ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 113
आ१९५२ में एक फ़िल्म आयी थी 'आशियाना' जिसमें एक गीत था "मेरा क़रार ले जा, मुझे बेक़रार कर जा, दम भर तो प्यार कर जा"। इस गीत को लता मंगेशकर और तलत महमूद ने अलग अलग गाया था, यानी कि यह 'मेल-फ़ीमेल डबल वर्ज़न' गीत था। यह गीत इस तरह के पहले पहले गीतों में से एक था। आगे चलकर कई संगीतकरों ने इस तरह के 'मेल-फ़ीमेल डबल वर्ज़न'गीत बनाये। इस तरह के गीतों की धुन पर विशेष ध्यान दिया जाता था ताकि चाहे इसे कोई गायक गाये या फिर कोई गायिका, दोनों ही सुनने में अच्छी लगे, और दोनों ही ठीक तरह से उसको गा सके। शंकर जयकिशन एक ऐसे संगीतकार रहे हैं जिन्होने बहुत सारी फ़िल्मों में एक ही गीत को रफ़ी साहब और लता जी से अलग अलग गवाये और उल्लेखनीय बात यह है कि हर बार दोनो वर्ज़न ही कामयाब हो जाते। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक ऐसा ही गीत हम लेकर आये हैं फ़िल्म 'यकीन' से। यह फ़िल्म आयी थी सन् १९६९ में जिसके मुख्य कलाकार थे धर्मेन्द्र और शर्मीला टैगोर। यूँ तो फ़िल्म के सभी गीत बेहद कामयाब रहे, लेकिन प्रस्तुत गीत रफ़ी साहब और लताजी की अलग अलग आवाज़ों में दो बार होने की वजह से दूसरे गीतों के मुक़ाबले ज़्यादा असरदार बन पड़ा है। "गर तुम भुला न दोगे, सपने ये सच ही होंगे, हम तुम जुदा न होंगे"। पिछले बीस सालों से शंकर जयकिशन के संगीत वाले फ़िल्मों में शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी गीत लिखते चले आ रहे थे। हर फ़िल्म में कुछ गीत शैलेन्द्र के होते तो कुछ हसरत साहब के। १९६६ में शैलेन्द्र के अचानक गुज़र जाने के बाद हसरत जयपुरी अकेले रहे गये और अकेले ही शंकर जयकिशन की धुनों पर गीत लिखते चले गये।
दोस्तो, बात चल रही थी शंकर जयकिशन द्वारा एक ही गीत को रफ़ी साहब और लताजी से अलग अलग गवाने की। तो यह परम्परा शुरु हुई थी फ़िल्म 'जंगली' से जिसमें उन्होने "अहसान तेरा होगा मुझ पर" दोनों से गवाये थे। हुआ यूँ था कि पहले यह गाना शम्मी कपूर पर ही फ़िल्माया जाना था। जब वो लोग गीत को फ़िल्मा रहे थे तो निर्देशक महोदय को लगा कि यह गाना नायिका का भी होना चाहिये। बस फिर क्या था, उस वक़्त लताजी की आवाज़ में यह गीत तो मौजूद नहीं था, तो उन लोगों ने रफ़ी साहब की ही आवाज़ पर सायरा बानो से अभिनय करवा लिया। और बाद में लताजी ने सायरा बानो को परदे पर देखते हुए गाने की रिकॉर्डिंग की। है न मज़े की बात! और इस के बाद तो शंकर जयकिशन को जैसे खुला मैदान मिल गया और उन्होने यह तरीका कई-कई बार दोहराया, जैसे कि "जिया हो जिया हो जिया कुछ बोल दो", "ओ मेरे शाहेख़ुबाँ", "तुम मुझे यूँ भुला न पायोगे", और आज का यह प्रस्तुत गीत। तो सुनिये यह गीत रफ़ी साहब की आवाज़ में, लताजी की आवाज़ में फिर कभी सही। "जीवन के हर सफ़र में हम साथ ही रहेंगे, दुनिया की हर डगर पर हम साथ ही चलेंगे, हम साथ ही जिये हैं, हम साथ ही मरेंगे", हम भी यही कहेंगे कि गुज़रे ज़माने के ये सदाबहार नग़में हमेशा हमारे साथ रहेंगे, हमारी सुख और दुख में साथ चलेंगे, इन्ही के साथ हम जीते जायेंगे।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. मनमोहन देसाई निर्देशित फिल्म थी ये.
२. संगीत था ओ पी नय्यर का.
३. मुखड़े में शब्द है -"हुजूर".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
स्वप्न मंजूषा जी बहुत बहुत बधाई...आपने खाता खोला है २ अंकों से, पराग जी हैं ४ अंकों पर, सुमित जी के २ अंक हैं और आगे चल रहे हैं अब भी शरद जी १४ अंकों के साथ. नीरज रोहिल्ला जी बहुत दिनों बाद नज़र आये, स्वागत है वापस आपका जनाब. मंजू जी, निर्मला जी और पराग जी...आप सब का धन्यवाद.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
7 श्रोताओं का कहना है :
aao huzur tumko sitaron pe le chalun
film: kismat
कुछ दिनों बाहर रहने के बाद जब 6.30 पर कम्प्यूटर खोला तो मालूम चला आज 6.04 पर ही पहेली प्रकाशित हो गई और स्वप्न मंजूषा शैल ने 6.11 पर उसका जवाब भी दे दिया । क्या समय बदल दिया गया है । गीत तो यही सही लग रह है
ओ पी नय्यर साहब ने संगीतबद्ध किया यह गीत "आओ हुज़ूर तुम को सितारों में ले चलू"
स्वप्न मञ्जूषा जी को सही जवाब के लिए बहुत बधाई.
शरद जी, मेरे ख़याल से यह आलेख भारतीय समयानुसार शाम के ६ बजे के बाद कभी भी प्रस्तुत होता है. इस का मतलब है की मुझे सुबह के ५:३० से ही देखना शुरू करना पडेगा. काफी मुश्कील हैं.
पराग
क्या ऐसा संभव नहीं है कि सभी के जवाब गुप्त रखे जाएं तथा दूसरे दिन ही नई पहेली प्रकाशित होने पर सबके post तथा विजेता का नाम प्रस्तुत किया जाए क्योंकि एक के द्वारा सही जवाब दे देने पर बाकी लोगों को भी उसकी जानकारी हो ही जाती है
मैं भी शरद जी की बात का समर्थन करता हूँ। मेरे हिसाब से यहाँ बस "गाने" पर कमेंट होना चाहिए और पहेली का जवाब किसी ई-पते पर "मेल" कर दिया जाना चाहिए।नहीं तो क्या होता है कि एक ने गलत जवाब दिया तो सारे उसी दिशा में बह निकलते हैं। "समय" का फ़र्क भी एक कारण है।
सुजॉय जी, हमेशा हीं बड़ी हीं रोचक एवं उपयोगी जानकारियाँ लेकर आते हैं। चूँकि मै "महफ़िल-ए-गज़ल" लिखता हूँ तो मुझे पता है कि जानकारियाँ बटोरने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। और आप तो हर दिन इतनी जानकारियाँ देते हैं।
आपकी लगन को नमन!
-विश्व दीपक
dhanyavaad, waise zyaadaatar paapad maine pehle se hi bel rakhe the, aaj woh is manch par kaam rahe hain.
आओ हुजुर तुमको सितारों पे ले चलूँ.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)