रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Tuesday, October 6, 2009

ओ दुनिया के रखवाले....रफी साहब के गले से निकली ऐसी सदा जिसे खुदा भी अनसुनी न कर पाए



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 224

सुनहरे दौर में बहुत सारी ऐसी फ़िल्में बनी हैं जिनका हर एक गीत कामयाब रहा है। ५० के दशक की ऐसी ही एक फ़िल्म रही है 'बैजु बावरा'। अब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हमने आप को इस फ़िल्म के दो गीत सुनवा चुके हैं, "तू गंगा की मौज" और "मोहे भूल गए साँवरिया"। फ़िल्म के सभी गानें राग प्रधान हैं और नौशाद साहब ने शास्त्रीय संगीत की ऐसी छटा बिखेरी है कि ये गानें आज अमर हो गए हैं। नौशाद साहब की काबिलियत तो है ही, साथ ही यह असर है हमारे शास्त्रीय संगीत का। हमने पहले भी यह कहा है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में कुछ ऐसी ख़ास बात है कि यह हमारे कानों को ही नहीं बल्कि आत्मा पर भी असर करती है। और शायद यही वजह है कि रागों पर आधारित गानें कालजयी बन जाते हैं। 'बैजु बावरा' के उपर्युक्त गानें क्रम से राग भैरवी और भैरव पर आधारित हैं। इस फ़िल्म के लगभग सभी गीत किसी ना किसी शास्त्रीय राग पर आधारित है। और क्यों ना हो, फ़िल्म की कहानी ही है तानसेन और बैजु बावरा की, जो शास्त्रीय संगीत के दो स्तंभ माने जाते हैं। इसलिए 'दस राग दस रंग' शृंखला में इस फ़िल्म के किसी एक गीत को शामिल करना हमारे लिए अनिवार्य हो जाता है। आज के लिए हम ने इस फ़िल्म के जिस गीत को चुना है वह है रफ़ी साहब का गाया एक भक्ति रचना "ओ दुनिया के रखवाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले"। यह गीत आधारित है राग दरबारी कानडा पर, जिसमें नायक ईश्वर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है और साथ ही उसे कोस भी रहा है। गीतकार शक़ील बदायूनी एक अंतरे में लिखते हैं कि "आग बनी सावन की बरखा फूल बने अंगारे, नागन बन गई रात सुहानी पत्थर बन गए तारे, सब टूट चुके हैं सहारे, जीवन अपना वापस ले ले जीवन देनेवाले, ओ दुनिया के रखवाले"। बाद में 'फूल बने अंगारे' शीर्षक से कम से कम दो फ़िल्में बनी हैं, क्या पता शायद इसी से प्रेरीत हुए हों वे फ़िल्मकार! ख़ैर, 'बैजु बावरा' की तमाम बातें तो आप जान ही गए थे पिछले गीतों में, आइए आज इस राग की बातें करें।

इसमें कोई संदेह नहीं कि दरबारी कानडा एक बहुत ही लोकप्रिय राग रहा है समूचे उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत में। माना जाता है कि संगीत सम्राट तानसेन ने इस राग का आविश्कार किया था, जो शहंशाह अक़बर के शाही दरबार में गायक हुआ करते थे। और इसीलिए इसका नाम पड़ा दरबारी कनाडा। यह रात्री कालीन राग है और इसे विकृत (वक्र) तरीके से गाया जाना चाहिए ताक़ी जौनपुरी, असावरी और अडाणा जैसे समगोष्ठी रागों से भिन्न सुनाई दे। ख़ास कर के अडाणा से इसे अलग रखने के लिए यह ज़रूरी है कि मन्द्र सप्तक और पुर्वांग पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाए। इस राग पर अजस्र फ़िल्मी गीत बने हैं जिनकी एक सूची हम यहाँ आप को दे रहे हैं। इन गीतों के मुखड़ों को आप एक के बाद एक गुनगुनाइए ताक़ी इस राग का मूल स्वरूप आप के ज़हन मे आ जाए। ये हैं वो गीत...

१. आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे
२. अगर मुझसे मोहब्बत है मुझे सब अपने ग़म दे दो
३. ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो
४. भूल जा, जो चला गया उसे भूल जा
५. चांदी की दीवार न तोड़ी प्यार भरा दिल तोड़ दिया
६. दिल जलता है तो जलने दे
७. हम तुझसे मोहब्बत करके सनम
८. हम तुमसे जुदा होके मर जाएँगे रो रो के
९. झनक झनक तोरी बाजे पायलिया
१०. कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफ़र है
११. कोई मतवाला आया मेरे द्वारे
१२. मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊँ कैसे
१३. मेरे महबूब न जा आज की रात न जा
१४. मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोए
१५. नैनहीन को राह दिखा प्रभु
१६. रहा गरदिशों में हमदम मेरे इश्क़ का सितारा
१७. सत्यम शिवम सुंदरम
१८. सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देते
१९. तोरा मन दर्पण कहलाए
२०. टूटे हुए ख़्वाबों ने हम को ये सिखाया है

उम्मीद है, इन सब गीतों को गुनगुनाते हुए आप ने राग दरबारी कनाडा से एक रिश्ता बना लिया होगा, और आइए अब सुनते हैं फ़िल्म 'बैजु बावरा' से आज का गीत। बैजु बावरा का ज़िक्र इस शृंखला में आगे भी आएगा, जिसमें हम आपको ऐसी रागों के बारे में बताएँगे जिनका इजाद बैजु बावरा ने किया था। फ़िल्हाल सुनिए आज का गीत।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस फिल्म में उस अभिनेत्री ने दोहरी भूमिका निभाई थी जो एक मशहूर गीतकार की जीवन संगिनी भी बनी आगे चलकर
२. नीरज के लिखा ये गीत आधारित है राग पटदीप की.
३. अंतरे में शब्द है -"गंगा".

पिछली पहेली का परिणाम -

पूर्वी जी बहुत बधाई अब आप मंजिल के बेहद करीब हैं, दिशा जी ने बहुत दिनों में दर्शन दिए पर यदि बोल हिंदी में देते तो अधिक बेहतर होता. दिलीप जी अपनी पोस्ट का भी लिंक दे दिया होता....

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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5 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

मेघा छाए आधी रात बैरन बन गई निदियां

शरद तैलंग का कहना है कि -

फ़िल्म : शर्मीली
अभिनेत्री : राखी गुलज़ार

शरद तैलंग का कहना है कि -

गीत के बोल :
मेघा छाए आधी रात बैरन बन गई निदिया
बता दे मैं क्या करूं ।
सबके आँगन दिया जले रे मोरे आँगन जिया
हवा लागे शूल जैसी ताना मारे चुनरिया
कैसे कहूँ मैं मन की बात बैरन बन गई निदिया
बता दे मैं क्या करूं ।
टूट गए रे सपने सारे छूट गई रे आशा
नैन बह रे गंगा मोरे फिर भी मन है प्यासा
आई है आँसू की बारात बैरन बन गई निदिया ।

purvi का कहना है कि -

शरद जी को बधाई .

Shamikh Faraz का कहना है कि -

शरद जी को बधाई.

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