रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


ComScore
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Wednesday, September 2, 2009

ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना...हर दिल से आती है यही सदा मुकेश के लिए



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 190

'१० गीत जो थे मुकेश को प्रिय', इस लघु शृंखला में पिछले ९ दिनों से आप सुनते आ रहे हैं गायक मुकेश के गाये उन्ही के पसंद के गीतों को। आज हम आ पहुँचे हैं इस शृंखला की अंतिम कड़ी में। मुकेश के गए इतने साल बीत जाने पर भी उनकी यादें हम सब के दिल में बिलकुल ताज़ी हैं, उनके गीतों को हम हर रोज़ ही सुनते हैं। वो इस तरह से हमारी ज़िंदगियों में घुलमिल गए हैं कि ऐसा लगता है कि जैसे वो कहीं गए ही न हो! उनका शरीर भले ही इस दुनिया में न हो, लेकिन उनकी आत्मा हर वक़्त हमारे बीच मौजूद है अपने गीतों के माध्यम से। आज इस अंतिम कड़ी के लिए हम ने उनकी पसंद का एक ऐसा गीत चुना है जिसे सुनकर दिल उदास हो जाता है किसी जाने वाले की याद में। सचिन देव बर्मन के संगीत में शैलेन्द्र की गीत रचना फ़िल्म 'बंदिनी' से, "ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना, ये घाट तू ये बाट कहीं भूल न जाना"। इस फ़िल्म का आशा भोंसले का गाया एक गीत आप कुछ ही दिन पहले सुन चुके हैं जिसे शरद तैलंग जी के अनुरोध पर हमने आप को सुनवाया था। उस दिन भी हमने आप से कहा था, और आज भी दोहरा रहे हैं कि इस फ़िल्म का हर एक गीत अपने आप में मास्टरपीस है और यह कहना नामुमकिन है कि कौन सा गीत किससे बेहतर है। क्योंकि आज जाने वाले की बात हो रही है तो आइए गीत सुनने से पहले २७ अगस्त १९७६ की उस दुखद घटना का ब्योरा एक बार फिर से याद करते हैं जिसे नितिन मुकेश ने अमीन सायानी को तफ़सील से बताया था। मुकेश का इंतेक़ाल अमरीका में हुआ, भारी दिल और भीगी पलकें लिए उनके अपने, उनके साथी मुकेश के शव को लेकर हवाई जहाज़ में लौटे। शमशान घाट में अंतिम क्रिया समाप्त हुईं और फिर कुछ दिन बाद उनके बेटे नितिन को अमीन सायानी ने अपने पापा के बारे में बताने के लिए अपने स्टुडियो में बुलाया। अब आगे सुनिये नितिन मुकेश की ज़बानी।

"आप ने मुझे यह सवाल किया, इसका जवाब शायद मैं कभी नहीं दे सकता। मगर क्योंकि मैं जानता हूँ कि आप सब मेरे पापा को इतना प्यार करते हैं, इसलिए मैं कुछ ऐसी बातें कहना चाहता हूँ उन दिनों की जो उनकी ज़िंदगी के आ़ख़िरी दिन थे। २७ जुलाई की रात मैं और पापा रवाना हुए न्यु यार्क के लिए। न्यु यार्क से फिर हम कनाडा गये, वैन्कोवर। वहाँ हमें दीदी मिलने वाली थीं। दीदी हैं लता मंगेशकर जी, दुनिया की, हमारे देश की महान कलाकार, मगर हमारे लिए तो बहन, दीदी, बहुत प्यारी हैं। वो हमें वैन्कोवर में मिलीं। फिर शोज़ शुरु हुए, पहली अगस्त को पहला शो आरंभ हुआ। और उसके बाद १० शोज़ और होने थे। एक के बाद एक शो बहुत बढ़िया हुए, लोगों को बहुत पसंद आए। लोगों ने बहुत प्यार बरसाया, ऐसा लगा कि शोहरत के शिखर पर पहुँच गए हैं दोनों। दीदी तो बहुत महान कलाकार हैं, मगर उनके साथ जाके, उनके साथ एक मंच पर गा के पापा को भी बहुत इज़्ज़त मिली और बहुत शोहरत मिली। इसी तरह से ६ शोज़ बहुत अच्छी तरह हो गए। फिर सातवाँ शो था मोनट्रीयल में। वहाँ एक ऐसी घटना घटी, जिससे पापा बहुत ख़ुश हुए मगर मैं ज़रा घबरा गए। वहाँ उन दो महान कलाकारों के साथ मुझे भी गाने को कहा गया, और आप यकीन मानिए, मेरे में हिम्मत बिल्कुल नहीं थी मगर दीदी ने मुझे बहुत साहस दिया, बहुत हिम्मत दी, और इस वजह से मैं स्टेज पर आया। मेरा गाना सुन के, दीदी के साथ खड़ा हो के मैं गा रहा हूँ, यह देख के पापा बहुत ख़ुश हुए, बहुत ज़्यादा ख़ुश हुए, और मुझे बहुत प्यार किया, बहुत आशिर्वाद दिए।

