गीतकास्ट प्रतियोगिता- परिणाम-1: अरुण यह मधुमय देश हमारा
पिछले महीने जब महान कवियों की कविताओं को सुरबद्ध और संगीतबद्ध करने का विचार बना था, तो हमारे मन एक डर था कि बहुत सम्भव है कि इसमें प्रतिभागिता बहुत कम हो। क्योंकि यह प्रतियोगिता कविता प्रतियोगिता जितनी सरल नहीं है। इसमें एक ही कविता को कई बार गाकर, रिकॉर्ड करके साधना होता है। लेकिन आपको भी यह जानकर आश्चर्य होगा कि गीतकास्ट प्रतियोगिता के पहले ही अंक में 12 प्रतिभागियों ने भाग लिया। जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कविता 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' को 12 अलग धुनों में पिरोया गया। इतना ही नहीं, हमने बहुत से प्रतिभागियों से जब यह कहा कि रिकॉर्डिंग और उच्चारण में कुछ कमी रह गई है, तो उन्होंने दुबारा, तिबारा रिकॉर्ड करके भेजा।
गीतकास्ट प्रतियोगिता के माध्यम से हमारी कोशिश है कि पॉडकास्टिंग की रचनात्मक परम्परा हिन्दी में जुड़े। इस शृंखला में हम पहला प्रयोग या प्रयास छायावाद के चार स्तम्भ कवियों की कविताओं को संगीतबद्ध/सुरबद्ध करके करना चाहते हैं। पाठकों, श्रोताओं, गायकों और संगीतकारों की पूर्ण सहभागिता के बिना यह सफल नहीं हो पायेगा। छायावाद के कवियों की कविताओं के संगीत-संयोजन की पहली कड़ी गीतकास्ट प्रतियोगिता की पहली कड़ी है, जिसमें हमने जयशंकर प्रसाद की कविता को संगीतबद्ध/सुरबद्ध करवाया है। अगली कड़ी सुमित्रानंदन पंत की कविता की होगी, जिसकी उद्घोषणा 10 जून 2009 को की जायेगी।
जयशंकर प्रसाद की कविता 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' के लिए प्राप्त कुल 12 प्रविष्टियों से श्रेष्ठ प्रविष्टि चुनने के लिए दो चरणों में निर्णय कराया गया। पहले चरण में तीन निर्णयकर्ता रखे गये। यहाँ से 6 प्रविष्टियों को अंतिम निर्णयकर्ता आदित्य प्रकाश को भेजा गया। आदित्य प्रकाश पहले और दूसरे स्थान की प्रविष्टि में उलझ गये। बहुत सोचा कि किसे प्रथम रखूँ, किसे द्वितीय? यह तय कर पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा था क्योंकि एक प्रविष्टि में कविता की आत्मा पूरी तरह से मुखरित हो रही थी तो दूसरे में संगीत का नया प्रयोग नवपीढ़ियों को लगभग 100 साल पुरानी कविता से जोड़ पा रहा था। एक में आवाज़ की मधुरता मन मोह रही थी तो दूसरे में संगीत की विविधता थिरका रही थी। तो आखिरकार आदित्य प्रकाश ने यह निर्णय लिया कि दोनों को प्रथम स्थान दिया जाय और रु 1000 का नग़द इनाम दोनों को ही दिया जाय। मतलब कुल रु 2000 का नगद इनाम पहले स्थान के लिए।
ये दोनों कौन हैं और इन्होंने कैसा गाया है आप खुद पढ़ लें और सुन लें।
स्वप्न मंजूषा 'शैल'
