रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


ComScore
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Saturday, August 15, 2009

ताक़त वतन की हमसे है, हिम्मत वतन की हमसे है.....जय भारत के वीर जवान,जय जय हिंदुस्तान...



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 172

मारा देश आज अपना ६३-वाँ स्वाधीनता दिवस मना रहा है। इस ख़ास पर्व पर हम सभी श्रोताओं व पाठकों का हार्दिक अभिनंदन करते हैं। आज ही के दिन सन् १९४७ में दिल्ली के लाल क़िले की प्राचीर पर नेहरु जी ने पहली बार स्वतंत्र भारत में तिरंगा लहराया था। जिस तरह से तिरंगे की तीन रंगों, गेरुआ, सफ़ेद और हरा, का अपना अपना अर्थ है, महत्व है, इन्ही तीन रंगों के महत्व को उजागर करते हुए आज से अगले तीन दिनों की 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल सजेगी। पहला रंग है गेरुआ, यानी कि वीरता का, या वीर रस का। इतिहास गवाह है हम भारतीयों की वीरता का। जब जब देश पर विपदा आन पड़ी है, इस देश के वीर जवानों ने तब तब अपनी जान की परवाह किए बग़ैर देश को हर संकट से उबारा है। फिर चाहे वह दुश्मनों का आक्रमण हो या कोई प्राकृतिक विपदा। ज़्यादा पीछे जाने की ज़रूरत नहीं, हाल ही में मुंबई आतंकी हमलों के दौरान हमारे जवानों ने जो वीरता दिखायी है कि हमारा सर श्रद्धा से उनके आगे झुक जाता है। तो दोस्तों, वीरता हमारे देश की परंपरा रही है, लेकिन वीर होने का अर्थ हमारा कदापि यह नहीं कि दूसरों पर हम वार करें। इतिहास इस बात का भी गवाह है कि कभी भी हमने किसी मुल्क पर पहले वार नहीं किया है। अक्सर दुश्मनों ने हमारी इस प्रथा को हमारी कमज़ोरी समझने की ग़लती की है, और मात खायी है। ख़ैर, वीर रस पर आधारित हमने जिस गीत को चुना है आज की इस महफ़िल के लिए, वह है फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' का। कवि नीरज का लिखा यह गीत है "ताक़त वतन की तुम से है, हिम्मत वतन की तुम से है, इज़्ज़त वतन की तुम से है, इंसान के हम रखवाले"। जहाँ एक ओर वीर रस कूट कूट कर भरा हुआ है गीत के एक एक शब्द में, वहीं दूसरी ओर इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि चाहे उपर से कितने भी कठोर हम दिखें, हमारे अंदर एक कोमल दिल भी बसता है - "देकर अपना ख़ून सींचते देश के हम फुलवारी, बंसी से बंदूक बनाते हम वो प्रेम पुजारी"। पूरा गीत कुल ७ मिनट और २३ सेकन्ड्स का है, गीत दो भागों में बँटा हुआ है, दोनों भागों में तीन तीन अंतरें हैं, कौन सा अंतरा सब से बेहतर है, यह बताना संभव नहीं।

