रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Friday, July 3, 2009

तुम ही मेरे मीत हो, तुम ही मेरी प्रीत हो - हेमंत कुमार और सुमन कल्याणपुर का बेहद रूमानी गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 130

दोस्तो, कल ही हम बात कर रहे थे दो गीतों में शाब्दिक और सांगीतिक समानता की। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज जो गीत हम लेकर आये हैं उस गीत में आप को फ़िल्म 'ख़ानदान' के गीत "तुम ही मेरे मंदिर तुम ही मेरी पूजा" से कुछ निकटता नज़र आयेगी। 'ख़ानदान' फ़िल्म 1965 में आयी थी जिसके संगीतकार थे रवि। और आज जिस गीत को हम लेकर आये हैं वह है फ़िल्म 'प्यासे पंछी' का, जो आयी थी सन् 1961 में। इसका अर्थ यह है कि 'प्यासे पंछी' फ़िल्म का यह गीत 'ख़ानदान' के गीत से पहले बना था, लेकिन लोकप्रियता की दृष्टि से फ़िल्म 'ख़ानदान' के गीत को ज़्यादा सफलता मिली। संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी ने 'प्यासे पंछी' में संगीत दिया था और लक्ष्मीकांत इस फ़िल्म में उनके सहायक थे। सुमन कल्याणपुर और हेमन्त कुमार की आवाज़ों में यह गीत है "तुम ही मेरे मीत हो, तुम ही मेरी प्रीत हो, तुम ही मेरी आरज़ू का पहला पहला गीत हो"। उन दिनों सुमन जी की आवाज़ लता जी की आवाज़ से इस क़दर मिलती थी कि कई बार तो बड़े-बड़े दिग्गज और फ़िल्म संगीत के बड़े जानकार भी धोखा खा जाते थे। इस गीत को सुनते हुए भी यही आभास होता है कि कहीं लता जी तो नहीं गा रहीं। सुमन कल्याणपुर के लिये यह वरदान भी था और अभिशाप भी कि उनकी आवाज़ लताजी से मिलती-जुलती थी। लेकिन सरगम के अथाह सागर में डूबकर मोती तलाश करनेवालों को सुमन जी के गाये गानों की अहमीयत का अंदाज़ा है। उनकी आवाज़ का अल्हड़पन और शोख़ी सुननेवालों को लुभाते हैं। उन दिनों लताजी की गायिकी का असर इतना विशाल था कि हर फ़िल्मकार उनसे गानें गवाना चाहते थे। लेकिन कम बजट की फ़िल्मों के निर्माताओं के लिए चूँकि लताजी महंगी साबित होतीं, इसलिए उन फ़िल्मों में सुमन कल्याणपुर से गवाया जाता था। सुमन जी को 'गरीबों की लता' कहा जाने भी लगा था। ये तो थी सुमन जी की कुछ बातें, हेमन्त दा के बारे में कुछ बातें हम पहले बता चुके हैं, कुछ आगे भी बतायेंगे, फ़िल्हाल बस इतना ही कहेंगे कि कल्याणजी-आनंदजी ने हेमन्त दा से कई ख़ूबसूरत गाने गवाये हैं, जिनमें से कुछ लता जी के साथ युगल गीत हैं। सुमन जी के साथ उनका गाया हुआ यह गीत सब से ज़्यादा मशहूर हुआ था।

1961 में बनी 'प्यासे पंछी' का निर्माण श्री प्रकाश पिक्चर्स ने किया था और इस का निर्देशन किया था हरसुख भट्ट ने। अभी हाल ही में हम ने आप को 'रेशमी रूमाल' फ़िल्म का एक गीत सुनवाया था, उस फ़िल्म के निर्देशक भी हरसुख भट्ट साहब ही थे। 'प्यासे पंछी' के मुख्य कलाकार थे महमूद और अमीता। प्रस्तुत गीत के अलावा इस फ़िल्म में मुकेश के गाये कई गीत प्रसिद्ध हुए थे, ख़ास कर फ़िल्म का शीर्षक गीत "प्यासे पंछी नील गगन में गीत मिलन के गाये"। इस फ़िल्म में कुल 10 गीत थे जिनमें से 3 मुकेश ने गाये, 2 लता, 1 मुकेश-लता, 1 रफ़ी-बलबीर-शमशाद बेग़म, 1 गीता दत्त-मन्ना डे, 1 रफ़ी-सुमन कल्याणपुर और सुमन-हेमन्त का गाया प्रस्तुत गीत। यह फ़िल्म कल्याणजी-आनंदजी की शुरू-शुरू की फ़िल्मों में से एक है। फ़िल्म तो बहुत ज़्यादा नहीं चली थी, लेकिन इस प्रतिभाशाली संगीतकार जोड़ी के काम को काफ़ी सराहना मिली थी इस फ़िल्म से।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. योगेश का लिखा गीत।
2. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन डॉक्टर की भूमिका में हैं।
3. मुखड़े में शब्द है 'चुपके'।

पिछली पहेली का परिणाम-
इस बार हमारी दिग्गज़ मात खा गईं। हमने इस बार क्लू थोड़े कम दिये, शायद इसलिए भी स्वप्न मंजूषा कंफ्यूज़ हो गईं। शरद जी ने बिलकुल सही जवाब दिया। बधाई। शरद जी ने 32 अंक हो गये। पराग जी आपका धन्यवाद

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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10 श्रोताओं का कहना है :

'अदा' का कहना है कि -

kahin door

शरद तैलंग का कहना है कि -

film : aanand
singer Mukesh

शरद तैलंग का कहना है कि -

kahIn door jab din dhal jaye

Disha का कहना है कि -

kahin door jab din dhal jaaye
saanjh ki dolhan badan curaaye chupke se aaye
aanand
mukesh

संगीता पुरी का कहना है कि -

सुन लिया .. बहुत सुंदर !!

sumit का कहना है कि -

चुपके शब्द से मुझे ये गाना याद आ रहा है
चुपके चुपके चल दी पुरवैया........

manu का कहना है कि -

hmn..

Parag का कहना है कि -

शरद जी आज एक मिनट से जीत गए. आप का और अदा जी दोनोंका जवाब सही है. दोनोंको बधाईया

आभारी
पराग

Shamikh Faraz का कहना है कि -

इस बार तो जवाब मुझे भी मालूम था. मैंने यह फिल्म देखी है. गाना है कही दूर जब दिन ढल जाये. इसी के साथ इसमें गुलज़ार साहब द्वारा लिखी पंक्तियाँ "मौत तू एक कविता है" बहुत पसंद हैं मुझे.

Manju Gupta का कहना है कि -

शरद जी को बधाई.

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