24 अगस्त को राँची में जन्मी स्वप्न मंजूषा 'शैल' कविमना हैं। कला के प्रति रुझान बचपन से रहा, नाटक और संगीत में भरपूर रूचि होने के कारण आकाशवाणी और दूरदर्शन से लम्बे समय तक जुड़ी रहीं, टी-सीरिज में गाने का सौभाग्य मिला और प्रोत्साहन भी, संगीत की बहुत सारी प्रतियोगिताओं में भाग लिया और पुरस्कृत हुईं। आकाशवाणी रांची और दिल्ली के कई नाटकों में आवाज़ दी, जैसे महाभारत में रामायण, एक बेचारा शादी-शुदा इत्यादि। इंदिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय में, सॉफ्टवेर इंजिनियर के पद पर ५ वर्षों तक कार्यरत होने के बाद, मॉरीसस ब्रोडकास्टिंग कारपोरेशन के लिए २ वर्षों तक टेलिविज़न पर प्रोग्राम प्रस्तुत किया, मॉरीसस में, हिंदी को टेलिविज़न के माध्यम से लोकप्रिय, बनाने की शुरुआत में, पति संतोष शैल और इन्होंने एक छोटी सी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पिछले कई वर्षों से कनाडा में हैं और कनाडियन गवर्नमेंट के विभिन्न विभागों ( HRDC, PWGSC, National Defence, Correctional Services of Canada ) में सिस्टम्स अनालिस्ट के पद पर कार्यरत रह चुकी हैं। अब पेशे से प्रोजेक्ट मैनेजेर हैं, हाल ही में Ethiopian Govenment की Educational Television Program production का प्रोजेक्ट जिसमें ४५० फिल्में मात्र ३ महीने में बनायीं गई, कि प्रोजेक्ट मैनेजेर ये ही थीं।
२००४ में कनाडा में Chin Radio पर हिंदी में "आरोही " प्रोग्राम ९७.९ FM की शुरुआत की और उसे लोगों के दिलों तक पहुँचाया, इस कार्यक्रम ने लोकप्रियता का नया कीर्तमान ओटावा कि भूमि पर स्थापित किया।
बचपन से ही कविता लिखने का शौक़ रहा, इनकी २ कवितायेँ पुरस्कृत हुई हैं "गुमशुदा" और 'एकादशानन' ।
कई कविताएँ 'काव्यालय', 'अभिव्यक्ति', 'अनुभूति', 'गर्भनाल', जैसी साइट्स पर छप चुकीं हैं, इनकी एक पुस्तक भी छपी है, जिसका नाम है 'काव्य मंजूषा'।
पुरस्कार- प्रथम पुरस्कार, रु 1000 का नग़द इनाम
विशेष- भारतीय समयानुसार 8 जून 2009 की सुबह 7:30 बजे डैलास, अमेरिका के एफएम चैनल रेडियो सलाम नमस्ते के 'कवितांजलि' कार्यक्रम में आदित्य प्रकाश से इस गीत पर सीधी बात।
गीत सुनें-
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कृष्ण राज कुमार
एक नौजवान संगीतकार और गायक हैं। कृष्ण राज कुमार जो मात्र २२ वर्ष के हैं, और जिन्होंने अभी-अभी अपने B.Tech की पढ़ाई पूरी की है, पिछले १४ सालों से कर्नाटक गायन की दीक्षा ले रहे हैं। इन्होंने हिन्द-युग्म के दूसरे सत्र के संगीतबद्धों गीतों में से एक गीत 'राहतें सारी' को संगीतबद्ध भी किया है। ये कोच्चि (केरल) के रहने वाले हैं। जब ये दसवीं में पढ़ रहे थे तभी से इनमें संगीतबद्ध करने का शौक जगा।
पुरस्कार- प्रथम पुरस्कार, रु 1000 का नग़द इनाम
विशेष- भारतीय समयानुसार 8 जून 2009 की सुबह 7:30 बजे डैलास, अमेरिका के एफएम चैनल रेडियो सलाम नमस्ते के 'कवितांजलि' कार्यक्रम में आदित्य प्रकाश से इस गीत पर सीधी बात।
गीत सुनें-
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अब हम बात करते हैं तीसरे स्थान के विजेता की, जिन्होंने संगीतबद्ध तो नहीं किया, लेकिन सुरबद्ध ज़रूर किया है।