'प्रेम पुजारी' फ़िल्म आयी थी सन् १९७० में जिसका निर्माण व निर्देशन किया था देव आनंद ने। देव आनंद, वहीदा रहमान व नासिर हुसैन अभिनीत इस फ़िल्म के संगीतकार थे सचिन देव बर्मन। प्रस्तुत गीत मूलतः एक समूह गान है, लेकिन 'लीड सिंगर्स' हैं मोहम्मद रफ़ी और मन्ना डे। फ़िल्म में इस गीत की ख़ास जगह है। जैसे कि फ़िल्म के शीर्षक से ही प्रतीत होता है कि फ़िल्म का नायक शांति प्रिय पात्र होगा, जो दुनिया भर में प्यार लुटायेगा। तो फिर ऐसी कहानी में वीर रस और युद्ध पर जानेवाले फ़ौजियों का गीत क्यों? दरअसल कहानी कुछ ऐसी थी कि दुर्गाप्रसाद बक्शी (नासिर हुसैन) आर्मी के रिटायर्ड जनरल हैं जिन्होने अपने ज़माने में बहादुरी के कई झंडे गाढ़े और कई वीरता पुरस्कारों से सम्मानित हुए। लेकिन एक बार पड़ोसी मुल्क के साथ युद्ध में उन्हे अपनी एक टांग गवानी पड़ी और उन्हे नौकरी से रिटायर होना पड़ा। उधर उनके एकलौते बेटे रामदेव बक्शी (देव आनंद) अपने पिता के स्वभाव के बिल्कुल विपरीत है। वो है तो आर्मी में ही, लेकिन वो है प्रेम का पुजारी। किसी पर बंदूक चलाने से उसका हाथ कांपता है। ऐसी ही किसी कारण से वो गिरफ़तार हो जाता है और उसका 'कोर्ट-मार्शल' हो जाता है। अपने पिता को मुँह दिखाने के क़ाबिल नहीं रह जाता। युद्ध में विजय के बाद जहाँ एक तरफ़ दूसरे फ़ौजी जवान जश्न मनाते हुए प्रस्तुत देश भक्ति गीत गा रहे होते हैं, वहीं झाड़ियों के पीछे छुपकर रामदेव रो रहा होता है। इस फ़िल्म की कहानी भी देव साहब ने ही लिखी है, जिसमें उन्होने यही बताने की कोशिश की है कि वीरता का मतलब यह नहीं कि दुश्मनों को बंदूक की गोलियों से उड़ा दिया जाये। हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति हमें यही सिखाती है कि हम दूसरों से प्यार करें और प्यार ही प्यार दुनिया में फैलायें। वीर वो है जो पहले प्रेम से दुश्मनों को जीतने का प्रयास करता है, अगर फिर भी दुश्मन न मानें, तो फिर हमें दूसरे तरीके भी आते हैं। लीजिए, आज का गीत सुनिए और सदैव यह याद रखें कि वीर होने का अर्थ जंग पे जाकर बंदूक से लोगों को मारना नहीं, बल्कि वीरता का अर्थ है लोगों की जानें बचाना। याद रखें कि हम प्रेम के पुजारी हैं।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. कल के गीत का थीम है "जय विज्ञान".
2. प्रेम धवन है गीतकार इस गीत के.
3. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"आज".

पिछली पहेली का परिणाम -
दिशा जी माफ़ी चाहेंगें कि अंतरे की जगह मुखडा लिखा गया...पर भूल सुधार कर दिया गया था, और आपको सूचित भी इसलिए रोहित जी को अंक मिलेंगें. रोहित जी अब आपके बराबर यानी १० अंकों पर आ चुके हैं. वैसे जो बाकी गीत आप लोगों ने सुझाये वो "जय जवान" थीम पर सटीक नहीं बैठते. वीरता और शौर्य का प्रदर्शन केवल इसी गीत में है...बहरहाल इस छोटी सी बहस से मज़ा दुगना ही हुआ...:)

और हाँ हमारी नियमित श्रोता स्वप्न मंजूषा जी ने देशभक्ति गीतों वाले रविवार विशेष जो कि दिशा जी के संचालन में हुआ था के लिए कुछ लिख भेजा था जो हमें बहुत देर में मिला...पर चूँकि उनके आलेख में आज के हमारे इस गीत का जिक्र था तो हमें लगा कि उसे हम आप सब के साथ आज बाँटें. स्वप्न जी लिखती हैं -

बात उन दिनों की है जब हम कनाडा आये ही थे ...हम अपना पहला १५ अगस्त कनाडा में मना रहे थे. ओटावा की छोटी सी इंडियन कम्युनिटी ने भी १५ अगस्त मनाने थी, एक हाल में सांस्कृतिक कार्क्रम का आयोजन किया गया था, क्योंकि सबको पता था कि मैं भी गाती हूँ इसलिए मुझसे गाने का अनुरोध किया गया था....जैसे ही नाम बुलाया गया स्टेज पर मेरे तीनो बच्चे, मैं और मेरे पति गिटार, और सुरेन जी तबले पर, आ गए...छोटे छोटे बच्चों को देखते ही तालियों की गड़गडाहट से हॉल गूँज उठा...हमने वो गीत गया 'ताक़त वतन की हमसे हैं हिम्मत वतन की हमसे है' मेरे दोनों बेटे सुर में और तन्मयता से गारहे थे, मात्र ६ साल और ७ साल के बच्चे बिटिया मात्र ३ साल की, इतना जोश था के पूरा हॉल गा रहा था और लोग फूट-फूट कर रो रहे थे आज भी सोचती हूँ तो रोमांच से रोंगटे खड़े हो जाते हैं गीत के ख़त्म होते ही मेरे बच्चे न जाने कितनो की गोद में समां गए... उसके बात परंपरा सी बन गयी हर १५ अगस्त और २६ जनवरी को हमारा परिवार ज़रूर ही गाता है, लेकिन इस बार यह नहीं हो पायेगा मेरा छोटा बेटा मेडिकल कॉलेज चला गया है...और बड़े बेटे की परीक्षा उसी दिन है.....
सिर्फ मेरी बेटी दोनों देशों के राष्ट्रीय गीत गाने वाली है...और हम साथ खड़े होंगे अपने तिरंगे को सलामी देने के लिए...
जय हिंद....