फिर वह दिन आया, २७ अगस्त! उस दिन शाम को डेट्रायट में शो था। उस दिन मुझे इतना प्यार किया, इतना छेड़ा, इतना लाड़ किया कि जब मैं आज सोचता हूँ कि २६ साल की उम्र में शायद कभी इतना प्यार नहीं किया होगा। ४:३० बजे दोपहर को कहने लगे कि 'हारमोनियम मँगवायो बेटे, मैं ज़रा रियाज़ करूँगा', मैने हारमोनियम निकाल के उनके सामने रखा, वो रियाज़ करने लगे। मुझे ऐसा लग रहा था कि, आवाज़ बहुत ख़ूबसूरत लग रही थी, और बहुत ही मग्न हो गए थे अपने ही संगीत में। जब रियाज़ कर चुके तो मुझसे बोले कि 'एक प्याला चाय मँगवा, मैं आज एक दम फ़िट हूँ', और हँसने लगे। कहने लगे कि 'जल्दी जल्दी तैयार हो जाओ, कहीं देर न हो जाए शो के लिए'। कह कर वो स्नान करने चले गए। मुझे ज़रा भी शक़ नहीं था कि कुछ होने वाला है, इसलिए मैं ख़ुद रियाज़ करने बैठ गया। कुछ देर के बाद बाथरूम का दरवाज़ा खुला तो मैने देखा कि पापा वहाँ हाँफ़ रहे थे, उनका साँस फूल रहा था, मैं एक दम घबरा गया, और घबरा के होटल के ओपरेटर से कहा कि डाक्टर को जल्दी भेजो। फिर मैने दीदी (लता) को फ़ोन करने लगा तो बहुत प्यार से धुतकारने लगे, कहने लगे कि 'दीदी को परेशान मत करो, मैं इंजेक्शन ले लूँगा, ठीक हो जाउँगा, फिर शाम की शो में हम चलेंगे'। पर मैं उनकी नहीं सुनने वाला था, मैने दीदी को जल्दी बुला लिया, और ५/७ मिनट में दीदी भी आ गयीं, डाक्टर भी आ गए, और ऐम्बुलैन्स में ले जाने लगे। तब मैने उनके जीवन की जो सब से प्यारी चीज़ थी, उनके पास रखी, तुलसी रामायण। उसके बाद हम ऐम्बुलैन्स में बैठ के अस्पताल की ओर चले। अब वो मेरा हौसला बढ़ाने लगे, 'बेटा, मुझे कुछ नहीं होगा, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, मैं बिल्कुल ठीक हो जाउँगा', ये सब कहते हुए अस्पताल पहुँचे। पहुँचने के बाद जब उन्हे पता चला कि उन्हे 'आइ.सी.यु' में ले जाया जा रहा है, जितना प्यार, जितनी जान बाक़ी थी, मेरी तरफ़ देख के मुस्कुराए, और बहुत प्यार से, अपना हाथ उठा के मुझे 'बाइ बाइ' किया। इसके बाद उन्हे अंदर ले गए, और इसके बाद मैं उन्हे कभी नहीं देख सका।
"

लता मंगेशकर, जो अपने मुकेश भ‍इया के उस अंतिम घड़ी में उनके साथ थीं, उनके गुज़र जाने के बाद अपने शोक संदेश में कहा था:

"मुकेश, जो आप सब के प्रिय गायक थे, उनमें बड़ी विनय थी। मुकेश के स्वर्गवास पे दुनिया के कोने कोने में संगीत के लाखों प्रेमियों के आँखों से आँसू बहे। मेरी आँखों ने उन्हे अमरीका में दम तोड़ते हुए देखा। आँसू भरी आँखों से मैने मुकेश भइया के पार्थिव शरीर को अमरीका से विदा होते देखा। मुकेश भ‍इया को श्रद्धांजली देने के लिए तीन शब्द हैं, जिनमें एक उनकी भावना कह सकते हैं कि जिसमें एक कलाकार दूसरे कलाकार की महान कला की प्रशंसा करते हैं। उनकी मधुर आवाज़ ने कितने लोगों का मनोरंजन किया, जिसकी गिनती करते करते न जाने कितने वर्ष बीत जाएँगे। जब जब पुरानी बातें याद आती हैं तो आँखें भर जाती हैं।"

"दे दे के ये आवाज़ कोई हर घड़ी बुलाए,
फिर जाए जो उस पार कभी लौट के न आए,
है भेद ये कैसा कोई कुछ तो बताना,
ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना।
"

मुकेश जी को 'हिंद-युग्म' की तरफ़ से विनम्र नमन!

