रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Friday, February 20, 2009

"ससुराल गैन्दाफूल..."- रेखा भारद्वाज का चिर परचित अंदाज़




"नमक इश्क का", फ़िल्म ओमकारा का ये हिट गीत था जिसे गाने के बाद रेखा भरद्वाज ने कमियाबी का असली स्वाद चखा था. इस गीत के संगीतकार हैं विशाल भरद्वाज जो रेखा के पति और एक कामियाब संगीतकार होने के साथ साथ एक उत्कृष्ट निर्देशक भी हैं. नमक इश्क का गीत लिखा था गुलज़ार साहब ने जिन्हें रेखा अपना मेंटर मानती है. १९९६ में बनी गुलज़ार की फ़िल्म "माचिस" से विशाल भरद्वाज बतौर संगीतकार चर्चा में आए थे. इसी फ़िल्म में रेखा ने विशाल को सहयोग दिया था संगीत में. तत्पश्चात चाची ४२०, गोड़ मदर, हु तू तू और मकडी में उन्होंने विशाल के साथ काम किया. कभी कभार कुछ गीतों को अपनी आवाज़ भी दी.

विशाल ने "मकडी" से निर्देशन में कदम रखा, और अगली फ़िल्म "मकबूल" में उन्होंने रेखा से दो बेहद दमदार "रोने दो" और "चिंगारी" गीत गवाए, २००३-०४ में उन्हीं के संगीत निर्देशन में रेखा की पहली चर्चित एल्बम "इश्का इश्का" आई. इससे ठीक दस साल पहले १९९४ में जब रेखा बुल्ले शाह के गीतों पर विशाल के निर्देशन में काम कर रही थी, उन्हीं दिनों माचिस की सिटिंग के लिए उनका गुलज़ार साहब के यहाँ आना जाना हुआ, जहाँ एक दिन गुलज़ार साहब ने उनसे वादा किया कि वो उनकी अल्बम के लिए गीत लिखेंगे. और गुलज़ार साहब ने अपना वादा निभाया भी.

इस एल्बम के बाद उन्हें एक अच्छे सूफी गायिका के रूप में देखा जाने लगा था. विशाल को जब भी किसी गीत में एक अलग लहजे की आवाज़ की दरकार होती वो रेखा को ही चुनते. याद कीजिये "एक वो दिन भी थे..." (चाची ४२०), "मेरी जान (भागमती), और "फूँक दे.." (नो स्मोकिंग). ऐसा नही कि रेखा ने सिर्फ़ विशाल के संगीत निर्देशन में ही गाया हो, जैसा कि कुछ आलोचक उन्हें विशाल की परछाई बता कर दरकिनार कर देते हैं. शांतनु मोइत्रा के निर्देशन में फ़िल्म "लागा चुनरी में दाग" का शीर्षक गीत इस मिथक को तोड़ने के लिए काफ़ी है. इस गीत में नायिका के मन में बदलते भावों को अपनी आवाज़ से उभारना आसान नही था और शुद्ध और क्लिष्ट हिन्दी के शब्दों का इस्तेमाल किया था इस गीत में गीतकार स्वानंद किरकिरे ने भी, पर रेखा ने इस चुनौती भरे गीत को भी उतनी खूबी से निभाया जैसे ठीक उल्टे मिजाज़ के (ठेठ देसी नाच गीत)"नमक इश्क का" गीत को निभाया था.

रेखा आजकल एक बार फ़िर खूब तारीफें बटोर रही है, दिल्ली ६ में पहली बार ऐ आर रहमान के निर्देशन में गाये रंगीले अंदाज़ के अपने गीत "गैन्दाफूल" के लिए. वहीदा रहमान पर फिल्माए गए इस गीत में देसी छेड़ छाड़ तो है ही, एक अलग तरह मस्ती भी है, जो बार बार सुने जाने को मजबूर करती है. रेखा की आवाज़ अपने पूरे शबाब पर है यहाँ और प्रसून के शब्द भी गुदगुदाते हैं. तो सुनिए...क्या क्या होता है नई नवेली दुल्हन के साथ ससुराल में -




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4 श्रोताओं का कहना है :

MANVINDER BHIMBER का कहना है कि -

क्या बात है.....शब्द नही है इस दीत को sunne के बाद ....बहुत khoob.....

सुशील छौक्कर का कहना है कि -

आज दोपहर में ये गाना सुना तो दिल खुश हो गया था। और इस पोस्ट से तो कई बार सुन चुका हूँ। सच मीठा सा है यह गाना।

Anonymous का कहना है कि -

लोक संगीत की चोरी पर कैसे इतराया जाता है कोई प्रसून और रहमान से पूछे।

विश्व दीपक का कहना है कि -

ऎसा क्यूँ होता है कि जब किसी को किसी की बुराई करनी होती है तो वह एनोनिमस बन जाता है। हिम्मत है तो भाई खुलकर लिखो। छुपकर तो कुत्ता भी शेर बन जाता है। और हाँ, एनोनिमस बंधु, अगर आपको पता न हो तो यह जान लें कि इस गाने में रहमान के साथ एक और संगीतकार का नाम है। अगर रहमान को गाना चुराना हीं होता तो दूसरे संगीतकार का नाम देने की जरूरत हीं क्या होती।

आसमान की तरह मुँह करके थूकने वाले की क्या हालत होती है, एनोनिमस बंधु शायद नहीं जानते हैं।

-विश्व दीपक

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