने वाली फिल्में ऑस्कर में भी अच्छा करती हैं, तो यदि अब हम आपके लिए रहमान के ऑस्कर जीतने की ख़बर भी लेकर आयें तो आश्चर्य मत कीजियेगा
जिक्र उनका जो गुमनाम ही रहे
बात करते हैं इस फ़िल्म से जुड़े कुछ अनजाने हीरोस की. रहमान ने अपने इस सम्मान को जिस शख्स को समर्पित किया है वो हैं उनके साउंड इंजिनीअर श्रीधर. ४ बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित श्रीधर, रहमान के साथ काम कर रहे थे उनकी पहली फ़िल्म "रोजा" से, जब स्लम डॉग बन कर तैयार हुई श्रीधर ने रहमान का धन्येवाद किया कि उन्होंने उनका नाम एक अंतर्राष्ट्रीय एल्बम में दर्ज किया, दिसम्बर २००८ में श्रीधर मात्र ४८ वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह गए और उस अद्भुत लम्हें को देखने से वंचित रह गए जब रहमान ने गोल्डन ग्लोब जीता. पर रहमान ने अपने इस साथी के नाम इस सम्मान को कर इस अनजाने हीरो को अपनी श्रद्धाजन्ली दी. इसी तरह के एक और गुमनाम हीरो है मुंबई के राज. जब निर्देशक डैनी बोयल से पूछा गया कि यदि उन्हें २ करोड़ रूपया मिल जायें तो वो क्या करेंगे, तो उनका जवाब था कि वो अपने पहले सह निर्देशक (फ़िल्म के)जो कि राज हैं को दे देंगें, दरअसल राज पिछले कई सालों से मुंबई के गरीब और अनाथ बच्चों के लिए सड़कों पर ही चलते फिरते स्कूल चलाते हैं और उनकी निस्वार्थ सेवा भाव ने ही डैनी को इस फ़िल्म के लिए प्रेरित किया, चूँकि उनका इन बच्चों के संग उठाना बैठना रहता है फ़िल्म के बेहतर बनाने में उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है. राज जैसे लोग आज के इस नए हिंदुस्तान की ताक़त है. जिनका जज्बा आज दुनिया देख रही है. तन्वी शाह की खुशी का कोई ठिकाना नही
स्लम डॉग के लिए "जय हो" गीत गाने वाली चेन्नई की तन्वी शाह आजकल हवाओं से बात कर रही है. मात्र एक गाने ने उन्हें अन्तराष्ट्रीय स्टार बना दिया है. उनके फ़ोन की घंटी निरंतर बज रही है, और इस युवा गायिका के कदम जमीं पर नही पड़ रहे हैं...क्यों न हो. आखिर जय हो ने वो कर दिखाया है जिसका सपना हर संगीतकर्मी देखता है. तन्वी ने कभी अपनी आवाज़ कराउके रिकॉर्डिंग कर अपने एक दोस्त को दी थी, जिसकी सी डी किसी तरह रहमान तक पहुँच गई. और वो इस तरह "होने दो दिल को फ़ना..."(फ़िल्म-फ़ना) की गायिका बन गई. स्लम डॉग से पहले उन्होंने अपनी आवाज़ का जादू "जाने तू...", "गुरु" और "शिवाजी" जैसी फिल्मों के लिए भी ऐ आर के साथ गा चुकी है....पर कुछ भी कहें "जय हो" को बात ही अलग है. मिलिए दिल्ली ६ की इस मसकली से
देसी पुरस्कारों में भी रहमान की ही धूम है हाल ही में संपन्न स्क्रीन अवार्ड में रहमान को जोधा अकबर के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार चुना गया. वहीँ फ़िल्म "बचना ऐ हसीनों" के गीत "खुदा जाने..." के लिए इस गीत के गायक (के के), गायिका (शिल्पा राव) और गीतकार अन्विता दास गुप्तन को भी पुरस्कृत किया गया है. इस सप्ताह से हम आपको साप्ताहिक सुर्खियों के साथ साथ एक चुना हुआ सप्ताह का गीत भी सुनवायेंगे. इस सप्ताह का गीत है आजकल सब की जुबां पर चढा हुआ फ़िल्म दिल्ली ६ का - "मसकली....". क्या आप जानते हैं कि कौन है ये "मसकली", मसकली नाम है दिल्ली ६ के एक कबूतर का, जिसके लिए ये पूरा गीत रचा गया है...फ़िल्म के प्रोमोस देख कर लगता है कि राकेश ने "रंग दे बसंती" के बाद एक और शानदार प्रस्तुति दी है...पर फिलहाल तो आप आनंद लें मोहित चौहान (डूबा डूबा फेम) के गाये और प्रसून जोशी के अनोखे मगर खूबसूरत शब्दों से सजे इस लाजवाब गीत का -
कैसी भेड़चाल है...गोल्डन ग्लोब क्या मिला...इस फ़िल्म के संगीत की शान में क़सीदे पढ़ने वाले हर तरफ़ उग आए (मेरा आशय आपके ब्लॉग से नहीं है)... जबकि रहमान का संगीत उनकी दूसरी कई फिल्मों में , इस फ़िल्म से कहीं बेहतर है...स्लमडॉग का संगीत एकदम साधारण है, ऐसा फ़िल्म देखने बाद कह पा रहा हूँ ...
