उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'गुल्ली डंडा'
'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ''दुर्गा का मन्दिर'' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "दुर्गा का मन्दिर", जिसको स्वर दिया है लन्दन निवासी कवयित्री शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 20 मिनट और 30 सेकंड।
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मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८३१-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी पिताजी चौके पर बैठे वेग से रोटियों पर अपना क्रोध उतार रहे हैं, अम्माँ की दौड़ केवल द्वार तक है, लेकिन उनकी विचार-धारा में मेरा अंधकारमय भविष्य टूटी हुई नौका की तरह डगमगा रहा है; और मैं हूँ कि पदाने में मस्त हूँ, न नहाने की सुधि है, न खाने की। (प्रेमचंद की "गुल्ली डंडा" से एक अंश) |
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रविवार २५ जनवरी २००९ का आकर्षण - पॉडकास्ट कवि सम्मेलन
शनिवार ३१ जनवरी २००९ - मुंशी प्रेमचंद की एक नयी कहानी
#Twenty Third Story, Gulli Danda: Munsi Premchand/Hindi Audio Book/2009/03. Voice: Shanno Aggarwal



नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








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7 श्रोताओं का कहना है :
बहुत सुन्दर उपक्रम।
प्रेम्चन्दजी छोटि छोटि बातो मे जीवन कि सच्चाइया बता देते है।
बहुत सुंदर,
धन्यवाद
यह कहानी मुझे पहली बार मुझे एक मेरे मित्र ने सुनाई थी (पढ़कर)। मुझे बहुत पसंद आई थी। फिर उसे मानसरोवर में पढ़ा। उसके बाद आज दुबारा सुन रहा हूँ। स्मृतियाँ ताजी हो गईं। मैं हाँव में पला-बढ़ा हूँ। रोज़ गुल्ली-डंडा खेला करता था।
शन्नो जी,
आपकी प्रस्तुति में निरंतर सुधार आता जा रहा है। जहाँ पर गया और नायक का संवाद है, वहाँ आपने भावों को इस तरह से अपनी आवाज़ में उड़ेला है कि मन भाव-विह्वल हो जाता है। कभी प्रेमचंद की कोई ऐसी कहानी रिकॉर्ड करें जिसमें आप और अनुराग जी दोनों की आवाज़ का इस्तेमाल हो।
शन्नो जी,
यह कहानी भी बहुत अच्छी लगी. आगे बहुत सी अन्य रोचक कहानियां सुनने की इच्छा है.
शुभकामनाओं सहित,
अनुराग.
मुझे जानकर बहुत खुशी हुई कि आप सबने 'गुल्ली डंडा' कहानी का आनंद उठाया. आप सभी को धन्यबाद! और शैलेश जी, इस कहानी से मुझे अपने बचपन के वह पल याद आ गए जब मैं बड़े चाव से भाई को अपने दोस्तों के साथ गुल्ली डंडा खेलते हुए देखती थी और अक्सर आदेश मिलता था 'जा जल्दी से वह गुल्ली उठा कर ला' और मैं उस आदेश का पालन करने को तत्पर रहती थी. पर कोई मुझे खेलने नहीं देता था, और मैं मन मसोस कर रह जाती थी. अब कभी-कभी सोचती हूँ:
'कुछ भी करो, कुछ भी सोचो जीवन में
फिर भी करने को कितना छूट जाता है
कहानी ही सुनकर यदि खुशी दे पाती हूँ
तो इसी में ही मुझे बड़ा आनंद आता है.'
और अनुराग जी, आप के प्रयास से कहानी, कवितायें सही सलामत श्रोतायों तक पहुँच रही हैं इसके लिए मैं आपको अति धन्यबाद कहना चाहती हूँ.
शन्नो जी बहुत बढ़िया कहानी लगी और आपका वाचन भी निरंतर निखर रहा है ...आप और नौराग जी शैलेश की सलाह पर गौर करें
सजीव जी, तो आपको भी यह कहानी-वाचन अच्छा लगा. धन्यबाद. बचपन में गुल्ली डंडा खेलने की इजाजत नहीं थी मुझे तो क्या हुआ, उसकी कहानी पढ़ने और सुनाने का एक मौका हाथ आया तो उसी में ही मैं खुश हूँ. कई लोग मिलकर अपनी-अपनी आवाजों में एक ही कहानी सुनाएँ, यह बिचार बहुत अच्छा लगा मुझे भी. लेकिन कैसे सम्भव हो सकता है यह? EDITING में तो बड़ी दिक्कत हो सकती है. अगर ऐसा सम्भव हो सके तो कितना अच्छा होगा.
शन्नो
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