रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, May 18, 2009

अखियाँ भूल गयी हैं सोना....सोने सा चमकता है ये गीत आज ५० सालों के बाद भी



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 84

ज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक बहुत ही ख़ुशनुमा, चुलबुला सा, गुदगुदाने वाला गीत लेकर हम हाज़िर हुए हैं। दोस्तों, हमारी फ़िल्मों में कुछ 'सिचुएशन' ऐसे होते हैं जो बड़े ही जाने पहचाने से होते हैं और जो सालों से चले आ रहे हैं। लेकिन पुराने होते हुए भी ये 'सिचुएशन' आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने कि उस ज़माने में हुआ करते थे। ऐसी ही एक 'सिचुएशन' हमारी फ़िल्मों में हुआ करती है कि जिसमें सखियाँ नायिका को उसके नायक और उसकी प्रेम कहानी को लेकर छेड़ती हैं और नायिका पहले तो इन्कार करती हैं लेकिन आख़िर में मान जाती हैं लाज भरी अखियाँ लिए। 'सिचुएशन' तो हमने आपको बता दी, हम बारी है 'लोकेशन' की। तो ऐसे 'सिचुएशन' के लिए गाँव के पनघट से बेहतर और कौन सा 'लोकेशन' हो सकता है भला! फ़िल्म 'गूँज उठी शहनाई' में भी एक ऐसा ही गीत था। यह फ़िल्म आज से पूरे ५० साल पहले, यानी कि १९५९ में आयी थी, लेकिन आज के दौर में भी यह गीत उतना ही आनंददायक है कि जितना उस समय था। गीता दत्त, लता मंगेशकर और सखियों की आवाज़ों में यह गीत बना है आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शान। गीतकार भरत व्यास और संगीतकार वसंत देसाई की यह रचना है।

फ़िल्म 'गूँज उठी शहनाई' का एक गीत हमने आपको पहले भी सुनवाया है और इस फ़िल्म से संबन्धित कुछ जानकारियाँ भी दी हैं हमने। इस फ़िल्म के ज़्यादातर गीत लताजी और रफ़ी साहब ने गाये। लेकिन प्रस्तुत गीत में मुख्य आवाज़ गीता दत्त की है जो नायिका की सहेली का पार्श्वगायन करती हैं। मुखड़ा और दो अंतरे में गीताजी और साथियों की आवाज़ें सुनने को मिलती हैं, लेकिन दूसरा अंतरा लताजी का है जिसमें नायिका अपने मन की बात बताती हैं अपनी सखियों को। अपने दिलकश गीत संगीत की वजह से यह फ़िल्म अपने ज़माने की बेहद मशहूर फ़िल्म रही है, और फ़िल्म के हर एक गीत ने इतिहास क़ायम किया है। इस गीत का संगीत संयोजन भी बड़ा निराला है। इसमें शामिल किए गए संगीत के 'पीसेस' इतने अलग हैं, इतने ज़्यादा 'प्रामिनेन्ट' हैं कि ये धुनें इस गीत की पहचान बन गये हैं। विविध भारती पर रविवार दोपहर को प्रसारित होनेवाली 'जयमाला गोल्ड' कार्यक्रम का शीर्षक संगीत भी इसी गीत से लिया गया था। सच में, ये धुनें इसी के क़ाबिल हैं। आज भी इस गीत की धुनें हमें गुदगुदाती है, दिल में एक अजीब मुस्कान जगाती है, कुछ पल के लिए ही सही लेकिन इस तनाव भरी ज़िन्दगी में थोड़ा सा सुकून ज़रूर दे जाता है यह गीत। तो लीजिए आप भी इस सुकून और मुस्कुराहट का अनुभव कीजिए इस थिरकते हुए गीत को सुनकर, "अखियाँ भूल गयीं हैं देखो सोना..."।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. रोशन साहब की अंतिम फिल्म का यादगार गीत.
२. मुकेश की आवाज़ में इन्दीवर की रचना.
३. मुखड़े में शब्द है -"जल".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम-
पराग जी ने बाज़ी मारी है आज. मनु जी और रचना जी आपको भी बधाई...एक दम सही जवाब....गीत का आनंद लें.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.



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4 श्रोताओं का कहना है :

neelam का कहना है कि -

kahin ye gaana -oh re taal mile nadi ke jal me to nahi ????

hum to tukke hi lagaate hain ,shaayad sahi ho jaaye .

परम लौ का कहना है कि -

वाकई गाना बडा मधुर है। क्या आप ईस गाने क डाऊनलोड लिकं मुद्रित कर सकते हैं। ऐसा मधुर गाना सुनाने के लिए धन्यावाद।

परम लौ

manu का कहना है कि -

आपके तुक्के पर हम मुहर लगाते हैं,,,,,
हम भी यही सोच रहे थे,,,
अनोखी रात का अनोखा गीत,,,,
है भी रोशन साहब का,,,,
अब ये उनकी आखिरी फिल्म है के नहीं,,,,ये हमें नहीं मालूम,,,,

Parag का कहना है कि -

गीता जी और लता जी का यह छेड़-छड़ वाला गीत उन दोनोंके गाये हुए करीब ३०-३५ गानोंमें ऊंचा स्थान रखता हैं. ऐसा ही और एक छेड़ भरा गीत हैं "मेरी छोटी सी बहन" जिसे भी संगीतकार वसंत देसाई साहब ने स्वरबद्ध किया था.

नीलम जी और मनु जी को बहुत बधाईयाँ सही गाना पहचानने के लिए! अनोखी रात रोशन साहब की सचमुच आखरी फिल्म थी. उसी फिल्म का एक गीत सुप्रसिद्ध हैं "महलों का राजा मिला के रानी बेटी राज करेगी" जिसे लता जी ने खूब गाया है.
आभारी
पराग

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