एक माँ की गुजारिश
कल सुबह-सुबह जब अखबार में पढ़ा कि "अजमल" के अब्बू ने जो पकिस्तान में रहते हैं, सामने आने का दुस्साहस किया है कि, वो मेरा बेटा है।
अब पाकिस्तान की सरकार बाप-बेटे के रिश्ते को कैसे झूठा साबित करेगी, यही हम सब को देखना है। देखना है कि सियासत के ठेकेदार अपनी दरिंदगी के खेल के लिए कब तक नौजवानों को गुमराह करेंगे और झूठे लालच और आश्वासन देकर सिर्फ़, सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी तसल्ली के लिए खून बहायेंगे|
मेरी गुजारिश है, एक माँ कि गुजारिश दुनिया के तमाम नौजवानों से वो किसी भी ऐसे जाल में अपने आप को फँसने से बचाएं, जहाँ कोई मजहब नहीं, कोई ईमान नहीं।
नौजवानों हमेशा एक ही बात याद रखो कि सिर्फ़ अपनी मेहनत का भरोसा रखो, कोई चमत्कार नहीं होता कहीं, कोई अल्लादीन का चराग नहीं है किसी के पास जो हमारी दुश्वारियों का हल दे दे| मेहनत ही हमें कोई रास्ता दे सकती है,
खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बन्दे से पूछे ,
बता तेरी रज़ा क्या है |
अपनी मेहनत, अपनी लगन से अपने मुल्क को तरक्की के राह पर ले जाओ, क्योंकि ये सियासत के ठेकेदार सिर्फ़ गुमराह करते थे, करते हैं और आगे भी करते रहेंगे। ये किसी के नहीं है | आज हम सब ये कसम खाएं कि हम न तो हिंदू हैं, न मुसलमान सबसे पहले हम हैं एक इंसान जिसका एक ही मजहब है, वो है इंसानियत |
(एल्बम- मिराज़ १९९६, गीतकार- शाहिद कबीर, गायक और संगीतकार- जगजीत सिंह)
--नीलम मिश्रा
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5 श्रोताओं का कहना है :
आप ने बिलकुल सही कहा, हमे हिन्दु मुस्लिम बनने से पहले एक इंसान बनना चाहिये,
धन्यवाद
बजा फ़रमाया जी आपने बिल्कुल. ये समझाइश ज़मानों से चली आ रही है जी, मगर.
इस माँ की फ़रियाद में हर माँ की गुहार छिपी है, जगजीत जी का गाया गीत बहुत ही मधुर हैं इसे सुनवाने के लिए धन्यवाद
बडे़ ही प्रभावशील स्वर से जगजीत सिंग नें इस गीत को गाया है, जिसे लिखा भी उतने ही संवेदनशील भावोंसे शाहिद कबीर नें.
मगर इससे अधिक प्रभावशाली है कबीर मन के तहे दिल से निकले भावुक शब्दों की अभिव्यक्ति, जो नीलम जी मिश्रा नें अपनी पोस्ट पर की है.
एक गीत याद आता है यहां...ये जो देश है, स्वदेश है मेरा...
हर हिन्दुस्तानी इसी जज़बे से अपना कर्तव्य निभाये, बजाये अपने अधिकारों की खोखली मांगों के मृगतृष्णा के पीछे भागने के, तो इस भारतमाता के प्रति हमारा ऋण चुक पायेगा.
shukriya
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