रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Wednesday, August 12, 2009

रूप तेरा मस्ताना...प्यार मेरा दीवाना...रोमांस का समां बाँधती किशोर की आवाज़



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 169

हाल ही में एक गीत आया था "कभी मेरे साथ कोई रात गुज़ार तुझे सुबह तक मैं करूँ प्यार", जिसमें सेन्सुयसनेस कम और अश्लीलता ज़्यादा थी। अगर हम आज से ४० साल पीछे की तरफ़ चलें, तो फ़िल्म 'आराधना' में आनंद बक्शी साहब ने एक गीत लिखा था "रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना, भूल कोई हम से न हो जाए"। यह गीत भी मादक और कामोत्तेजक था लेकिन अश्लील कदापि नहीं। दोस्तों, हमने इन दोनों गीतों का एक साथ ज़िक्र यह कहने के लिए किया कि उस पुराने दौर में भी इस तरह के सिचुयशन बनते थे, लेकिन उस दौर के फ़िल्मकार, गीतकार व संगीतकार इन पर ऐसे गानें बनाते थे जो स्थान काल व पात्रों का भी न्याय करे और साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखें कि उसका फ़िल्मांकन रुचिकर हो, न कि अश्लील। आज 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़' के अंतर्गत सुनिए किशोर दा की आवाज़ में इसी मादक नशीले गीत को, जिसे सुनकर दिल में हलचल सी होने लगती है। गीत के बोल और संगीत मादक और उत्तेजक तो हैं ही, किशोर दा ने भी उसी अंदाज़ में इसे गाया जिस अंदाज़ की इस गीत को ज़रूरत थी।

फ़िल्म 'आराधना' के बारे में विस्तृत जानकारी हम ने आप को शक्ति सामंत पर केन्द्रित शृंखला में दी थी, आप उस पूरे शृंखला को यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। प्रस्तुत गीत उस ज़माने के लिहाज़ से काफ़ी 'बोल्ड' गीत था। सचिनदा ने इस गीत के लिए पहले जो धुन बनाई थी, उसमें किशोर कुमार को कुछ कमी सी लग रही थी, यानी कि जिस नशीले अंदाज़ की ज़रूरत थी वह नहीं आ पा रही थी। तब किशोरदा ने ही इसकी धुन को थोड़ा सा 'मॊर्डन' बना दिया जो बर्मन दादा को भी पसंद आया। अब बारी थी इस गाने के फ़िल्मांकन की। शक्तिदा साधारणतः अपने फ़िल्मों के रिकार्ड किए हुए गाने रात के वक़्त सुना करते थे और उनके फ़िल्मांकन के बारे में योजनाएँ बनाया करते थे। इस गीत के लिए उनके दिमाग़ में एक ख़याल आया कि क्यों ना इस गीत को एक ही 'शॉट' में फ़िल्माया जाए! उन्होने एक काग़ज़ का पन्ना लिया और उस पर तीन अक्षर लिखे - ए, बी, सी। 'ए' नायक के लिए, 'बी' नायिका के लिए, और 'सी' कैमरे के लिए। और इस तरह से वो अपने मन ही मन में गाने का पूरा फ़िल्मांकन क़ैद कर लिया। उन्होने एक गोलाकार 'ट्राली' का इंतज़ाम किया और फ़िल्मालय स्टुडियो में इस गीत को फ़िल्मा लिया गया। शुरु शुरु में कई लोगों ने उनके इस एक शॉट वाले विचार का विरोध किया था। किसी ने यहाँ तक कहा भी था कि "इसका दिमाग़ ख़राब हो गया है जो इतना अच्छा गाना एक ही शॉट में ले रहा है"। उस समय सभी के सवालों का शक्तिदा ने एक ही जवाब दिया था कि "जब रात को गाना सुन रहा था तो समझ ही नहीं आया कि कहाँ 'कट' करूँ"। और इस तरह से यह गीत हिंदी फ़िल्म जगत का पहला गाना बन गया जिसे केवल एक ही शॉट में फ़िल्माया गया था। तो चलिए हम भी इस गीत की मादकता और नशीलेपन का आनंद उठाते हैं।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

1. बेफिक्री के आलम में खुले आसमान में गूंजती किशोर की आवाज़.
2. कल के गीत का थीम है - "यायावरी, सफ़र, आदि".
3. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"दिन".

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह रोहित जी आप के हुए ८ अंक, मात्र एक जवाब पीछे हैं आप दिशा जी के स्कोर से. वाकई मुकाबला दिलचस्प है. सुमित जी, मंजू जी, और मनु जी ने सहमती की मोहर लगा दी है. शरद जी और स्वप्न जी आप बाकी सब से मीलों आगे हैं इसमें कोई शक है क्या :)

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

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12 श्रोताओं का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

musafir hoon yaaron,
naa ghar hai naa thikana

film -parichay


purvi s.

Anonymous का कहना है कि -

mere jaagne se pehle haye re meri kismat so jati hai. mai der karta nahi der ho jati hai.

ROHIT RAJPUT

शरद तैलंग का कहना है कि -

आज फिर मैं सबसे पहले आ गया पर बाकी सब कहाँ हैं ? यह गीत तो अब तक समझ आ जाना चाहिए था ।

शरद तैलंग का कहना है कि -

पूर्वी जी
मैनें सोचा आप को भी किसी ने हाथ थाम के बिठा लिया

Anonymous का कहना है कि -

din ne haath thaam kar jidhar bitha liya,
raat ne ishaare se udhar bula liya,
subah se, shaam se mera dostana.....

rohit ji ,
aapki kismat ne aaj hamen chance de diya...varna hamen der ho jaati hai :)

good luck for next time :)

nahin sharad ji, mujhe gaane ka antra yaad nahin aa raha tha, search karne men der ho gayee.... :), fir bhi pahunch hi gayee :)

purvi s.

'अदा' का कहना है कि -

आईला..
पार्टी खलास !!!
क्या करेंगा शरद भाई होता है न.. देर होहिच जाता है...
अबी कितना काम पड़ेला है अपुन का..
फिर भी हाजिरी तो देना मांगता है न इसी वास्ते इधर टपकती है रोज़..
पूर्वी बहन..
बिंदास..
आपका जवाब एकदम झक्कास..
बोले तो २ खोका आपका हुआ..
बाय

Manju Gupta का कहना है कि -

वाह पूर्वी जी !
बाजी मार ली .
अदा जी की सदा नहीं सुनी. कहाँ हो ?

Manju Gupta का कहना है कि -

अदा जी आप ३ मिनट पहले आ गयी .
हम दोनों .एक साथ इ-मेल कर रहे थे .बाजी ......!

Anonymous का कहना है कि -

hnm..
ye eech gaanaa hayengaa..

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बहुत पसंद आयी आपकी भेंट धन्यवाद्

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

us daur ke ganon ki baat hi alag thi..pyar chupa hota tha har ek shabd me..

Shamikh Faraz का कहना है कि -

भई मैं तो शायद ही कभी जवाब दे पाऊँ.

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