रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Saturday, May 23, 2009

देखती ही रहो आज दर्पण ना तुम, प्यार का यह महूरत निकल जाएगा...नीरज का लिखा एक प्रेम गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 89

यूँतो फ़िल्मी गीतकारों का एक अलग ही जहाँ है, उनकी अलग पहचान है, उनकी अलग अलग खासियत है, लेकिन फ़िल्म संगीत के इतिहास में अगर झाँका जाये तो हम पाते हैं कि समय समय पर कई साहित्य से जुड़े शायर और कवियों ने इस क्षेत्र में अपने हाथ आज़माये हैं। इन साहित्यकारों ने फ़िल्मों में बहुत कम काम किया है लेकिन जो भी किया है उसके लिए अच्छे फ़िल्म संगीत के चाहनेवाले उनके हमेशा क़द्रदान रहेंगे। इन्हे फ़िल्मी गीतों में पाना हमारा सौभाग्य है, फ़िल्म संगीत का सौभाग्य है। अगर हिंदी के साहित्यकारों की बात करें तो कवि प्रदीप, पंडित नरेन्द्र शर्मा, विरेन्द्र मिश्र, बाल कवि बैरागी, महादेवी वर्मा, गोपाल सिंह नेपाली, अमृता प्रीतम, और डा. हरिवंशराय बच्चन के साथ साथ कवि गोपालदास 'नीरज' जैसे साहित्यकारों के क़दम फ़िल्म जगत पर पड़े हैं। जी हाँ, कवि गोपाल दास 'नीरज', जिन्होने फ़िल्मों में नीरज के नाम से एक से एक 'हिट' गीत लिखे हैं। उन्होने सबसे ज़्यादा काम सचिन देव बर्मन के साथ किया है, जैसे कि शर्मिली, प्रेम पुजारी, गैम्बलर, तेरे मेरे सपने, आदि फ़िल्मों में। संगीतकार रोशन को साथ में लेकर उनके गीत सामने आये 'नयी उमर की नयी फ़सल' फ़िल्म में, और आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम आपको इसी फ़िल्म का एक गीत सुनवाने जा रहे हैं मुकेश की आवाज़ में।

'नयी उमर की नयी फ़सल' फ़िल्म आयी थी सन् १९६५ में जिसमें नायक थे राजीव और नायिका थीं तनुजा। कवि नीरज के काव्यात्मक रचनायें गीतों की शक्ल में इस फ़िल्म में गूँजे। "कारवाँ गुज़र गया, ग़ुबार देखते रहे" उनकी लिखी इस फ़िल्म की एक मशहूर रचना है जिसे आपने रफ़ी साहब की आवाज़ में कई कई बार सुना होगा। लेकिन मुकेश की आवाज़ में जिस गीत को आज हम सुनवा रहे हैं वह थोड़ा सा कम सुना सा गीत है, लेकिन अच्छे गीतों के क़द्रदानों को यह गीत बख़ूबी याद होगा। "देखती ही रहो आज दर्पण ना तुम, प्यार का यह महूरत निकल जाएगा" में भले ही साहित्य और कविता के मुक़ाबले फ़िल्मी रंग ज़्यादा है, लेकिन नीरज ने जहाँ तक संभव हुआ अपने काव्यात्मक ख्यालों को इस गाने मे पर उतारा। मसलन, एक अंतरे मे वो कहते हैं कि "सुर्ख़ होठों पे उफ़ ये हँसी मदभरी जैसे शबनम अंगारों की महमान हो, जादू बुनती हुई ये नशीली नज़र देख ले तो ख़ुदाई परेशान हो, मुस्कुराओ ना ऐसे चुराकर नज़र आईना देख कर सूरत मचल जाएगा"। तो लीजिए दोस्तों, साहित्य के उन सभी गीतकारों जिन्होने फ़िल्म संगीत में अपना अमूल्य योगदान दिया है, उन सभी को सलाम करते हुए सुनते हैं मुकेश की आवाज़ में रोशन का संगीत आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। रोशन ने जब भी किसी गीत में संगीत दिया है तो उसमें इस्तेमाल किये गये साज़ों का चुनाव इस क़दर किया कि जो गायक गायिका की आवाज़ को पूरा समर्थन दे, और प्रस्तुत गीत भी उनके इसी अंदाज़ का एक मिसाल है।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. नीरज की कलम से ही निकला एक और शानदार गीत.
२. आवाज़ है किशोर कुमार की.
३. मुखड़े में शब्द है -"ग़ज़ल".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
मनु जी आपका तुक्का इस बार सही नहीं बैठा, नीलम जी आप भी मनु जी के झांसे में आ गयी :) खैर विजेता रहे एक बार फिर, शरद तैलंग जी और रचना जी....आप दोनों को बहुत बहुत बधाई.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.



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6 श्रोताओं का कहना है :

manu का कहना है कि -

बेहद जल्दबाजी में एक और तुक्का...कल की तरह,,,

दिल आज शायर है गम आज नाघ्मा है,,,
शब् ये ग़जल है सनम....

नीलम जी,,,,,
देखा भाला ,जाँचा परखा सोचा समझा कीजिये,,,,
आप के ही कमेन्ट में,,,याशायद कहीं पढा था .......
::::::::::))))))))))

तपन शर्मा का कहना है कि -

ओह हो....
मैंने सोचा कि मैं पहले हो जाऊँगा,,, कभी कभार तो मैं इस महफिल में आता हूँ... और इस तरह का सुलूक!!!
फिर भी...मनु जी का जवाब सही लगता है.. जल्दबाजी में शब्द ठीक से नहीं लिखे हैं.. अगर उसके नम्बर मुझे मिल जायें तो.. :-)
दिल आज शायर है, गम आज नगमा है...
शब से गज़ल है सनम...
गैरों के शे’रों को ओ सुनने वाले, हो इस तरफ़ भी करम..
आके ज़रा देख तो तेरी खातिर हम किस तरह से जिये...
ये गाना मेरे पसंदीदा गानों में से एक है...

तपन शर्मा का कहना है कि -

ओह हो....
मैंने सोचा कि मैं पहले हो जाऊँगा,,, कभी कभार तो मैं इस महफिल में आता हूँ... और इस तरह का सुलूक!!!
फिर भी...मनु जी का जवाब सही लगता है.. जल्दबाजी में शब्द ठीक से नहीं लिखे हैं.. अगर उसके नम्बर मुझे मिल जायें तो.. :-)
दिल आज शायर है, गम आज नगमा है...
शब से गज़ल है सनम...
गैरों के शे’रों को ओ सुनने वाले, हो इस तरफ़ भी करम..
आके ज़रा देख तो तेरी खातिर हम किस तरह से जिये...
ये गाना मेरे पसंदीदा गानों में से एक है...

शोभा का कहना है कि -

वाह वाह बहुत प्यारा गीत सुनवाया। आभार।

शरद तैलंग का कहना है कि -

ये प्यार कोई खिलौना नही है हर कोई ले जो खरीद
मेरी तरह ज़िन्दगी भर तडप लो फिर आना इसके करीब’ गीत तो यही है ।

neelam का कहना है कि -

bhaai waah ,
hum jo samajh rahe the wahi ,likha ab comment manu ji ke baad publish ho to isme kaise ye pata lagta hai ki hum kisi ke jhaanse me aa gaye ,sujooy da ya sajeev ji ek baar phir se bataana chaahenge ki humne comment publish kiya tha apne tukke par ,mukesh ka wahi gana hume yaad tha jo aapne sunvaaya wo to humne suna bhi nahi kabhi ,khair us gaane ke saamne to yah gaana hume jancha bhi nahi .

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