धर्मेंद्र कुमार सिंह
हिंदी-भोजपुरी के युवा गायक हैं. स्टेज, रेडियो, दूरदर्शन और विभिन्न चैनलों पर कार्यक्रम पेश कर चुके हैं, लेकिन अभी भी एक ऐसा प्लेटफार्म मिलना बाकी है जो इन्हें मुकाम तक पहुँचा सके। आजकल भोजपुरी के स्तरीय गीतों और गज़लों को आवाज देने में लगे हैं।
पुरस्कार- तृतीय पुरस्कार, रु 500 का नग़द इनाम
विशेष- भारतीय समयानुसार 15 जून 2009 की सुबह 7:30 बजे डैलास, अमेरिका के एफएम चैनल रेडियो सलाम नमस्ते के 'कवितांजलि' कार्यक्रम में आदित्य प्रकाश से इस गीत पर सीधी बात।
गीत सुनें-
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इसके अतिरिक्त हमारी टीम को मनोहर लेले की प्रविष्टि भी सराहनीय लगी। हम वह प्रविष्टि भी अपने श्रोताओं के समक्ष रख रहे हैं।
विभा झालानी, लतिका भटनागर, कमल किशोर सिंह, रमेश धुस्सा, पूजा अनिल, कमलप्रीत सिंह, मुकेश सोनी और अम्बरीष श्रीवास्तव के भी आभारी हैं जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। इन सभी प्रतिभागियों की प्रविष्टियों में भी कविता को अलग ढंग से सुनने का अपना आनंद है, लेकिन कविता और रिकॉर्डिंग दोनों की तकनीकी और कलात्मक खूबियों और ख़ामियों के मद्देनज़र हमारी टीम ने उपर्युक्त निर्णय लिया है। हम उम्मीद करते हैं कि सभी प्रतिभागी इसे सकारात्मक लेंगे और गुजारिश करते हैं कि अगली बार भी गीतकास्ट आयोजन में ज़रूर भाग लें।
इस कड़ी के प्रायोजक रेडियो सलाम नमस्ते के उद्घोषक, कवि, वैज्ञानिक और हिन्दीकर्मी आदित्य प्रकाश हैं। यदि आप भी इस आयोजन को स्पॉनसर करता चाहते हैं तो hindyugm@gmail.com पर सम्पर्क करें।
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32 श्रोताओं का कहना है :
स्वप्न मंजूषा जी, कृष्ण राज और धर्मेन्द्र जी सभी को ढेरों बधाईयाँ, कृष्ण राज ने जटिल कविताओं को भी सुरों में सजाकर उम्मीदें जगाई है. ये युग्म की सफलता है कि हम ऐसे ऐसे छुपे हुए हीरे खोजने में सफल हुए हैं. ले ले जी आपने भाव बहुत अच्छा पकडा है अगले बार और मेहनत से रिकॉर्डिंग कीजियेगा....
स्वप्न मंजूषा जी
बहुत सुन्दर मनहर प्रस्तुति पर एवम् पुरस्कृत होने पर बधाई
कृष्ण राज व धर्मेन्द्र जी आप भी साधुवाद के पात्र हैं आप सभी गायक ,संगीतज्ञ शब्द को पैरह~
[पोशाक] पहना कर अभिनव कार्य कर रहे हैं-विस्तार दे रहे हैं
अभी सुन नहीं पाई हूँ ,पर एक अनूठे प्रयास के लिए सर्वप्रथम आदित्य जी को दिल से शुक्रिया करना चाहती हूँ ,जय शंकर प्रसाद जी की इस अमूल्य कृति को स्वर देने पर सभी पुरुस्कृत प्रतिभागियों को बहुत बहुत मुबारकवाद |
ऐसे आयोजनों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो ,ईश्वर से यही प्रार्थना है |
humaara naam pratibhaagiyon me bhi nahi ,ab hum naaraz ho gaye hain .
kam se kam 5 baar record kiya tha koi baat nahi .
