ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 99
कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हमने सुनी थी नूरजहाँ की आवाज़। आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' मे भी कल जैसी ही बात है क्यूंकि आज भी हम एक ऐसी 'सिंगिंग स्टार' की आवाज़ आप तक पहुँचा रहे हैं जो अपने ज़माने की सबसे महँगी अभिनेत्री हुआ करती थीं। ४० के दशक की इस मशहूर अदाकारा और गायिका का असर कुछ यूँ था कि उनकी एक झलक पाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। एक बार इस अदाकारा की एक फ़िल्म का 'प्रिमीयर' का मौका था, सिनेमाघर के बाहर लोगों की ख़ासी भीड़ जमा हो गयी थी। तो जब ये अदाकारा अंदर जाने लगीं तो लोग उनसे हाथ मिलाने के लिए बेताब हो उठे। हालात बिगड़ते देख वहाँ पुलिस बुलायी गयी। भीड़ को सम्भालने के लिए लाठी-चार्ज भी करना पड़ा। इसके बाद से इस अदाकारा ने फ़िल्मों के 'प्रिमीयर' में जाना ही बंद कर दिया। इसी से इस अदाकारा के चाहनेवालों की दीवानगी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अपनी ख़ूबसूरती, लाजवाब अभिनय और बेहद सुरीली आवाज़ वाली इस 'सिंगिंग स्टार' को हम और आप सुरैय्या के नाम से जानते हैं। ४० के दशक की इस लाजवाब 'सिंगिंग स्टार' ने दूसरी अभिनेत्रियों के लिए पार्श्व गायन करना गवारा नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि ५० के दशक में एक से एक प्रतिभाशाली पार्श्वगायिकाओं के आ जाने से बहुत कम ऐसे फ़िल्मकार रह गये जो उनकी अदाकारी और आवाज़ को एक साथ प्रस्तुत करने में राज़ी होते। अगर सुरैय्या दूसरी अभिनेत्रियों के लिए गातीं तो उन्हे बहुत से गीत गाने के मौके मिलते, लेकिन उन्होने यह राह नहीं चुनी। और इस तरह से उनकी फ़िल्में और उनके गाने आने कम हो गये। अंतिम फ़िल्म जिसमें उनकी अदाकारी और गायिकी के जलवे उनके चाहनेवालों को देखने और सुनने को मिले वह फ़िल्म थी १९६३ की 'रुस्तम सोहराब'। प्रेम नाथ और मुमताज़ मुख्य भूमिकाओं में थे। फ़िल्म तो असफल रही लेकिन संगीतकार सज्जाद हुसैन के स्वरब्द्ध गीतों ने भूरी भूरी प्रसंशा बटोरी। इस फ़िल्म से आज सुनिए सुरैय्या का गाया और क़मर जलालाबादी का लिखा गीत "ये कैसी अजब दास्ताँ हो गयी है, छुपाते छुपाते बयाँ हो गयी है"।
सज्जाद साहब भी अपने उसूलों पर चलने वाले इंसान थे। उन्होने भी कभी किसी से कोई समझौता नहीं किया और इस वजह से उन्हे भी बहुत ज़्यादा फ़िल्में नहीं मिली। लेकिन जितने भी फ़िल्मों में उन्होने संगीत दिया वो सभी उच्च कोटी के थे जो उस ज़माने के सभी संगीतकार मानते थे। मैंडोलीन को फ़िल्म संगीत मे लाने का श्रेय भी सज्जाद साहब को ही जाता है। इस साज़ पर उन्होने बहुत से शोध किये और उनके बजाये इस साज़ के कई रिकार्ड्स भी निकले और आज उनके तीनों बेटे इस क्षेत्र में अपने पिता के काम को आगे बढ़ा रहे हैं। अपने अलग स्वभाव, अलग 'मूड' और कम काम करने के बावजूद सज्जाद साहब एक बेहतरीन संगीतकार माने गये। अपनी ७९ वर्ष की आयु मे उन्होने अपनी संगीत यात्रा के दौरान अनेक बेशकीमती गीतों के धरोहर तैयार किये जिसे आनेवाली पीढ़ी को सम्भालकर रखनी है और उनसे यह शिक्षा भी लेनी है कि मौलिकता ही किसी कलाकार की राह होनी चाहिए। आज क्यूंकि सुरैय्या और सज्जाद हुसैन दोनो का ज़िक्र चला है तो क्यों ना गीत सुनने से पहले आप यह भी जान लें कि सुरैय्या ने १९७१ में रिकार्ड की हुई विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में सज्जाद साहब के बारे में क्या कहा था! "संगीतकार सज्जाद हुसैन के तर्ज़ पर पहली बार मैने फ़िल्म '1857' में गाया था। मेरी ख़्वाहीश थी कि सज्जाद साहब के गीतों को गाने का और मौका मिले, इसी इंतज़ार मे एक ज़माना गुज़र गया, तब जाके फ़िल्म 'रुस्तम सोहराब' बनी और इसी मे है मेरा यह नग़मा।" तो दोस्तों, अब इस जानकारी के साथ कि इस गीत में मैंडोलीन' बजाया था सज्जाद साहब के बेटों ने, सुनिए यह दिल को छू लेनेवाला गीत जिसका असर आज भी वैसा ही बरक़रार है।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. ओल्ड इस गोल्ड का १०० वां एपिसोड समर्पित होगा नौशाद साहब, शकील बदायुनीं साहब और स्वर कोकिला लता मंगेशकर को.
