रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Sunday, August 23, 2009

पतवार पहन जाना... ये आग का दरिया है....गीत संगीत के माध्यम से चेता रहे हैं विशाल और गुलज़ार.



ताजा सुर ताल (16)

ताजा सुर ताल में आज पेश है फिल्म "कमीने" का एक थीम आधारित गीत.

सजीव - मैं सजीव स्वागत करता हूँ ताजा सुर ताल के इस नए अंक में अपने साथी सुजॉय के साथ आप सब का...

सुजॉय - सजीव क्या आप जानते हैं कि संगीतकार विशाल भारद्वाज के पिता राम भारद्वाज किसी समय गीतकार हुआ करते थे। जुर्म और सज़ा, ज़िंदगी और तूफ़ान, जैसी फ़िल्मों में उन्होने गानें लिखे थे..

सजीव - अच्छा...आश्चर्य हुआ सुनकर....

सुजॉय - हाँ और सुनिए... विशाल का ज़िंदगी में सब से बड़ा सपना था एक क्रिकेटर बनने का। उन्होप्ने 'अंडर-१९' में अपने राज्य को रीप्रेज़ेंट भी किया था। हालाँकि उनके पिता चाहते थे कि विशाल एक संगीतकार बने, उन्होने अपने बेटे को क्रिकेट खेलने से नहीं रोका।

सजीव - ठीक है सुजॉय मैं समझ गया कि आज आप विशाल की ताजा फिल्म "कमीने" से कोई गीत श्रोताओं को सुनायेंगें, तभी आप उनके बारे में गूगली सवाल कर रहे हैं मुझसे....चलिए इसी बहाने हमारे श्रोता भी अपने इस प्रिय संगीतकार को करीब से जान पायेंगें...आप और बताएं ...

सुजॉय - जी सजीव, जाने माने गायक और सुर साधक सुरेश वाडकर ने विशाल भारद्वाज को फ़िल्मकार गुलज़ार से मिलवाया। गुलज़ार साहब उन दिनों अपनी नई फ़िल्म 'माचिस' पर काम कर रहे थे। सोना सोने को पहचान ही लेता है, और गुलज़ार साहब ने भी विशाल के प्रतिभा को पहचान लिया और उन्हे 'माचिस' के संगीत का भार दे दिया। "छोड़ आए हम वो गलियाँ", "चप्पा चप्पा चरखा चले" तथा "पानी पानी रे" जैसे इस फ़िल्म के गीतों ने अपार लोकप्रियता हासिल की, और विशाल भारद्वाज रातों रात सुर्खियों में आ गए।

सजीव - कहते हैं ना कि जब तक कोई सफल नहीं हो जाता, उसे कोई नहीं पूछता। 'फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड' मिलने से पहले तक हर कोई विशाल भारद्वाज से मुँह फेरते रहे और जैसे उन्हे अवार्ड मिला, वही लोग शुभकामनायों के साथ गुल्दस्ते भेजने लगे। ख़ैर, ये तो दुनिया का नियम है, और इसलिए विशाल ने भी इसे अपने दिल पे नहीं लिया बिल्कुल अपने ही बनाए उस गीत की तरह "दिल पे मत ले यार"। पर यही चुभन जोश बन कर विशाल भारद्वाज में पनपने लगी, और कुछ कर दिखाने की चाहत सदा उनके मन में रहने लगी। 'माचिस' के अद्‍भुत संगीत से प्रभावित हो कर कमल हासन ने उन्हे 'चाची ४२०' के संगीत का दायित्व दे दिया। उपरवाला जब देता है तब छप्पड़ फाड़ के देता है। राम गोपाल वर्मा ने विशाल को दिया 'सत्या' का संगीत और गुलज़ार ने एक बार फिर अपनी फ़िल्म 'हु तु तु' के संगीत की ज़िम्मीदारी उन्हे सौंपी। और इस तरह से विशाल भारद्वाज का संगीत जलधारा की तरह बहने लगी "छई छपा छई छप्पाक छई" करती हुई।

सुजॉय - हाँ और विशाल भारद्वाज की ताजातरीन प्रस्तुति है फिल्म 'कमीने' का संगीत, जो इन दिनों ख़ूब पसंद किए जा रहा हैं। आज 'ताज़ा सुरताल' में इसी फ़िल्म का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण गीत आप को सुनवा रहे हैं। विशाल की यह फ़िल्म है, ज़ाहिर है संगीत भी उन्ही का है और गानें लिखे हैं उनके चहेते गीतकार गुलज़ार साहब ने। कमाल की बात देखिए, कभी गुलज़ार ने अपनी बनायी फ़िल्म 'माचिस' में विशाल को ब्रेक दिया था, आज वही विशाल जब एक सुप्रतिष्ठित फ़िल्मकार व संगीतकार बन गए हैं, तो उनकी निर्मित फ़िल्म में वही गुलज़ार साहब गानें लिख रहे हैं। तो हाँ, 'कमीने' के जिस गीत की हम आज बात कर रहे हैं उसे इन दिनों आप हर चैनल पर देख और सुन रहे होंगे, "फ़टाक"। सुखविंदर सिंह, कैलाश खेर और साथियों के गाए इस गीत में आज की एक ज्वलंत समस्या और उसके हल की तरह हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया है। HIV virus को काले भंवरे का रूप दे कर इससे होने वाली जान लेवा बिमारी AIDS की रोक थाम के लिए ज़रूरी प्रयासों की बात की गई है इस गीत में। भले ही गीत के फ़िल्मांकन में रेड लाइट अरिया को दर्शाया गया है, लेकिन आज की युवा पीढ़ी जिस खुले विचारों से यौन संबंधों में बंध रही है, यह गीत सिर्फ़ वेश्यालयो के लिए ही नहीं बल्कि सभी के लिए समान मायने रखता है।