चमत्कृत रह गया कण्टेट की विविधता और गुणवत्ता देख कर। अपने साथ सारे टीम मेम्बर्स के लिए साधुवाद स्वीकार करिए। इस समय भी 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' बज रहा है।
अब यदि निराला जी की रचना 'राम की शक्ति पूजा' को भी स्वर दे दें तो क्या बात हो ! लम्बी कविता के प्रारम्भ की लाइनें दे रहा हूँ:
रवि हुआ अस्त ज्योति के पत्र पर लिखा अमर
रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।
आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर,
शतशेल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर,
प्रतिपल परिवर्तित व्यूह भेद कौशल समूह
राक्षस विरुद्ध प्रत्यूह, क्रुद्ध कपि विषम हूह,
विच्छुरित वह्नि राजीवनयन हतलक्ष्य बाण,
लोहित लोचन रावण मदमोचन महीयान,
राघव लाघव रावण वारणगत युग्म प्रहर,
उद्धत लंकापति मर्दित कपि दलबल विस्तर,
अनिमेष राम विश्वजिद्दिव्य शरभंग भाव,
विद्धांगबद्ध कोदण्ड मुष्टि खर रुधिर स्राव,
रावण प्रहार दुर्वार विकल वानर दलबल,
मुर्छित सुग्रीवांगद भीषण गवाक्ष गय नल,
वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्ल रोध,
गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध,
उद्गीरित वह्नि भीम पर्वत कपि चतुःप्रहर,
जानकी भीरू उर आशा भर, रावण सम्वर।
लौटे युग दल। राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल,
बिंध महोल्लास से बार बार आकाश विकल।
वानर वाहिनी खिन्न, लख निज पति चरणचिह्न
चल रही शिविर की ओर स्थविरदल ज्यों विभिन्न।
(कविता आभार: राजकमल पेपरबैक)
मात्रा संयोजन के कारण इसे संगीत देना कठिन तो है लेकिन असम्भव नहीं। सबसे बड़ी बात प्रतिभाओं की कमी नहीं है।
सबको हार्दिक बधाई,मञ्जूषा जी का स्वर अति मधुर है.......कविता के सौंदर्य को एक नई ज़िन्दगी देने के लिए हिंद-युग्म को बधाई....
वाह वाह वाह। प्रसाद जी की कविता को इतना मीठा स्वर देने के लिए मंजूषा जी,कृष्ण कुमार जी तथा धर्मेन्द्र जी को बहुत-बहुत साधुवाद और युग्म को बधाई। इसप्रकार की प्रतियोगिताओं के द्वारा साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य निश्चय ही प्रशंसनीय है।
छायावाद की जिन चार विभूतियों का जिक्र आपने किया है, उनकी कवितायें अपनी गीतात्मकता के लिये सर्वप्रतिष्ठित और समादृत हैं । इन चारों कवियों की अन्यान्य कवितायें गीतात्मक तत्वों से युक्त हैं । प्रसाद जी की अन्य कविताओं को सुरबद्ध और संगीतबद्ध किया जाना चाहिये, और जैसा कि गिरिजेश जी ने कहा- निराला की कविता ’राम की शक्तिपूजा’ भी एक अनोखा चयन सिद्ध होगा । कारण इसका नाद सौन्दर्य । आखिर नाद भी तो संगीत का प्राण है ।
इस गीत को स्वप्न मंजूषा शैल जी की मधुर आवज में सुनना बहुत ही प्रीतिकर है । प्रसाद की कविता का गायन उनके गीतों जैसी सुकुमारिता का भाव अपना कर ही हो, तो शायद प्रसाद के गीतों का आत्म तत्व अक्षुण्ण रहेगा, और प्रसाद की आत्मा भी तृप्त होगी । इस मोर्चे पर कृष्ण राज कुमार बहुत सफल नहीं हुए । सही हकदार तो मंजूषा जी ही हैं इस स्थान की ।
स्थान चयन से कोई मतलब तो नहीं, पर मनोहर लेले जी का गायन ज्यादा मनोहर था ।
अपने ढंग के अनोखे और बहुमूल्य प्रयास के लिये हिन्द-युग्म बधाई का पात्र है । प्रसाद के इस गीत को मंजूषा जी की आवाज में सुनकर विभोर हूँ ।
bबहुत सुन्दर प्रस्तुति है स्वपन मंजूशा जी श्री कृ्ष्णराज जी और धर्मेन्द्र जी को बहुत बहुत बधाई और आप्को सहित्य कला के प्रोत्साहन के लिये बहुत बहुत शुभकामनायें ये सची साधना है
मञ्जूषा जी की आवाज़ सुन कर तो हम डूब ही गए | दंग रह गए संकल्पना करने वाले पर कि जय शंकर प्रसाद की रचना को इस तरह स्वर और संगीत मिल पायेगा | कृष्ण राज कुमार जी को भी बधाई |
अद्भुत,सुरमय,मधुर,सभी को सुनना सुखद है। बधाई।
आप तीनों को बहुत बहुत बधाई!!