दोस्तों, मुकेश जी को समर्पित १० गीतों की इस शृंखला के बारे में अपनी राय और अपने विचार हमें ज़रूर लिखिएगा, धन्यवाद!



गीत के बोल -

ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना
ये घाट तू ये बाट कहीं भूल न जाना

बचपन के तेरे मीत तेरे संग के सहारे
ढूँढेंगे तुझे गली\-गली सब ये ग़म के मारे
पूछेगी हर निगाह कल तेरा ठिकाना
ओ जानेवाले...

है तेरा वहाँ कौन सभी लोग हैं पराए
परदेस की गरदिश में कहीं तू भी खो ना जाए
काँटों भरी डगर है तू दामन बचाना
ओ जानेवाले...

दे दे के ये आवाज़ कोई हर घड़ी बुलाए
फिर जाए जो उस पार कभी लौट के न आए
है भेद ये कैसा कोई कुछ तो बताना
ओ जानेवाले...


और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. आशा भोंसले के गाये दोगानों पर आधारित है अगली श्रृंखला '१० गायक और एक आपकी आशा' जिसका शुभारम्भ होगा कल से.
२. कल के गीत में आशा का साथ दिया है -"तलत महमूद" ने.
३. असद भोपाली के लिखे इस गीत में भी मुखड़े में आपके इस प्रिय जालस्थल का नाम है.

पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित जी बधाई...आपने फिर कमाए २ अंक और आपका स्कोर हुआ १८. पराग जी ने सही कहा....इस गीत में जाने क्या बात है जब भी सुनो खुद-ब-खुद ऑंखें नम् हो जाती है....सभी श्रोताओं का एक बार फिर आभार.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

10 श्रोताओं का कहना है :

purvi का कहना है कि -

दो दिल धड़क रहे हैं और आवाज़ एक है

purvi का कहना है कि -

दो दिल धड़क रहे हैं और आवाज़ एक है
नगमे जुदा जुदा हैं मगर साज़ एक है,

फिल्म -इन्साफ -1956

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

Mere Liye thoda mushkillag raha hai..

purvi का कहना है कि -

सुजोय जी,
बहुत ही अच्छा संकलन दिया आपने मुकेश के गीतों का. आपके आलेख उनके जीवन से जुड़े अलग अलग पहलु हमारे सामने लेकर आये.
मुकेश की आवाज़ दिल के बहुत करीब महसूस होती है, आज भी उनके गाये गीत बार बार सुनने को दिल करता है. ऐसे में आप कुछ बहुत प्यारे कुछ दर्द भरे नगमे हमें सुनवाए . आपका और सजीव जी का बहुत बहुत आभार.

सजीव सारथी का कहना है कि -

ये ओल्ड इस गोल्ड का एक संग्रहनीय एपिसोड है....नितिन मुकेश की बातें सुन मन भर आया...शुक्रिया सुजोय

Parag का कहना है कि -

बिलकुल सही जवाब, तलत साहब मेरे पसंदीदा गयाकोंमें से एक है. उनकी आवाज़ दिल को छू जाती है, जो की बहुत कम आवाजोंमें पाया जाता है.
उनके गाये हुए दर्द भरे गीत तो लाजवाब है ही , साथ में ऐसे रूमानी गीत भी बहुत सुरीले है. ऐसा ही एक गीत उन्होंने गीता जी के साथ गया था फिल्म जान पहचान के लिए

"अरमान भरे दिल की लगन तेरे लिए है
नगरी मेरे जीवन की सजन तेरे लिए है "

महान संगीतकार खेमचंद प्रकाश साहब ने संगीतबद्ध किया था यह गीत.

पराग

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

आज तो आप के गीत ने आंखो मै आंसू ला दिये, लेकिन मेरी पसंद का भी है.
धन्यवाद

Manju Gupta का कहना है कि -

पूर्वी जी वाह!
बधाई .

Playback का कहना है कि -

dhanyavaad aap sabhi ka... is aalekh ko likhte huye meri aankhon mein bhi aansoo aa gaye the. mere aalekhon ke liye Vividh Bharati aur Ameen Sayani ke radio programs ka bahut bada yogdaan hai, asli credit ke hakdaar ve hain.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मुझे भी यह गीत बहुत पसंद है.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