
बाँसुरी ......वंसी ,वेणु ,वंशिका कई सुंदर नामो से सुसज्जित हैं बाँसुरी का इतिहास, प्राचीनकाल में लोक संगीत का प्रमुख वाद्य था बाँसुरी । अधर धरे मोहन मुरली पर, होंठ पे माया विराजे, बाजे मुरलियां बाजे ..................
मुरली और श्री कृष्ण एक दुसरे के पर्याय रहे हैं । मुरली के बिना श्री कृष्ण की कल्पना भी नही की जा सकती । उनकी मुरली के नाद रूपी ब्रह्म ने सम्पूर्ण चराचर सृष्टि को आलोकित और सम्मोहित किया । कृष्ण के बाद भी भारत में बाँसुरी रही, पर कुछ खोयी खोयी सी, मौन सी. मानो श्री कृष्ण की याद में उसने स्वयं को भुला दिया हो, उसका अस्तित्व तो भारत वर्ष में सदैव रहा. हो भी कैसे न ? आख़िर वह कृष्ण प्रिया थी. किंतु श्री हरी के विरह में जो हाल उनके गोप गोपिकाओ का हुआ कुछ वैसा ही बाँसुरी का भी हुआ, कुछ भूली -बिसरी, कुछ उपेक्षित सी बाँसुरी किसी विरहन की तरह तलाश रही थी अपने मुरलीधर को, अपने हरी को ।
युग बदल गए, बाँसुरी की अवस्था जस की तस् रही, युगों बाद कलियुग में पंडित पन्नालाल घोष जी ने अपने अथक परिश्रम से बांसुरी वाद्य में अनेक परिवर्तन कर, उसकी वादन शैली में परिवर्तन कर बाँसुरी को पुनः भारतीय संगीत में सम्माननीय स्थान दिलाया। लेकिन उनके बाद पुनः: बाँसुरी एकाकी हो गई ।
हरी बिन जग सुना मेरा ,कौन गीत सुनाऊ सखी री?
सुर,शबद खो गए हैं मेरे, कौन गीत बजाऊ सखी री ॥

बाँसुरी की इस अवस्था पर अब श्री कृष्ण को तरस आया और उसे उद्धारने को कलियुग में जहाँ श्री विजय राघव राव और रघुनाथ सेठ जैसे महान कलाकारों ने महान योगदान दिया, वही अवतार लिया स्वयं श्री हरी ने, अपनी प्रिय बाँसुरी को पुनः जन जन में प्रचारित करने, उसके सुर में प्राण फूँकने, उसकी गरिमा पुनः लौटाने श्री हरी अवतरित हुए हरी प्रसाद चौरसिया जी के रूप में । पंडित हरीप्रसाद चौरसिया जी......एक ऐसा नामजो भारतीय शास्त्रीयसंगीत में बाँसुरी की पहचान बन गया ।एक ऐसा नाम जिसने श्री कृष्ण की प्राणप्रिय बाँसुरी को, पुनः: भारत वर्ष में ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व में सम्पूर्ण चराचर जगत में प्रतिष्ठित किया, प्रतिस्थापित किया, प्रचारित किया । गुंजारित कियासम्पूर्ण सृष्टि को बाँसुरी के नाद देव से । आलोकित किया बाँसुरी के तम्हरण ब्रह्म नाद रूपी प्रकाश से ब्रह्माण्ड को ।

श्री कृष्ण का जन्म हुआ था मथुरा नगरी के कारावास में, मथुरा नगरी यानी यमुना की नगरी, उसके पावन जल के सानिध्य में श्री कृष्ण का बालपन, कुछ यौवन भी गुजरा. पंडित हरीप्रसाद जी का जन्म १ जुलाई १९३८ के दिन गंगा,यमुना सरस्वती नदी के संगम पर बसी पुण्य पावननगरी इलाहाबाद में हुआ,पहलवान पिता की संतान पंडित हरी प्रसादजी को उनके पिताजी पहलवान ही बनाना चाहते थे, किंतु उनका प्रेम तो भारतीय संगीत से था, बाँसुरी से था । शास्त्रीय गायन की शिक्षा पंडित राजाराम जी से प्राप्त की और बाँसुरी वादन की शिक्षा पंडित भोलानाथ जी से प्राप्त की । संगीत साधना से पंडित हरिप्रसादजी का बाँसुरी वादन सतेज होने लगा । बाँसुरी वादन की परीक्षा में सफल होने के बाद पंडितजी आकाशवाणी पर बाँसुरी के कार्यक्रम देने लगे। कुछ समय पश्चात् आकाशवाणी के कटक केन्द्र पर इनकी नियुक्ति हुई और इनके उत्कृष्ट कार्य के कारण ५ वर्ष के भीतर ही आकाशवाणी के मुख्यालय मुंबई में इनका तबादला हो गया।
पहले पंडित जी सीधी बाँसुरी बजाते थे, तत्पश्चात उन्होंने आडी बाँसुरी पर संगीत साधना शुरू की, बाँसुरी में गायकी अंग, तंत्र वाद्यों का आलाप आदि अंगो के समागम की साधना पंडित जी करने लगे । उसी समय इनका संगीत प्रशिक्षण आदरणीय अन्नपूर्णा देवी जी के सानिध्य में प्रारम्भ हुआ, विदुषी अन्नपूर्णा जी के संगीत शिक्षा से इनकी बाँसुरी और भी आलोकित हुई ।आइये सुनते हैं पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी का बांसुरी वादन, तबले पर है उस्ताद जाकिर हुसैन. ये दुर्लभ विडियो लगभग ९३ मिनट का है. हमें यकीन है इसे देखना-सुनना आपके लिए भी एक सम्पूर्ण अनुभव रहेगा.
अगली कड़ी में पंडित हरिप्रसाद चौरासियाँ जी की बांसुरी यात्रा सविस्तार
आलेख प्रस्तुतिकरण
वीणा साधिका
राधिका बुधकर
विडियो साभार - राजश्री डॉट कॉम


नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








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श्रोता का कहना है :
पंडित जी के बारे में इतने विस्तार से जानकारी देने के लिए आभार।
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