२. चूँकि ये एक ग्रैंड एपिसोड है तो हमने फिल्म भी एक एतिहासिक चुनी है, जिसके जिक्र बिना हिंदी फिल्म का इतिहास भी अधूरा रहेगा.
३. एक अंतरा इस शब्द से शुरू होता है -"आज".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
स्वप्ना मंजूषा जी शरद जी, मनु जी और रचना जी से पहले आकर बाज़ी मार गयी. बधाई. दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं कि कल हमारा एतिहासिक १०० वां एपिसोड होने वाला है. कल से पहेली का स्तर थोडा मुश्किल करेंगे, और जो सबसे पहले सही जवाब देगा उसे हर सही जवाब के २ अंक मिलेंगें. हर हफ्ते के अंत में हम स्कोरकार्ड देखते रहेंगे. जो विजेता सबसे पहले ५० अंकों का आंकडा छू लेगा, उसे हम मौका देंगे अपनी पसंद के ५ गीतों को ओल्ड इस गोल्ड में प्रस्तुत करने का और वो उन ५ एपिसोडों के लिए होंगें हमारे "गेस्ट होस्ट", प्रमुख होस्ट सुजॉय के साथ. तो तैयार हैं न आप सब ?
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








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10 श्रोताओं का कहना है :
प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया कोई चोरी नहीं की
फ़िल्म : मुगल-ए-आज़म
तैलंग साहब ने बाज़ी मार ली !!
हम नए खिलाड़ी है सीखते, सीखते ही सीखेंगे
आज कहेंगे दिल का फ़साना
जान भी लेले चाहे ज़माना
मौत वही जो दुनिया देखे
घुट घुट कर यूँ मरना क्या
जब प्यार किया तो डरना क्या
बहुत ही बेहतरीन पोस्ट की है साहब आपने। हमारे सबसे पसंदीदा गाने और सबसे पसंदीदा अदाकारा के बारे में। बहुत आभार आपका और सज्जाद साहब का। इसी बात पर अब मैं सी डी लगाकर फ़िल्म रुस्तमो-सोहराब देखने बैठ रहा हूँ। शुक्रिया।
अब क्या कहें उत्तर तो मिल ही गया
मेरे भी ख्याल से यही गाना है .
एक बात और मनु जी को शादी की सालगिरह मुबारक हो आप अपने परिवार के साथ सदा खुश रहें यही भगवान से प्रर्थना है
सादर
रचना
आज कहेंगे दिल का फ़साना ........गाना तो ये ही है पर याद नहीं आ रहा था शरद जी का जवाब देखकर याद आ गया वैसे भी मुझे लता जी की आवाज की पहचान नहीं है इसलिए गाना याद आना बहुत ही मुश्किल हो गया था मेरे लिए
मनु जी को मुबारकबाद
सही जवाब........!!!
रचना जी और सुमित जी काभी धन्यवाद....!!
मुबारक हो मनु जी...पार्टी कहाँ है?
वैसे जवाब मैंने भी यही सोचा था...
मुश्किल सवाल होंगे तो बढ़िया रहेगा.. ताकि मुझ जैसे "संगीत महारथी" भी भाग लें सकें..
सरल प्रश्नों में वो मजा कहाँ??!!!!
sumitji, mujhe to lagta hai ki aap jaan boojh kar baar baar yeh kehte hain ki aapko lataji ki aawaaz ki pehchaan naheen hai :-)
बिलकुल सही पहचाना शरद जी को मुबारकबाद
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