रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Saturday, September 19, 2009

रविवार सुबह की कॉफी और एक फीचर्ड एल्बम पर बात, दीपाली दिशा के साथ (१६)



"क्या लिखूं क्या छोडूं, सवाल कई उठते हैं, उस व्यक्तित्व के आगे मैं स्वयं को बौना पाती हूँ" लताजी का व्यक्तित्व ऐसा है कि उनके बारे में लिखने-कहने से पहले यही लगता है कि क्या लिखें और क्या छोडें. वो शब्द ही नहीं मिलते जो उनके व्यक्तित्व की गरिमा और उनके होने के महत्त्व को जता सकें. 'सुर सम्राज्ञी' कहें, 'भारत कोकिला' कहें या फिर संगीत की आत्मा, सब कम ही लगता है. लेकिन मुझे इस बात पर गर्व है कि लता जी जैसा रत्न भारत में उत्पन्न हुआ है. लता जी को 'भारत रत्न' पुरूस्कार का मिलना इस पुरूस्कार के नाम को सत्य सिद्ध करता है. उनकी प्रतिभा के आगे उम्र ने भी अपने हथियार डाल दिए हैं. लता जी की उम्र का बढ़ना ऐसा लगता है जैसे कि उनके गायन क्षमता की बेल दिन-प्रतिदिन बढती ही जा रही है. और हम सब भी यही चाहते हैं कि यह अमरबेल कभी समाप्त न हो, इसी तरह पीढी दर पीढी बढती ही रहे-चलती ही रहे.

वर्षों से लताजी फिल्म संगीत को अपनी मधुर व जादुई आवाज से सजाती आ रही हैं. कोई फिल्म चली हो या न चली हो परन्तु ऐसा कोई गीत न होगा जिसमें लताजी कि आवाज हो और लोगों ने उसे न सराहा हो. लता, एक ऐसा नाम और प्रतिभा है जो बीते ज़माने में भी मशहूर था, आज भी है और आने वाले समय में भी वर्षों तक इस नाम कि धूम मची रहेगी. उनके गाये गीतों को गाकर तथा उन्हीं को अपना आदर्श मानकर न जाने कितने ही लोगों ने गायन क्षेत्र में अपना सिक्का जमाया है और आज भी सैकडों बच्चे बचपन से ही उनके गाये गीतों का रियाज करते हैं तथा अपने कैरियर को एक दिशा प्रदान करने की कोशिश में लगे हैं.

लताजी ने अपनी जिंदगी में इतना मान सम्मान पाया है कि उसको तोला नहीं जा सकता. कितनी ही उपाधियाँ और कितने ही पुरुस्कारों से उनकी झोली भरी हुई है. लेकिन अब तो लगता है कोई पुरुस्कार, कोई सम्मान उनकी प्रतिभा का मापन नहीं कर सकता. लता जी इन सब से बहुत आगे हैं. पुरूस्कार देना या उनकी प्रतिभा को आंकना 'सूरज को दिया दिखाने' जैसा है. शोहरत की बुलंदियों पर विराजित होने के बावजूद भी घमंड और अकड़ ने उन्हें छुआ तक नहीं है. कहते हैं की 'फलदार वृक्ष झुक जाता है' यह कहावत लताजी पर एकदम सटीक बैठती है. उन्होंने जितनी सफलता पायी है उतनी ही विनम्रता और शालीनता उनके व्यक्तित्व में झलकती है. वह सादगी की मूरत हैं तथा उनकी आवाज के सादेपन को हमेशा से लोगों ने पसंद किया है.

फ़िल्मी गीतों के अलावा लता जी ने बीच बीच में कुछ ग़ज़लों की एल्बम पर भी काम किया है, "सादगी" इस श्रेणी में सबसे ताजा प्रस्तुति है. लताजी का मानना है कि जिंदगी में सरल व सादी चीजें ही सभी के दिल को छूती हैं, और इस एल्बम में उन्हीं लम्हों के बारे में बात कही गयी है, इसीलिए इस एल्बम का नाम 'सादगी' रखा गया है. यह एल्बम 'वर्ल्ड म्यूजिक डे' पर प्रख्यात गायक जगजीत सिंह द्वारा जारी किया गया. पूरे १७ वर्षों बाद लता जी का कोई एल्बम आया है. इस एल्बम के संगीत निर्देशक मयूरेश हैं तथा ज्यादातर ग़ज़लें लिखी हैं जावेद अख्तर, मेराज फैजाबादी, फरहत शहजाद, के साथ चंद्रशेखर सानेकर ने. एल्बम में शास्त्रीय संगीत तथा लाईट म्यूजिक के बीच संतुलन बिठाने की कोशिश की गयी है. इसमें कुल आठ गजलें हैं. 'मुझे खबर थी' और 'वो इतने करीब हैं दिल के' गजल पहली बार सुनने पर ही असर करती हैं. दिल को छूती हुई रचनायें है. बाकी की गजलों का भी अपना एक मजा है लेकिन उन्हें दिल तक पहुंचने में दो तीन बार सुनने तक का समय लगेगा. एल्बम में ज्यादातर परंपरागत संगीत वाद्य यंत्रों का प्रयोग हुआ है तथा सेक्सोफोन, गिटार और पश्चिमी धुन का भी प्रयोग सुनाई पड़ता है.

चलते-चलते यही कहेंगे कि लता जी की आवाज में नदी की तरह ठहराव और शांति का भाव समाहित है. एक मधुर और भावपूर्ण संगीतमय तोहफे के लिए हम उनके आभारी है. ईश्वर करे वो आने वाले दशकों तक हमें संगीत की सौगातें देती रहे और हम इस सरिता में यूं ही डुबकी लगाते रहे.

मुझे खबर थी - फरहत शहजाद


इश्क की बातें - जावेद अख्तर


रात है - जावेद अख्तर


चाँद के प्याले से - जावेद अख्तर


अंधे ख्वाबों को - मेराज फैजाबादी


जो इतने करीब हैं - जावेद अख्तर


मैं कहाँ अब जिस्म हूँ - चंद्रशेखर सानेकर


फिर कहीं दूर से - मेराज फैजाबादी


ये ऑंखें ये नम् ऑंखें - गुलज़ार


प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"


"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.

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4 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

दिशा जी
बहुत ही नायाब तोहफा दिया है आज की इस कॊफ़ी के साथ आपने । मेराज फ़ैज़ाबादी की गज़ल ’अन्धे ख्वाबों को उसूलों का तराज़ू दे दे’ सुन कर आनन्द आ गया । धन्यवाद

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

इश्क की बातें ख्वाब की बातें लगती हैं
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एक जरा सा दागे दिल धोने के लिए
अश्कों की कितनी बरसातें लगती हैं।
--जावेद अख्तर का गज़ल सुनकर मजा आ गया।
-बेहतरीन प्रस्तुति।

Shamikh Faraz का कहना है कि -

दिशा जी आपको शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई. लेकिन मैं आज कोई भी ग़ज़ल नहीं सुन पाया. क्या आप बता सकती हैं की क्या वजह है? यह मेरे यहाँ नेट की कोई समस्या है या फिर हिन्दयुग्म में कोई तकनीकी बाधा.

Manju Gupta का कहना है कि -

दिशा जी गज़लें सुन कर मजा आ गया .मजेदार प्रस्तुति कर रही हो . बधाई

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