दूसरे सत्र के २७ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज
अपनी पहली दो ग़ज़लों से श्रोताओं और समीक्षकों सभी पर अपना जादू चलाने के बाद रफ़ीक़ शेख लौटे हैं अपनी तीसरी और इस सत्र के लिए अपनी अन्तिम प्रस्तुति के साथ. शायर है इस बार मुंबई के दौर सैफी साहब, जिनके खूबसूरत बोलों को अपनी मखमली आवाज़ और संगीत से सजाया है रफ़ीक़ ने. तो दोस्तों आनंद लें हमारी इस नई प्रस्तुति का और हमें अपनी राय से अवश्य अवगत करवायें.
सुनने के लिए नीचे के प्लयेर पर क्लिक करें -
Rafique Sheikh is back again for the last time in this season with his new ghazal, "jo shajhar..." written by a shayar from Mumbai Daur Saifii Sahab, hope you enjoy this presentaion also as most of his ghazals so far has been loved by audiences and critics as well.
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Lyrics - ग़ज़ल के बोल -
जो शज़र सूख गया है वो हरा कैसे हो,
मैं पैयम्बर तो नहीं, मेरा कहा कैसे हो.
जिसको जाना ही नही, उसको खुदा क्यों माने,
और जिसे जान चुके हैं वो खुदा कैसे हो,
दूर से देख के मैंने उसे पहचान लिया,
उसने इतना भी नही मुझसे कहा, कैसे हो,
वो भी एक दौर था जब मैंने तुझे चाहा था,
दिल का दरवाज़ा हर वक्त खुला कैसे हो.
SONG # 27, SEASON # 02, "JO SHAJHAR.." OPENED ON 29/12/2008 ON AWAAZ, HIND YUGM.
Music @ Hind Yugm, Where music is a passion.
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5 श्रोताओं का कहना है :
ONCE AGAIN AN EXCELLENT GHAZAL BY RAFIQUE
गज़ल बहुत ही बढिया लगी,
आपकी आवाज मे मैने 'जिन्दगी से यही गिला है मुझे' गज़ल भी सुनी थी वो भी बहुत अच्छी लगी थी
सुमित भारद्वाज
बहुत खूब रफ़ीक जी। मज़ा आ गया । आपकी आवाज़ का तिलिस्म सर चढ कर बोलता है।
साथ हीं साथ सैफी साहब के बोलों की भी बराई करनी होगी।
जिसको जाना ही नही, उसको खुदा क्यों माने,
और जिसे जान चुके हैं वो खुदा कैसे हो।
क्या बात है!!!!
-विश्व दीपक
डा.रमा द्विवेदी said...
ग़ज़ल सुनकर आनन्द आ गया। आवाज का जादू और बोल की खूबसूरती दोनो ही बहुत खूब हैं। रफ़ीक साहब व सैफ़ी साहब को हमारी मुबारकबाद व शुभकामनाएँ। अगली ग़ज़ल का बेसब्री से इन्तज़ार रहेगा।
dil ko chhoo lene vaale bol aur aavaaj , bahut hee sundar
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