रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Sunday, July 5, 2009

मैंने रखा है मोहब्बत अपने अफसाने का नाम...तासीर रफी साहब के आवाज़ की



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 132

यूँतो आज महिलायें हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं, लेकिन जहाँ तक फ़िल्मों में संगीत देने या गीत लिखने का सवाल है, उसमें आज भी पुरुषों का ही बोलबाला है। लेकिन फ़िल्म संगीत के इतिहास में कम से कम दो ऐसी महिला संगीतकारा हुईं हैं जिन्होने फ़िल्म संगीत में बहुत बड़ा योगदान दिया है, फ़िल्मी गीतों के ख़ज़ाने को समृद्ध किया है। एक तो थीं सरस्वती देवी जिन्होने बौम्बे टाकीज़ की बहुत सारी फ़िल्मों में बहुत ही कामयाब संगीत दिया,और दूसरी हैं उषा खन्ना, जिन्होने ६०, ७० और ८० के दशकों में बहुत सारी फ़िल्मों में बहुत ही उम्दा संगीत दिया है। आम तौर पर हम इन दो महिला संगीतकारों के नाम जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि सरस्वती देवी से भी पहले जड्डन बाई (अभिनेत्री नरगिस की माँ) एक संगीतकारा रह चुकीं हैं, जिन्होने सन् १९३५ में 'तलाश-ए-हक़' नामक फ़िल्म में संगीत दिया था! बहरहाल, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम उषा खन्ना जी का स्वरबद्ध किया हुआ एक बेहद ख़ूबसूरत गीत आपको सुनवाने जा रहे हैं। १९६४ मे बनी फ़िल्म 'शबनम' का यह गीत है मोहम्मद रफ़ी साहब की आवाज़ में। गीतकार हैं जावेद अनवर और गीत है "मैने रखा है मोहब्बत अपने अफ़साने का नाम, तुम भी कुछ अच्छा सा रख लो अपने दीवाने का नाम"। उषा खन्ना, जावेद अनवर और रफ़ी साहब की तिकड़ी का एक और मशहूर गीत रहा है फ़िल्म 'निशान' का, "हाये तबस्सुम तेरा, धूप खिल गयी रात में, या बिजली गिरी बरसात में".

अस्पी इरानी निर्देशित फ़िल्म 'शबनम' के मुख्य कलाकार थे महमूद, विजयलक्ष्मी, शेख मुख्तार और हेलेन। यह एक अरबी 'फ़ैन्टसी फ़िल्म' थी जिसकी कहानी अख़्तर-उल-इमान ने लिखी थी। अगर आप ने 'अरबियन नाइट्स' में ज़ोरो की कहानी पढ़ी है तो बस यही समझ लीजिये कि इस फ़िल्म का अंदाज़ भी कुछ उसी तरह का था। महमूद, जिन्हे हम एक हास्य अभिनेता के रूप में ही ज़्यादा पहचानते हैं, उन्होने कई फ़िल्मों में बहुत संजीदे किरदार भी निभाये हैं। उनकी फ़िल्म 'कुंवारा बाप' तो आपको याद ही है न, जिसमें उन्होने हम सब को ख़ूब रुलाया भी था! 'शबनम' में उन्होने गम्भीर 'ज़िंगारो' का किरदार निभाया था। विजयलक्ष्मी और हेलेन ने भी अपनी अपनी नृत्यकला का बेहद सुंदर प्रदर्शन किया था इस फ़िल्म में। लेकिन सही मायने मे आज अगर यह फ़िल्म याद की जाती है, तो सिर्फ़ इसके गीत संगीत की वजह से। आज के इस प्रस्तुत गीत के अलावा इस फ़िल्म का एक दूसरा मशहूर गीत रहा हैं मुकेश का गाया "तेरी निगाहों पे मर मर गये हम"। इस गीत को हम आगे चलकर इस शृंखला में शामिल करने की कोशिश करेंगे, फ़िल्हाल सुनिये इस फ़िल्म का सबसे चहेता गीत रफ़ी साहब की आवाज़ में। आज का यह अंक समर्पित है फ़िल्म संगीत के महिला संगीतकारों के नाम! गीतकार जावेद अनवर के बारे में हम आपको फिर किसी रोज़ विस्तार में बतायेंगे, सुनिये आज का यह गीत।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. गीतकार न्याय शर्मा का कलाम.
2. जयदेव की धुन है इस दर्द भरे गीत में.
3. मुखड़े में शब्द है - "हादसा".

पिछली पहेली का परिणाम -
आज भी शरद जी ही आगे रहे. बहुत बढ़िया साहब. ३६ अंक हो गए हैं आपके. पराग जी आपने जावेद साहब के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी दी है. मनु जी, स्वप्न जी आप सब से ही तो महफिलें शाद है. अवध लाल जी ने अच्छी जानकारी दी, धन्येवाद.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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9 श्रोताओं का कहना है :

'अदा' का कहना है कि -

जब ग़म-ए-इश्क़ सताता है तो हँस लेता हूँ
हादसा याद जब आता है तो हँस लेता हूँ

'अदा' का कहना है कि -

film : kinare-kinare
awaaz: mukhesh

शरद तैलंग का कहना है कि -

आज तो किस्मत ने साथ नहीं दिया घर में 3 बजे दोपहर से अभी ३ मिनट पहले तक पावर कट होने के कारण कम्प्यूटर चलाना मुमकिन नहीं था अभी जब लाइट आई तो अदा जी का जवाब आ ही गया हैं । मैं भी उनके जवाब का समर्थन करता हूँ । बधाई अदा जी !

Dileepraaj Nagpal का कहना है कि -

akhbaaro me aisi baate nahi milti, jo aapke blog per padhne ko mili

manu का कहना है कि -

hmn..
:)

sumit का कहना है कि -

अरे वाह
अगली बार मुकेश जी का गाना सुनने को मिलेगा

sumit का कहना है कि -

रफी साह्ब का ये गाना भी बहुत प्यारा है

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मुझे तो सही जवाब पता नहीं लेकिन, अदा जी बधाई.

Manju Gupta का कहना है कि -

पता नहीं गानों की कीताब से जवाब मिलेगे .

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