ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 143
आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में संगीतकार चित्रगुप्त के संगीत की बारी। इससे पहले हमने आप को उनके संगीत से सजी भोजपुरी फ़िल्म 'लागी नाही छूटे राम' का लोक रंग में डूबा एक गीत सुनवाया था। आज का गीत लोक संगीत पर तो आधारित नहीं है लेकिन गीत इतना मधुर बन पड़ा है कि बार बार सुनने को जी चाहता है। लता मंगेशकर की आवाज़ में यह गीत है फ़िल्म 'आकाशदीप' का, जिसे लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी ने। "दिल का दीया जलाके गया ये कौन मेरी तन्हाई में, सोये नग़में जाग उठे होठों की शहनाई में"; पहला पहला प्यार किस तरह से नायिका के नाज़ुक दिल पर असर करती है, उसका बेहद बेहद ख़ूबसूरत वर्णन हुआ है इस कोमल गीत में। मजरूह साहब ने क्या ख़ूब लिखा है कि "प्यार अरमानों का दर खटकाये, ख़्वाब जागी आँखों से मिलने को आये, कितने साये डोल पड़े सूनी सी अँगनाई में"। बोल, संगीत और गायकी के लिहाज़ से यह गीत उत्कृष्ट है, उत्तम है। 'आकाशदीप' फ़िल्म आयी थी १९६५ में फणी मजुमदार के निर्देशन में। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे धर्मेन्द्र, नंदा, निम्मी, अशोक कुमार, और महमूद। इस फ़िल्म में धर्मेन्द्र पर फ़िल्माया गया रफ़ी साहब का गाया "मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था मुझे आप किसलिए मिल गये" गीत भी चित्रगुप्त की बेहतरीन रचनायों में गिना जाता है।
चित्रगुप्त जी के बेटे आनंद और मिलिंद ने भी बतौर संगीतकार जोड़ी अच्छा नाम कमाया है फ़िल्म जगत में। अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए, अपने पिता को याद करते हुए और ख़ासकर 'आकाशदीप' फ़िल्म के गीतों को याद करते हुए मिलिंद जी बताते हैं (सौजन्य: विविध भारती) - "मुझे कई बार याद है, हमारे घर में राईटर्स और म्युज़िक डिरेक्टरस की मीटिंगस हुआ करती थी, खाना वाना भी बनता था। एक दिन स्कूल से आया तो देखा कि बक्शी साहब (आनंद बक्शी) बाहर बैठे हैं, उस समय उन्हे ब्रेक नहीं मिला था। अंदर गया तो देखा कि प्रेम धवन बैठे हैं, दूसरे दिन मजरूह सुल्तानपुरी बैठे थे। लता जी से भी मुलाक़ात हुई, उन्हे हम लता दीदी नहीं बल्कि लता आंटी कहते थे। मेरा नाम 'मिलिंद', जो कि महाराष्ट्रीयन नाम है, लता आंटी ने ही रखा है। पिताजी हमेशा यही कहते थे कि जितना मेलडी पर कन्सेन्ट्रेट करोगे, गाना उतना ही अच्छा बनेगा। हम दोनों ने कुछ बनाकर एक दिन जब उनको सुनाया तो उन्होने कहा कि 'यह आप का कलर है, मेरा नहीं, मैं यही चाहता था कि आप के संगीत में मेरा प्रभाव न पड़े, क्यूंकि समय के हिसाब से आप को चलना है'. उनके बहुत से गानें हम दोनों को पसंद है, लेकिन जो 'फ़र्स्ट थौट' पे याद आ जाते हैं वो हैं "जाग दिल-ए-दीवाना", "मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था", और "दिल का दीया जलाके गया"। लताजी के गाये इस गीत के बारे में मिलिंद का कहना है "यह गीत दुर्लभ है क्यूंकि लता आंटी ने इसे 'हस्की टोन' में गाया है, 'हस्की सॊफ़्ट टोन' में। इस तरह से उन्होने बहुत कम गाये हैं, उनके गीत ऊँची 'टोन' में होते हैं। तो यह जो 'हस्की फ़ील' थी, बहुत कमाल की थी।" वाक़ई दोस्तों, लता जी की आवाज़ बड़ा ही अनोखा सुनाई देता है इस गीत में। ख़ास कर जब वो गाती हैं कि "काँपते लबों को मैं खोल रही हूँ" तो सचमुच जैसे काँपते हुए लब हमारी आँखों के सामने आ जाते हैं। लता जी ने अपनी आवाज़ और गायकी के ज़रिए इस गीत में जो अभिनय किया है वो शायद बड़ी बड़ी अभिनेत्रियाँ न कर पाये। सुनिये यह गीत, और इसमे अपनी पसंद के साथ साथ मेरी पसंद भी शामिल कर लीजिए, क्युंकि मुझे यह गीत बेहद बेहद बेहद पसंद है।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. इस्मत चुगताई की लिखी कहानी पर आधारित थी ये फिल्म.
2. इस गीत के गायक ने इस फिल्म में अभिनय भी किया था. अभिनेत्री थी नूतन.
3. मुखड़े की पहली लाइन में शब्द है -"बस" (कंट्रोल).
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह पराग जी आखिरकार बाज़ी मार ही ली आपने. ८ अंकों के लिए बधाई. कल शरद जी हमारे चूक गए हम तो ये मान बैठे थे कि हमें हमारा पहला विजेता मिल गया, खैर कल नहीं शरद जी आज सही. कल ओल्ड इस गोल्ड की रौनक लौटी बहुत दिनों बाद, हमारा मतलब स्वप्न मंजूषा जी लौटी. ओल्ड इस गोल्ड की पूरी टीम और आवाज़ परिवार उनके पति के शीघ्र स्वस्थ लाभ की दुआ कर रहा है ताकि मोहतरमा जल्दी से वापस एक्टिव हो जाये. मनु जी अब आप भी थोडी फुर्ती दिखाएँ ज़रा...
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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10 श्रोताओं का कहना है :
प्यार पर बस तो नही है मेरा लेकिन फिर भी
गायक तलत मेहमूद
badahi shard ji bahut bahut bahut badhai, main chali ab hospital, aaj to bas isi ke liye baithi thi...
pyar par bas
प्यार पर बस तो नही है मेरा लेकिन फिर भी
तू बता दे के तुझे प्यार करुँ या ना करुँ
फिल्म- सोने की चिड़िया
संगीत -ओ.पी. नैय्यर
गायक/गायिका-तलत महमूद- आशा
hnm...
ek dam sahi..
mere khaas pasandeeda gaanon mein se ek hai. Sharad jee ko badahi. Aap ban gaye pehle vijeta.
Parag
सही है जवाब आप का
आप ने भी हमें याद किया आप का धन्यवाद .जब आप के पति अच्छे हो के घर आजायें तो कृपा कर बताइयेगा जरूर
सादर
रचना
इस गाने के बारे में जो भी बताया उससे इस गाने को सुनने का मज़ा और दुगना हो गया.
वैसे ये हस्की टोन इसलिये लायी गयी थी क्योंकि ये गीत फ़िल्म की नायिका निम्मी पर फ़िल्माया गया था, जो गूंगी होने के कारण गा नही सकती , और इसीलिये ...
प्यार पर बस तो नही है ये गीत भी बहुत ही बढि़यां है.
बहुत ही ख़ूबसूरत नग्मा
ऊपर के अब तक की सभी के गाना सही है
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