हिन्द युग्म का यह प्रयास प्रश्स्य है।
अभिवादन...
प्रसाद जी की ही "बीती विभावरी, जाग री!..." को भी स्वरबद्ध करें तो बहुत अच्छा रहे।
Kisi 'Error' ki vajah se sun to nahin paya, kintu vijetaon ko badhai. Is anuthe pryas ke liye aapko bhi shubhkaamnayein.
सच में शैल जी की आवाज का जादू सर चढ़कर बोल रहा है,,,,,,
बहुत भला लगा तीनो को सुनना,,,
हिंद-युग्म को इस शानदार आयोजन की बधाई,,,
इतना ही कहना पर्याप्त होना चाहिये कि तीनों ही प्रस्तुतियां एक दूजे से बढ़्कर है.
यह कविता अनेकों बार पढी है,पर धुन का अपना ही आनन्द होता है. आज एक नहीं कई कई बार सुनता ही रहा ,इन मधुर गायकों की 'आवाज़'.
हिन्द-युग्म को इस आयोजन पर बधाई.
मैं पोलिकाली सही होने की कोई कोशिश नहीं करूँगा, मैंने सभी स्वरों को बहुत ध्यान से सुना, सुनते समय या सुनने के बाद जो संतुष्टि मंजूषा जी के गायन से मिली वर्णनातीत है, इस कविता को बचपन में कई बार पढ़ा, कई बार समवेत स्वरों में गाते हुए भी सुना, परन्तु आज मंजूषा जी के स्वर ने इसका सही मायना बताया, इससे अच्छी धुन इस कविता की मैंने नहीं सुनी, उनकी आवाज़ ने कविता के एक एक शब्द में वही भावना डाली जो भावना है, जैसे 'मदिर उंघते रहते है जब' उन्होंने वैसा ही गया जैसे मदिर ऊँघते हैं
कृष्ण राजकुमार जी, की सगीत सज्जा निसंदेह, आधुनिक, गतिमय और कर्णप्रिय है, उनका प्रयास सराहनीय है लेकिन इस प्रतियोगिता में श्री जयशंकर प्रसाद जी की इस कविता को जीवंत, मंजूषा जी की मधुर आवाज़ ने ही किया है
हिंदी युग्म का प्रयास सराहनीय है, सबकी कोशिश बहुत अच्छी लगी, मंजूषा जी की आवाज़ बहुत मधुर लगी, कृष्ण राजकुमार ने अच्छी कोशिश की और सफल भी हुए
हिंदी युग्म का प्रयास सराहनीय है, सबकी कोशिश बहुत अच्छी लगी, मंजूषा जी की आवाज़ बहुत मधुर लगी, कृष्ण राजकुमार ने अच्छी कोशिश की और सफल भी हुए
Sab ko hardik bhadahie.Hind Yugm apne peryash mei safal huaa.Esi taraha hamei "Kamayani" bhi sunane ko mile.
Aati uttam.
Manju Gupta.
