ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 92
दोस्तों, आज के गीत की जानकारी शुरु करने से पहले हम अपना एक त्रुटि सुधार करना चाहेंगे। आपको याद होगा कुछ दिन पहले हमने आपको संगीतकार विनोद के संगीत में फ़िल्म 'एक थी लड़की' का मशहूर गीत सुनवाया था "लारा लप्पा लारा लप्पा"। इस गीत के गायक कलाकारों के नाम स्वरूप हमने लता मंगेशकर, जी. एम. दुर्रानी और साथियों का ज़िक्र किया था। फिर किसी श्रोता ने लिखा कि इस गीत में रफ़ी साहब की भी आवाज़ है। तो जब मैने इसकी खोजबीन शुरु की तो कई जगहों पर रफ़ी साहब का नाम मुझे दिखा और कई जगहों पर नहीं दिखा, लेकिन दुर्रानी साहब का नाम सभी जगह था। तब मैने सोचा क्यों न किसी वरिष्ठ व्यक्ति की मदद ली जाये जो फ़िल्म संगीत के अच्छे जानकार हों। तो मैने एक ऐसे वरिष्ठ शोधकर्ता से इस गीत के गायक कलाकारों के बारे में जानना चाहा जिनका पूरा जीवन फ़िल्म संगीत के शोध कार्य में ही बीता है। उन्होने मुझे बताया कि यह गीत असल में लता मंगेशकर, सतीश बत्रा, मोहम्मद रफ़ी और साथियों ने गाया है। इस गीत में जी. एम दुर्रानी साहब की आवाज़ बिल्कुल नहीं है और यह बात उन्हे किसी और ने नहीं बल्कि ख़ुद दुर्रानी साहब ने ही बताया था। है ना आश्चर्य की बात! इस गीत के साथ हम हमेशा से दुर्रानीसाहब का नाम जोड़ते चले आ रहे हैं जब कि हक़ीक़त कुछ और ही है। उन दिनों ग्रामोफोन रिकार्ड्स पर नामों की कई ग़लतियाँ हुआ करती थीं और यह भी उन्ही में से एक है।
तो दोस्तों यह तो था एक मज़ेदार ख़ुलासा जिसे जानकार आपको अच्छा भी लगा होगा और हैरत भी हुई होगी। अब आते हैं आज के गीत पर। आज हम एक बड़ा ही प्यारा सा 'रोमांटिक' युगल गीत लेकर आये हैं लताजी और रफ़ी साहब की आवाज़ों में। १९५७ में सोहराब मोदी ने अपनी कंपनी मिनर्वा मूवीटोन के बैनर तले एक फ़िल्म बनायी 'नौशेरवान-ए-आदिल'। राज कुमार और माला सिन्हा अभिनीत इस फ़िल्म के संगीतकार थे सी. रामचन्द्र और इस फ़िल्म के गाने लिखे एक बहुत ही कमचर्चित गीतकार ने जिनका नाम था परवेज़ शमसी। मेरे ख़याल से इन्होने सिर्फ़ इसी फ़िल्म में गीत लिखे हैं। इस फ़िल्म के कम से कम दो युगल गीत बड़े पसंद किये गये थे, एक तो था "भूल जायें सारे ग़म, डूब जायें प्यार में" और दूसरा गीत जो आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शान बना है वह था "तारों की ज़ुबाँ पर है मोहब्बत की कहानी, ऐ चाँद मुबारक़ हो तुझे रात सुहानी"। बड़ा ही ख़ूबसूरत गीत है, चाँद, तारों और रात की उपमा देकर मोहब्बत की दास्तान बयान हुई है इस गीत में। ज़रा इस अंतरे पर ग़ौर करें - "कहते हैं जिसे चाँदनी है नूर-ए-मोहब्बत, तारों से सुनहरी है हमेशा तेरी क़िस्मत, जा जा के पलट आती है फिर तेरी जवानी, ऐ चाँद मुबारक़ हो तुझे रात सुहानी", चाँद के ज़रिए जवानी के फिर से वापस लौट आने को कितनी सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है। ऐसे गीतों के बारे में ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं होती, ये ऐसे गीत हैं जिन्हे सिर्फ़ सुनना और महसूस करना चाहिए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. एस एच बिहारी का लिखा एक अमर गीत.
२. प्रेम के समर्पण में डूबी गीता दत्त की आवाज़.
३. एक अंतरे की दूसरी पंक्ति हैं - "भुला देंगें हम सारा गम...."
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी की खासियत है कि उनका कोई भी जवाब आज तक गलत नहीं हुआ. इस बार विजेता रहे, मनु जी और मीत जी ने भी सही की मोहर लगा दी. नीलम जी क्या वाकई ये गाना आपने पहली बार सुना है...? शरद कोकस साहब क्या कहना चाहते हैं कुछ साफ़ नहीं हुआ...वैसे सुजॉय के जवाब से शायद वो संतुष्ट हो गए होंगे.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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4 श्रोताओं का कहना है :
’न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे’ । फ़िल्म है शर्त । यह गीत हेमन्त कुमार तथा गीता दत्त की आवाज़ में अलग अलग है।
नीलम जी क्या वाकई ये गाना आपने पहली बार सुना है...?
sujoy ji v sajeev ji hum kabhi jhooth nahi bolte .
par ye wala gana humne kai baar suna hai , jise sharad ji ne bataaya hai
एक दम सही,,
पहले मुझे शक सा लगा तो था दुर्रानी जी की आवाज के बारे में,,,,
क्यूंकि इस गीत में हमने सदा रफी की आवाज ही समझी है,,,पायी है,,,,
फिर पढ़ कर सोचा के हो सकता है दुर्रानी जी की अव्वाज भी रफी से मिलती हो,,,,और हामी गलत हो,,,
जैसे तलत और चितलकर की आवाजें अक्सर ही कन्फ्यूज करती हैं,,,,,
पर ये जानकार अच्छा लगा ,,,,,,और इतनी गलतियों पर हैरानी भी हुयी,,,,,
युग्म की इस खोजबीन का बहुत बहुत आभार,,,,
शुजोय एवं सजीव जी का बेहद शुक्रिया,,,,
शुक्रिया एक बेहद मधुर गीत को सुनवाने का.
दूसरा गीत भी लगा देते तो क्या जाता? प्यास अधूरी रह गयी.
(भूल जायें सारे ग़म..)
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