रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Saturday, February 28, 2009

वो हमसे चुप हैं...हम उनसे चुप हैं...मनाने वाले मना रहे हैं...



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 09

"तुम्हारी महफ़िल में आ गये हैं, तो क्यूँ ना हम यह भी काम कर लें, सलाम करने की आरज़ू है, इधर जो देखो सलाम कर लें". दोस्तों, सन 2006 में फिल्म "उमरावजान" की 'रीमेक' बनी थी, जिसका यह गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ था. अनु मलिक ने इसे संगीतबद्ध किया था, याद है ना आपको यह गीत? अच्छा एक और गीत की याद हम आपको दिलाना चाहेंगे, क्या आपको सन् 2002 में बनी फिल्म "अंश" का वो गीत याद है जिसके बोल थे "मची है धूम हमारे घर में" जिसके संगीतकार थे नदीम श्रवण? चलिए एक और गीत की याद आपको दिलवाया जाए. संगीतकार जोडी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर और साथियों ने राज कपूर की 'हिट फिल्म' सत्यम शिवम सुंदरम में एक गीत गाया था जिसके बोल थे "सुनी जो उनके आने की आहट, गरीब खाना सजाया हमने". इन तीनो गीतों पर अगर आप गौर फरमाएँ तो पाएँगे की इन तीनो गीतों के मुख्डे की धुन करीब करीब एक जैसी है. अब आप सोच रहे होंगे कि इनमें से किस गीत को हमने चुना है आज के 'ओल्ड इस गोल्ड' के लिए. जी नहीं, इनमें से कोई भी गीत हम आपको नहीं सुनवा रहे हैं. बल्कि हम वो गीत आपको सुनवाना चाहेंगे जिसके धुन से प्रेरित होकर यह तीनो गाने बने. है ना मज़े की बात!

तो अब उस 'ओरिजिनल' गीत के बारे में आपको बताया जाए! यह गीत है सन् 1950 में बनी फिल्म "सरगम" का जिसे लता मंगेशकर और चितलकर ने गाया था. जी हाँ, यह वही चितलकर हैं जिन्हे आप संगीतकार सी रामचंद्र के नाम से भी जानते हैं. फिल्मीस्तान के 'बॅनर' तले बनी इस फिल्म में राज कपूर और रेहाना थे, और इस फिल्म के गाने लिखे थे पी एल संतोषी ने. उन दिनों पी एल संतोषी और सी रामचंद्र की जोडी बनी हुई थी और इन दोनो ने एक साथ कई 'हिट' फिल्मों में काम किया. तो अब आप बेक़रार हो रहे होंगे इस गीत को सुनने के लिए. हमें यकीन है कि इस गीत को आप ने एक बहुत लंबे अरसे से नहीं सुना होगा, तो लीजिए गुज़रे दौर के उस ज़माने को याद कीजिए और सुनिए सी रामचंद्रा का स्वरबद्ध किया हुया यह लाजवाब गीत सिर्फ़ और सिर्फ़ आवाज़ के 'ओल्ड इस गोल्ड' में.



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. हेलन पर फिल्माए गए इस क्लब सोंग में जोड़ी है ओ पी नैयर और आशा की.
२. गीतकार हैं शेवन रिज़वी.
३. मुखड़े में शब्द है -"कातिल"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम-
पहली बार तन्हा जी ने जवाब देने की कोशिश की और परीक्षा में खरे उतरे. मनु जी और दिलीप जी दोनों ने भी एक बार फिर सही गीत पकडा. आप सभी को बधाई.

प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.



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3 श्रोताओं का कहना है :

संजय ग्रोवर Sanjay Grover का कहना है कि -

baqi sabke bajte haiN par aapke blog ke gaane mere P.C. meN nahiN bajte. kyoN ?

तपन शर्मा का कहना है कि -

संजय ग्रोवर जी,
सम्भव है कि आपके पी.सी पर प्लैश प्लेयर का वर्ज़न अलग हो।
गाने सुनने के लिये Internet Explorer 6.0/7.0 अथवा Mozilla Firefox 3.0 का प्रयोग करें| इसके अलावा आप Flash Player 10.0 जो कि Latest है, को अपने पी.सी व ब्राऊज़र पर इंस्टॉल करें। फिर बताइयेगा कि आप सुन पा रहे हैं या नहीं।
मेरे साथ भी यही दिक्कत थी, इसीलिये मैंने ये कदम उठाये और अब सुन पाता हूँ।

manu का कहना है कि -

वो हम से चुप हैं...हम उन से......:::)))
सोचा तो था के यहाँ से चुपचाप निकल लूं,,,,,क्यूंकी आमतौर पर क्लब सांग हेलन टाइप के कम ही पसंद हैं,,,,सो जानता भी नहीं,,,पर जहां रोज का आना जाना हो वहाँ से चुपके से निकल जाना आसान नहीं होता,,,,
बस यही कहने आया हों के इस गीत के बारे में रत्ती भर भी अंदाजा लगाना मुश्किल है,,,ना गीत कार से कोई पता चला ना कातिल से,,,,,
हाँ कोई याद दिला दे तो,,,,,, शायद याद आ जाए,,,,

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