मंजूषा जी बहुत खूब गया बधाई .आदित्य जी हिंदी के लिए जो आप ने किया है तारीफ के काबिल है .और जितने भी लोगों ने भाग लिया है उस सभी को बधाई क्यों की उन्होंने ही इस को सफल बनाया है .
हिन्दयुग्म को बधाई
सादर
रचना
आदित्य जी ने ठीक किया की दोनों को प्रथम स्थान दिया कृष्ण जी ने तो कमाल ही कर दिया है .एक दम नई दिशा दी इस गीत को .आप ने संगीत भी बहुत अच्छा दिया है .
सुन के दिल खुश होगया
रचना
मै सभी को बहुत बहुत बधाई देता हुं सभी की आवाज बहुत अच्छी लगी, मधुर लगी, आप का भी धन्यवाद
स्वप्न मञ्जूषा जी, कृष्ण राज जी और दर्मेंद्रा राज जी सभी को बधाई अरु साथ ही हिन्दयुग्म को कामयाबी की मुबारकबाद.
आदित्य जी,
गीतकास्ट प्रतियोगिता के तीनों गीतों को सुना । स्वपन जी का गीत बहुत ही मधुर था, बिल्कुल गीत के मुखड़े की तरह। कृष्ण राज जी का नया अन्दाज़ था लेकिन बहुत प्रभावशाली बना। उनकी आवाज़ में प्रतिभाशाली गायकी के सभी गुण मिले। और संगीत भी कर्णप्रिय था । धर्मेन्द्र जी की प्रस्तुति अत्यन्त सुन्दर थी। पार्शव संगीत के बिना उनकी जो आवाज़ उभरी है वह हमें बहुत, बहुत ही पसन्द आई। इन सभी गायकों कॊ हमारी और से हार्दिक बधाई पहुँचाएँ तथा उज्जवल भविष्य के लिये शुभकामनाएं।
आपने ने यह प्रतियोगिता आरम्भ कर के दो काम किये हैं। एक तो छायावादी कवियों की मधुर रचनायों से जन-जन को अवगत कराया है ताकि ऐसी अमूल्य नीधियां पुस्तकों में ही बन्द न रह जाएं और दूसरा नई पीढ़ी को अपनी साहित्यिक धरोहर से जोड़ने का प्रयास किया है। इस तरह की प्रतियोगिताएं काव्य एवम् संगीत प्रेमियों में एक नया उत्साह भरेंगी । इस मंगल अनुष्ठान के लिये हमारी बहुत बहुत बधाई ।
मंगल कामनायों सहित
शशि पाधा
साहित्य के जगमगाते सितारों की तरफ़ भावी पीढ़ी का ध्यान
आकर्षित करने का अच्छा प्रयास है.
congrats to the winners and a special congrats to krishna.amazing creation and amazing voice krishna.i think only you deserve this place because its a very old poem and you gave life to that poem and we feel like hearing it again and again. you got an incredible voice.you really rocked.we,all keralates proud of you krishna.all the best.may good lord bless you.
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स्वप्न मंजूषा जी, कृष्ण राज और धर्मेन्द्र जी,
आप सभी को बहुत-बहुत बधाई |
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव
स्वप्न मंजूषा जी, कृष्ण राज और धर्मेन्द्र जी,
आप सभी को बहुत-बहुत बधाई |
सादर,
नील श्रीवास्तव
छात्र कक्षा : आठ
एक अनूठे प्रयास के लिए सबसे पहले तो आदित्य जी को दिल से शुक्रिया करना चाहती हूँ ,जय शंकर प्रसाद जी की इस अमूल्य कृति को स्वर देने पर सभी पुरूस्कृत प्रतिभागियों को बधाई ।
स्वप्न मंजूषा जी, कृष्ण राज और धर्मेन्द्र जी इन सभी को मेरा बहुत-बहुत प्रोत्साहन मिले। मेरी ऐसी ही कामना है। हिंदी युग्म ने सारे साहित्यकारों को एक मंच पर लाकर खड़ा किया इसके लिए हिंदी युग्म को बहुत-बहुत धन्यवाद् है।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)