रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Saturday, October 3, 2009

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (17)



दोस्तों कुछ चीजें ऐसी होती है जो हमारी जिन्दगी में धीरे-धीरे कब शामिल हो जाती है हमें पता ही नहीं चलता. एक तरह से इन चीजों का न होना हमें बेचैन कर देता है. जैसे सुबह एक प्याली चाय हो पर इन चाय की चुसकियों के साथ अखबार न मिले, फिर देखिए हम कितना असहज महसूस करते है. देखिए ना, आपका और हमारा रिश्ता भी तो रविवार सुबह की काँफी के साथ ऐसा ही बन गया है. अगर रविवार की सुबह हो लेकिन हमें हिन्दयुग्म पर काँफी के साथ गीत-संगीत सुनने को न मिले तो पूरा दिन अधूरा सा रहता है पता ही नहीं लगता कि आज रविवार है. यही नहीं काँफी का जिक्र भर ही हमारे दिल के तार हिन्दयुग्म से जोड़ देता है. इसीलिये हम भी अपने पाठकों और श्रोताओं के प्यार में बँधकर खिंचे चले आते हैं कुछ ना कुछ नया लेकर. आज मै आपके साथ अपनी कुछ यादें बाँटती हूँ. मेरी इन यादों में गीत-संगीत के प्रति मेरा लगाव भी छिपा है और गीतों को गुनगुनाने का एक अनोखा तरीका भी. अक्सर मै और मेरी बहनें रात के खाने के बाद छ्त पर टहलते थे. हम कभी पुराने गीतों की टोकरी उड़ेलते तो कभी एक ही शब्द को पकड़कर उससे शुरु होने वाले गानों की झड़ी लगा देते थे. बहुत दिनों बाद आज फिर मेरा मन वही खेल खेलने का कर रहा है इसलिए मै आपके साथ अपनी जिन्दगी के उन पलों को फिर से जीना चाहती हूँ. तो शुरु करें? चलिए अब तो आपकी इजाजत भी मिल गयी है. क्योंकि मैं आपसे अपनी जिन्दगी के पल बाँट रही हूँ तो "जिन्दगी" से बेहतर कोई और शब्द हो ही नहीं सकता. जिन्दगी के ऊपर फिल्मों में बहुत सारे गाने लिखे गये है. इन सभी गानों में जिन्दगी को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया गया है. गीतों के जरिए जिन्दगी के इतने रंगों को बिखेरा गया है कि हर किसी को कोई न कोई रंग अपना सा लगता है.

कहीं जिन्दगी प्यार का गीत बन जाती है तो कहीं एक पहेली. किसी के लिये यह एक खेल है, जुआ है तो किसी के लिये एक सुहाना सफर. ऐसे लोगों की भी कमी नही है जो जिन्दगी को एक लतीफे की तरह मानते हैं और कहते है कि सुख-दुख जिन्दगी के ही दो पहलू हैं. देखा आपने, इस एक जिन्दगी के कितने रुप है. हर शायर ने अपने-अपने नजरिये से जिन्दगी को उकेरा है. आइये हम मिलकर जिन्दगी के संगीत को अपनी साँसों में भर लें.

चलिए शुरुआत करते हैं एक कव्वाली से जहाँ आदमी और औरत के नज़रिए से जिदगी पर चर्चा हो रही है, बहुत दुर्लभ है ये गीत. इस गीत में जो विचार रखे गए हैं आदमी और औरत की सोच पर, वो शायद आज के दौर में तो किसी को कबूल नहीं होगी, पर शायद कुछ शाश्वत सत्यों पर आधारित मूल्यों पर इसकी बुनियाद रखी गयी होगी...सुनिए -

आदमी की जिंदगी का औरत नशा है ...


दोस्तों वैसे तो ये जिंदगी बहुत ही खूबसूरत है, और जो मेरी इस बात से इनकार करें उनके लिए बस इतना ही कहूंगी कि यदि इसमें किसी ख़ास शख्स की अगर कमी है तो उस कमी को दूर कर देखिये....फिर आप भी हेमंत दा की तरह यही गीत गुनगुनायेंगें.

जिंदगी कितनी खूबसूरत है ....


कुछ गम जिंदगी से ऐसे जुड़ जाते हैं, कि वो बस जिंदगी के साथ ही जाते हैं, धीरे धीरे हमें इस गम की कुछ ऐसी आदत हो जाती है, कि ये गम न जीनें देता है न मरने...दोस्तों यही तो इस जिंदगी की खासियत है कि ये हर हाल में जीना सिखा ही देती है, किशोर दा ने अपनी सहमी सहमी आवाज़ में कुछ ऐसे ही उदगार व्यक्त किये थे फिल्म "दो और दो पांच" के इस भुला से दिए गए गीत में, बहुत खूबसूरत है, सुनिए -

मेरी जिंदगी ने मुझपर....


कई गीत ऐसे बने हैं जहाँ फिल्म के अलग अलग किरदार एक ही गीत में अपने अपने विचार रखते हैं, संगम का "हर दिल जो प्यार करेगा..." आपको याद होगा, दिल ने फिर याद किया का शीर्षक गीत भी कुछ ऐसा ही था, फिल्म नसीब ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपने संगीत निर्देशन में एक बार फिर वही करिश्मा किया जो अमर अकबर अन्थोनी में रफी लता किशोर और मुकेश को लेकर उन्होंने किया था, बस इस बार गायक कलाकार सभी ज़रा अलग थे. कमलेश अवस्थी, अनवर, और सुमन कल्यानपुर की आवाजों में जिंदगी के इम्तेहान पर एक लम्बी चर्चा है ये गीत, सुनिए -

जिंदगी इम्तेहान लेती है....


और चलते चलते एक ऐसा गीत जिसमें छुपी है जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई, दोस्तों प्यार बिना जिंदगी कुछ भी नहीं, तभी तो कहा गया है, "सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं प्यार के दो चार दिन.....". तो बस प्यार बाँटिये, और प्यार पाईये, मधुर मधुर गीतों को सुनिए और झूमते जाईये -

सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं....



प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"


"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.

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2 श्रोताओं का कहना है :

महफूज़ अली का कहना है कि -

bahut achcha laga.....yeh lekh....
aur gaanonka collection bahut achcha hai........

Manju Gupta का कहना है कि -

दीपाली जी ने एक से बढ़ कर गानों की प्रस्तुति दी बधाई .

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