रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, February 23, 2009

माई री मैं कासे कहूँ...मदन मोहन की दुर्लभ आवाज़ में



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 04

दोस्तों, अगर संगीतकार मदन मोहन के स्वरबद्ध फिल्मों पर गौर किया जाए तो हम पाएँगे की कुछ फिल्मों को छोड्कर इनमें से अधिकतर फिल्में 'बॉक्स ऑफीस' पर उतनी कामयाब नहीं रही. लेकिन जहाँ तक इन फिल्मों के संगीत का सवाल है, तो हर एक फिल्म में मदन मोहन का संगीत कामयाब रहा, जिन्हे भूरी भूरी प्रशंसा मिली. सच तो यह है कि मदन मोहन के संगीत में ऐसे कुछ कम चलनेवाले फिल्मों के कई गीत आज कालजयी बन गये हैं. ऐसा ही एक कालजयी गीत आज हम आपके लिए लेकर आए हैं 'ओल्ड इस गोल्ड' में.

1970 में एक फिल्म आई थी "दस्तक", जिसका निर्देशन किया था राजिंदर सिंह बेदी ने. संजीव कुमार और रहना सुल्तान अभिनीत यह फिल्म 'बॉक्स ऑफीस' पर बुरी तरह से 'फ्लॉप' रही. लेकिन इस फिल्म के संगीत के लिए मदन मोहन को मिला भारत सरकार की ओर से उस साल के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार. यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है की राष्ट्रीय पुरस्कार सभी भाषाओं के फिल्मों को ध्यान में रखकर दिया जाता है. इसका यह अर्थ हुआ कि मदन मोहन केवल 'बोलीवुड' के संगीतकारों में ही नहीं बल्कि देश भर के सभी भाषाओं के संगीतकारों में श्रेष्ठ साबित हुए. बहरहाल हम वापस आते हैं फिल्म दस्तक के संगीत पर. इस फिल्म के गाने बहुत ही ऊँचे स्तर के हैं जिनमें 'मास-अपील' से ज़्यादा 'क्लास-अपील' की झलक है. यह गाने आम जनता में बहुत ज़्यादा चर्चित ना रहे हों, लेकिन संगीत के सुधि श्रोताओं को इन गीतों की अहमियत का पूरा पूरा अहसास है. मजरूह सुल्तानपुरी ने इस फिल्म में गीत लिखे और लता मंगेशकर की पूर-असर आवाज़ ने इन गीतों को मधुरता की चोटी पर पहुँचा दिया. चाहे वो "हम हैं माता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह" हो या फिर शास्त्रीयता का रंग लिए हुए "बैयाँ ना धरो ओ बलमा", हर एक गीत अपने आप में एक 'मास्टरपीस' है. लता मंगेशकर का ही गाया एक और गीत है "माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की", जिसे सुनकर मानो मान एक अजीब दर्द से भर उठ्ता है. इसी गीत को हमने चुना है आज के इस स्तंभ में, लेकिन जो आवाज़ आप इस गीत में सुनेंगे, वो लता मंगेशकर की नहीं बल्कि खुद मदन मोहन की होगी. जी हाँ, इस गीत को मदन मोहन साहब ने भी गाया था, और क्या खूब गाया था. सुनिए यह गीत और महसूस कीजिए दर्द में डूबे किसी दिल की पुकार!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. सचिन दा का अमर संगीत.
२. उन्हीं की अपनी आवाज़ में में है ये दुर्लभ गीत
३. ममतत्व से भरे इस गीत के मुखड़े में "आंचल" शब्द आता है.

कुछ याद आया...?

कल की पहेली का सही जवाब दिया महेंद्र कुमार शर्मा जी और मनु जी ने. आप दोनों को बधाई.

प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सदर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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6 श्रोताओं का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

गीत बहुत प्यारा है। सुनकर दिल प्रसन्न हो गया। आभार।

manu का कहना है कि -

बहुत ज्याद पहले सुना याद आता है....

ऐसा कुछ है शायद .......

मेरी दुनिया है माँ .....तेरे आँचल में.....

क्या यही है सजीव जी...?दूसरे लता वाला तो मैं सदा सुनता हूँ...पर ये मदन मोहन वाला जब कभी ऊपर वाला खुश हो तो ही सुनना नसीब होता है...आपने सुनवाया...
आपका बहुत बहुत शुक्रिया

आभारी..मनु....

neelam का कहना है कि -

सुजोय जी ,
आमी जानी ना ,आपनि आमार थेके छोटो न बौडो किंतु आमी दादा बोल्छी आपनि के आर ,आभार कोर्छी ओउतो भालो गान सौन्वार्जोनो ,१२ बोछ्र आगे सुनेछिलाम ,रेडियो थेके ,आज के आमी ओनेक बार सेई एक गान ट सुनते पाड्बो |
एक बार आबार धोनोबाद कोर्छी |बांग्ला कोथा लिखते भूले गेइछी सेई जोंये हिन्दी ते बांग्ला लिख्छी

manu का कहना है कि -

हां...हा...हा...हा...हा...,,, नए भारत वासी को नमस्कार
सजीव जी, यदि इसे हिन्दी में ट्रांसलेट कर सके तो बताइये के क्या इस में उसी गीत का ज़िक्र है जो मैंने अनुमान लगाया है.....

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

ये गीत एक अनमोल खजाना है, जिसे आपने सुनवा कर हम पर उपकार किया.

सचिन दा का गीत है

मेरी दुनिया है मां तेरे आंचल में...

अमरप्रेम

संगीता पुरी का कहना है कि -

बहुत सुंदर गीत है....अभी सुन ही रही हूं...महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..

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