ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 85
जीवन दर्शन पर आधारित गीतों की जब बात चलती है तो गीतकार इंदीवर का नाम झट से ज़हन में आ जाता है। यूँ तो संगीतकार जोड़ी कल्याणजी - आनंदजी के साथ इन्होने बहुत सारे ऐसे गीत लिखे हैं, लेकिन आज हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में उनके लिखे जिस दार्शनिक गीत को आप तक पहुँचा रहे हैं वो संगीतकार रोशन की धुन पर लिखा गया था। मुकेश और साथियों की आवाज़ों में यह गीत है फ़िल्म 'अनोखी रात' का - "ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना". १९६८ में प्रदर्शित यह फ़िल्म रोशन की अंतिम फ़िल्म थी। इसी फ़िल्म के गीतों के साथ रोशन की संगीत यात्रा और साथ ही उनकी जीवन यात्रा भी अचानक समाप्त हो गई थी १९६७, १६ नवंबर के दिन। अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनका अकाल निधन हो गया। इसे भाग्य का परिहास ही कहिए या फिर काल की क्रूरता कि जीवन की इसी क्षणभंगुरता को साकार किया था रोशन साहब के इस गीत ने, और यही गीत उनकी आख़िरी गीत बनकर रह गया. ऐसा लगा जैसे उनका यह गीत उन्होने अपने आप पर ही सच साबित करके दिखाया। इंदीवर ने जो भाव इस गीत में साकार किया है और जिस तरह से पेश किया है, वह फिर उनके बाद कोई दूसरा गीतकार नहीं कर पाया.। यह गीत अपनी तरह का एकमात्र गीत है। एक अंतरे में वो लिखते हैं "अंजाने होठों पर क्यों पहचाने गीत हैं, कल तक जो बेगाने थे जनमों के मीत हैं, क्या होगा कौन से पल में कोई जाने ना"। ज़िन्दगी कब कहाँ कैसा खेल रच देती है यह पहले से कोई नहीं जान सकता, और यही फ़लसफ़ा है इस गीत का आधार।
रोशन के इंतक़ाल के बाद उनकी इस अधूरी फ़िल्म का एक गीत "ख़ुशी ख़ुशी कर दो विदा, हमारी बेटी राज करेगी" उनके मुख्य सहायक संगीतकार श्याम राज ने पूरा किया था। रोशन साहब की पत्नी इरा रोशन का भी योगदान था इस फ़िल्म के संगीत में। अपने पिता को श्रद्धाजंली स्वरूप राजेश रोशन ने इसी गीत की धुन पर आगे चलकर फ़िल्म 'ख़ुदगर्ज़' में एक गीत बनाया था "यहीं कहीं जियरा हमार"। फ़िल्म 'अनोखी रात' का निर्माण किया था एल. बी. लक्ष्मण ने और इसका निर्देशन किया था असित सेन ने। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे संजीव कुमार और ज़हीदा। तो लीजिए, ज़िन्दगी की अनिश्चयता को दर्शाता यह गीत सुनिए मुकेश की पुर-असर आवाज़ में। यह 'आवाज़' की तरफ़ से श्रद्धाजंली है संगीतकार रोशन की सुर साधना को।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. साजन दहलवी का लिखा और श्याम जी घनश्याम का संगीतबद्ध गीत.
२. रफी साहब की आवाज़ में एक मधुर प्रेम गीत.
३. एक अंतरा इस तरह शुरू होता है -"मैंने कब तुझसे".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम-
नीलम जी का तुक्का सही है. मनु जी और पराग जी ने भी बधाई के पात्र हैं....पराग जी आपने बहुत ही अच्छा गीत याद दिलाया...इसे भी कभी ज़रूर सुनेंगे.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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4 श्रोताओं का कहना है :
मेरे ख्याल से अपनी आँखों में बसा के कोई इकरार करूँ
जी में आता है जी भर के तुझे प्यार करूँ
इसका अन्तर मैने कब तुझसे ज़माने की ख़ुशी मांगी थी
एक हलकी सी मेरे लब पे हंसीं मांगी थी
गाना है मूवी ठोकर का
सादर
रचना
बहुत ही सुंदर गीत!
bahut sahi geet sunaya aapne.. maja aa gaya
एक हलकी सी मेरे लब ने हंसी मांगी थी,
एक हलकी ..........
सी ..मेरे लब ने.....
हंसी माँगी थी,,,,,,,,,,,
एक दम सही रचना जी,,,,,
बेहद खूबसूरत गीत है,,,,,
जाने कहाँ कहाँ के ज़ख्म कुरेदता हुआ,,,,,,,,,,,,
आपको अडवांस में बधाई,,,,,
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