रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, October 12, 2009

हाय रे वो दिन क्यों न आये....ओल्ड इस गोल्ड पर पहली बार पंडित रविशंकर



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 230

'दस राग दस रंग' शृंखला मे पिछले नौ दिनों में आप ने सुने नौ अलग अलग शास्त्रीय रागों पर आधारित कुछ बेहतरीन फ़िल्मी रचनाएँ। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में हम आप को सम्मोहित करने के लिए लेकर आए हैं राग जनसम्मोहिनी, जिसे शुभ कल्याण भी कहा जाता है। सुविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर आधुनिक काल के ऐसे संगीत साधक हैं जिन्होने ख़ुद कई रागों का विकास किया, नए नए प्रयोग कर नए रागों का इजाद किया। राग जनसम्मोहिनी उन्ही का पुनराविष्कार है। दोस्तों, एक बार ज़ी टीवी के लोकप्रिय कार्यक्रम 'सा रे गा मा पा' में एक प्रतिभागी ने फ़िल्म 'अनुराधा' का एक गीत गाते वक़्त उसके राग को कलावती बताया था, जिसे सुधारते हुए जज बने ख़ुद पंडित रविशंकर ने बताया कि दरअसल यह राग कलावती नहीं बल्कि जनसम्मोहिनी है। जब पंडित जी ने यह राग बजाया था तब उन्हे मालूम नहीं था कि इसे क्या कहा जाता है। जब इसका उल्लेख कहीं नहीं मिला तो वो इसे अपने नाम पर रवि कल्याण या कुछ और रख सकते थे, जैसे कि तानसेन के नाम पर है मिया की तोड़ी और मिया की मल्हार। पंडित रविशंकर ने और ज़्यादा शोध किया और ढ़ूंढ निकाला एक दक्षिण भारतीय स्केल जिसे जनसम्मोहिनी कहा जाता है। उन्होने उसी कार्यक्रम में बताया कि हो सकता है कि इस राग का ज़िक्र किताबों में हो, लेकिन कोई भी इसे बजा नहीं रहा था। राग कलावती में अगर एक शुद्ध रिशभ लगा दिया जाए तो वह बन जाता है राग जनसम्मोहिनी। इस राग के बारे में बहुत कुछ कह गया मैं लेकिन फ़िल्म 'अनुराधा' के उस गीत का तो ज़िक्र किया ही नहीं। यह गीत है लता जी का गाया हुआ "हाए रे वो दिन क्यों ना आए"। शैलेन्द्र की गीत रचना है।

ऋषिकेश मुखर्जी के इस १९६० की फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे बलराज साहनी और लीला नायडु। कहानी है एक डॊक्टर निर्मल की जो गरीबों की सेवा के लिए एक गाँव में प्रैक्टिस करने जाता है। वहाँ उसकी मुलाक़ात होती है अनुराधा नाम की एक लड़की से जो रेडियो पर गाती हैं। दोनों में प्यार हो जाता है, अनुराधा के पैसे वाले पिता के मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाकर दोनो शादी कर लेते हैं। अनुराधा गाना छोड़ देती है और घर गृहस्थी में लग जाती है। लेकिन जल्द ही उनकी शादी-शुदा ज़िंदगी में दरार पड़ जाती है जब अनुराधा का एक पुराना दोस्त उसकी ज़िंदगी में वापस आ जाता है, और उसे एक बार फिर से गाना शुरु करने की राय देता है। पति पत्नी में दूरियाँ बढ़ती चली जाती है, अनुराधा को भी लगने लगता है कि उसका पति उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दे रहा है, और इसलिए एक दिन अनुराधा फ़ैसला करती है अपने पति से अलग होने का। आगे क्या होता है फ़िल्म का अंजाम, वह आप ख़ुद ही कभी देख लीजिएगा। तो साहब, एक रेडियो गायिका का किरदार होने की वजह से अनुराधा (लीला नायडु) पर कई गानें फ़िल्माए गए, जिन्हे लता जी ने गाए। एक तो है आज का प्रस्तुत गीत, इसके अलावा इस फ़िल्म के प्रचलित गानें हैं राग मंज खमाज पर आधारित "जाने कैसे सपनों में खो गई अखियाँ, मैं तो हूँ जागी मोरी सो गईं अखियाँ" और "हाए कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया, पिया जाने ना", तथा भैरवी पर आधारित "साँवरे साँवरे, काहे मोसे करो जोराजोरी, बैयाँ ना मरोड़ो मोरी, दूँगी दूँगी गारी, हटो जी"। तो लीजिए सुनिए आज का गीत जो है राग जनसम्मोहिनी पर आधारित, और यह भी आपको बता दें कि इस राग पर नौशाद साहब ने भी एक गीत बनाया था फ़िल्म 'दिल दिया दर्द लिया' के लिए "कोई साग़र दिल को बहलाता नहीं"। 'दस राग दस रंग' शृंखला का पहला हिस्सा आज यहीं ख़त्म होता है, कुछ और रागों और उन पर आधारित गीतों को लेकर हम फिर से वापस आएँगे इसी महफ़िल में। ये दस गीत आपको कैसे लगे, ज़रूर बताइएगा, कल फिर मुलाक़ात होगी इस महफ़िल में, नमस्ते!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. हिंदुस्तान के सबसे चर्चित शहरों में से एक के रहन सहन पर है ये गीत.
२. इस युगल गीत को निभाते परदे पर नज़र आये कुमकुम और.....
३. गीतकार हैं मजरूह सुल्तानपुरी.

पिछली पहेली का परिणाम -

पराग जी आप भी ४० के आंकडे पर आ पहुंचे हैं, बढे चलिए...दिलीप जी यानी कि आप जल्दी ही आवाज़ पर लौटेंगें अपने आलेख के साथ...इंतज़ार रहेगा....भूल मत जाईयेगा :)

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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6 श्रोताओं का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

kumkum & johny walker ..... ye hai bombay meri jaan.

ROHIT RAJPUT

शरद तैलंग का कहना है कि -

पहेली बडी सरल थी बस समय पर पहुंचनए की ही बात थी । बधाई रोहित जी । फ़िल्म : सीआईडी

©डा0अनिल चडड़ा(Dr.Anil Chadah) का कहना है कि -

रोहितजी,

ठीक ही कहा । बधाई ।

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

आपके लिये लिखना मेरा सौभाग्य ही होगा.

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

शायद आजा रे मेरे प्यार के राही, राह निहारूं बडी देर से, भी इसी राग का गीत होना चाहिये. फ़िल्म आकाशदीप का गीत दिल का दिया जला के गया भी .

दरसल कलावती के इतने पास है ये राग कि हम जैसे शास्त्रीय संगीत को ना जानने वाले गफ़लत में पड जाते है.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

रोहित जी को बधाई.

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