काजल कुमार जी, मुझे आश्चर्य न होता जब रहमान को "रोज़ा" के लिए गोल्डन ग्लोब मिलता और आप यही कहते कि इससे अच्छा तो दूसरे फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया है। हमारे देश में आप जैसे लोगों की कमी नहीं है जिन्हें कमी निकालने के अलावा कुछ नहीं आता।
और हाँ "मेरा आशय आपके ब्लॉग से नहीं है" यह लिखने की क्या जरूरत थी,कसीदे तो हमने भी कसे हैं,फिर आप हमारे लिए अच्छे बना रहना चाहते हैं क्या। रही बात रहमान की तो हर कोई जानता है कि किसकी औकात कसीदे कसे जाने लायक है।
भारत में तो फिल्म रीलिज हीं नहीं हुई, फिर आपने देख भी लिया, पाईरेसी :)
१ जनवरी - आज के कलाकार - नाना पाटेकर, सोनाली बेन्द्रे और कविता कृष्णमूर्ति - जन्मदिन मुबारक
नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.
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बोलती कहानियाँ
बोलती कहानियाँ - टार्च बेचने वाले - हरिशंकर परसाई--आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई की कहानी "टॉर्च बेचने वाले", जिसको स्वर दिया है अमित तिवारी ने।
जहाँ अंधकार है, वहीं प्रकाश है.प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो.अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ.
(हरिशंकर परसाई की "टार्च बेचने वाले" से एक अंश)
भारतीय शास्त्रीय संगीत - मोहन वीणा
पं. विश्वमोहन भट्ट ने गिटार इस स्वरुप में परिवर्तन कर इसे भारतीय संगीत वादन के अनुकूल बनाया.उन्होंने एक सामान्य गिटार में 6 तारों के स्थान पर 19 तारों का प्रयोग किया.यह अतिरिक्त तार 'तरब' और 'चिकारी' के हैं जिनका उपयोग स्वरों में अनुगूँज के लिए किया जाता है.आप सुनिए अमेरिकी गिटार वादक रे कूडर और पं. विश्वमोहन भट्ट की गिटार और मोहन वीणा पर जुगलबंदी और फिल्म दुनिया न माने के गाने में इस्तेमाल हुआ हवाइयन गिटार, पियानो तथा वायलिन के प्रयोग वाला गाना.
Radio Playback Artist of the month
रेडियो प्लेबैक की टीम के साथ के निरन ने अपने गायन और संगीत निर्देशन का सफर शुरू किया था. हाल ही में प्रदर्शित डेम 999 उनकी आवाज़ महकी है. सुनते हैं उनका बॉलीवुड डेब्यू गीत
महफ़िल-ए-ग़ज़ल
ये महीना है अजीम शायर असद अली खां उर्फ मिर्ज़ा ग़ालिब को याद करने का. १० मुक्तलिफ़ फनकारों ने अपने अपने अंदाज़ में ढाला गालिब को अपनी मौसिकी में, आईये करें अदब के इस शहंशाह को सलाम इन नायाब ग़ज़लों को सुनकर.
भजन सम्राट अनूप जलोटा - दस भजन
हिन्दी भजनों का जिक्र हो और अनूप जलोटा का नाम न आये ऐसा संभव ही नहीं है. हम आपके लिए लाये हैं भजन सम्राट अनूप जलोटा के गाये १० बेहतरीन भजन.
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7 श्रोताओं का कहना है :
कैसी भेड़चाल है...गोल्डन ग्लोब क्या मिला...इस फ़िल्म के संगीत की शान में क़सीदे पढ़ने वाले हर तरफ़ उग आए (मेरा आशय आपके ब्लॉग से नहीं है)... जबकि रहमान का संगीत उनकी दूसरी कई फिल्मों में , इस फ़िल्म से कहीं बेहतर है...स्लमडॉग का संगीत एकदम साधारण है, ऐसा फ़िल्म देखने बाद कह पा रहा हूँ ...
बहुत जानकारी दी आपने इस आलेख में....धन्यवाद।
अच्ची जानकारी के साथ एक मीठा गाना। वाह क्या बात है।
काजल कुमार जी,
मुझे आश्चर्य न होता जब रहमान को "रोज़ा" के लिए गोल्डन ग्लोब मिलता और आप यही कहते कि इससे अच्छा तो दूसरे फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया है। हमारे देश में आप जैसे लोगों की कमी नहीं है जिन्हें कमी निकालने के अलावा कुछ नहीं आता।
और हाँ "मेरा आशय आपके ब्लॉग से नहीं है" यह लिखने की क्या जरूरत थी,कसीदे तो हमने भी कसे हैं,फिर आप हमारे लिए अच्छे बना रहना चाहते हैं क्या। रही बात रहमान की तो हर कोई जानता है कि किसकी औकात कसीदे कसे जाने लायक है।
भारत में तो फिल्म रीलिज हीं नहीं हुई, फिर आपने देख भी लिया, पाईरेसी :)
-विश्व दीपक ’तन्हा’
गीत सुनकर मजा आ गया ।
dekhiye rahmaan ji ke sabhi geet ek se badhkar ek hain ..sarv shreshth..unke shabdon ki karigari par abhimaan hotaa hai
गीत सुना अच्छा लगा.
धन्यवाद
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