इस गीत को गाने के बाद मैंने 'वन्दे-मातरम' आनंद -मठ का गाया.....मुझे नहीं लगता की मैंने उस दिन जैसा गाया वैसा जीवन में फिर कभी गाया...लोग आज भी याद करते हैं मेरा परफॉर्मेंस......शायद देश से बिछड़ने का पहला-पहला अहसास था वो जो आह बन का निकला और वहां बैठे श्रोताओं के ह्रदय मैं समां गया...

आप की इच्छा में जो भी गीत हो सुना दीजियेगा... देशभक्ति का हर गीत सुहाना है मेरे लिए..


हमें यकीन है स्वप्न जी आज इस गीत को यहाँ सुनकर आपने इन सुहाने पलों को फिर से जी लिया होगा

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

8 श्रोताओं का कहना है :

शरद तैलंग का कहना है कि -

इस समय मेरी घडी में 10.42 PM हो रहे है । कहीं कार्यक्रम में जाने के कारण अभी कम्प्यूटर खोला और यह देख कर आश्चर्य हुआ कि आज कोई भी अभी तक जवाब नहीं दे पाया । कहीं आप लोग किशोर कुमार के गाए हुए गीतों में तो इसे नहीं तलाश रहे है । उनके गीतों की श्रृंखला तो शायद समाप्त हो गई है ।

शरद तैलंग का कहना है कि -

आज क्या सारे हिन्दुस्तानी स्वतंत्रता दिवस के जश्न में ही मशगूल हैं । चलिए छोडिए अब बाकी बातें कल ही करेंगे ।

Parag का कहना है कि -

क्योंकि विषय विज्ञानं का है इसलिए लगता है की मुकेश जी और कमल बारोट का यह गीत जवाब लगता है
ना जाने चाँद कैसा होगा
फिल्म का नाम हैं रॉकेट गर्ल

पराग

'अदा' का कहना है कि -

सुजोय जी,
आपका ह्रदय से धन्यवाद करती हूँ कि आपने इस गीत को आज के कार्यक्रम में शामिल किया है..यकीन कीजिये हम लोग एक बार फिर उन यादों को जी गए.. बहुत बहुत बहुत अच्छा लगा सुन कर...
आज यहाँ हमलोग भी आज़ादी का ज़श्न मानाने में व्यस्त रहे इसलिए आवाज़ में भी हाज़िर नहीं हो पाए....

शरद तैलंग का कहना है कि -

पराग जी
जब आप चाँद के बारे में जानकारी मालूम करना चाहते हैं तो इस गीत को भी तो पहचानिए।

Disha का कहना है कि -

chodo kal ki baatein kal ki baat puraani, naye dor mein likhenge ham mil ke nayi kahani ham hindustaani
Aaj puraani zanjeeron ko tod chuke hain
Kya dekhe us manzil ko jo chhod chuke hain
Chaand ke dar pe jaa pahuncha hai aaj zamaana
Naye jagat se hum bhi naata jod chuke hain
Naya khoon hai, nayi umangein, ab hai nayi jawaani

Shamikh Faraz का कहना है कि -

शरद जी और स्वप्न मंजूषा जी के जाते ही आवाज़ की महफ़िल सूनी हो गई.

Manju Gupta का कहना है कि -

१५ अगस्त का स्कूल में जश्न मनाया .जवाब नही दे सकी .

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