सजीव - अगर मैं अपने विचार रखूं, तो इस एल्बम का सबसे उत्कृष्ट गीत है, जहाँ शब्द गायिकी और संगीत सभी कुछ परफेक्ट है. सबसे अच्छी बात है ये है कि ये एक सामान्य प्रेम गीत आदि न होकर आज के सबसे ज्वलंत मुद्दे को केंद्र में रख कर बनाया गया है. मेरे ख्याल से इस गीत एक बहुत बढ़िया माध्यम बनाया जा सकता है AIDS के प्रति लोगों को जगुरुक बनाने में. गुलज़ार साहब के क्या कहने, ग़ालिब के मशहूर शेर "ये इश्क नहीं आसाँ..." का इस्तेमाल गुलज़ार साहब ने शानदार तरीके से किया है कि बस मुँह से वाह वाह ही निकलती है -

"ये इश्क नहीं आसाँ,
अजी AIDS का खतरा है,
पतवार पहन जाना,
ये आग का दरिया है...
."

गीत के बोल यदि इस गीत की जान है तो गायक सुखविंदर और कैलाश ने इतना बढ़िया गाया है जिससे गीत को एक अलग ही स्तर मिल गया है, ये दोनों ही आज के सबसे हरफनमौला गायकों में हैं जो सिर्फ गले से नहीं दिल से गाते हैं.(सुखविंदर जब कहते हैं "कि आया रात का जाया रे ..." सुनियेगा) और विशाल के संगीत की भी जितनी तारीफ की जाए कम है..."फाटक" शब्द को जिस खूबी से इस्तेमाल किया है वो गीत में आम आदमी की रूचि को बरकरार रखता है साथ ही ये एक प्रतीक भी है इस बिमारी से शरीर और मन पर होने वाली मार का (जैसे ध्वनि हों कोडों की). गीत का फिल्माकन भी भी बेहद शानदार है, एक बार फिर विशाल और उनके नृत्य संयोजक बधाई के पात्र हैं. आपका क्या ख्याल है सुजॉय...

सुजॉय - दोस्तों, आप ने फ़िल्म 'मनचली' का वो गीत तो सुना होगा ना, लता जी की आवाज़ में, "कली कली चूमे, गली गली घूमें, भँवरा बे-इमान, कभी इस बाग़ में, कभी उस बाग़ में"। बे-इमान भँवरे की इसी स्वभाव को बड़ी ही चतुराई से गुलज़ार साहब ने यह संदेश देने के लिए इस्तेमाल किया है कि भँवरे की तरह फूल फूल पे मत न मंडराओ, यानी कि एकाधिक यौन संबंध मत रखो, और अगर रखो तो सुरक्षा को ध्यान में रख कर। दोस्तों, अब आगे इससे ज़्यादा कुछ कहने की ज़रूरत नहीं, आप गीत सुनिए। दहेज, शोषण, बाल मज़दूरी, आदि तमाम सामाजिक मुद्दों पर कई गानें बने हैं, लेकिन आज की इस ज्वलंत समस्या पर पहली बार किसी फ़िल्मकार ने बीड़ा उठाया है, जिसकी तारीफ़ किए बिना हम नहीं रह सकते। विशाल भारद्वाज और गुलज़ार साहब को थ्री चीयर्स!!! गीत के बोल कुछ यूं है -

भवंरा भवंरा आया रे,
गुनगुन करता आया रे,
फटाक फटाक.....
सुन सुन करता गलियों से अब तक कोई न भाया रे
सौदा करे सहेली का,
सर पे तेल चमेली का,
कान में इतर का भाया रे....
फटाक फटाक...

गिनती न करना इसकी यारों में,
आवारा घूमे गलियारों में
चिपकू हमेशा सताएगा,
ये जायेगा फिर लौटा आएगा,
फूल के सारे कतरे हैं,
जान के सारे खतरे हैं...
कि आया रता का जाया रे...
फटाक फटाक.....

जितना भी झूठ बोले थोडा है,
कीडों की बस्ती का मकौड़ा है,
ये रातों का बिच्छू है कटेगा,
ये जहरीला है जहर चाटेगा...
दरवाजों पे कुंडे दो,
दफा करो ये गुंडे,
ये शैतान का साया रे....
फटाक फटाक...

ये इश्क नहीं आसाँ,
अजी AIDS का खतरा है,
पतवार पहन जाना,
ये आग का दरिया है...
ये नैया डूबे न
ये भंवरा काटे न.....

और अब सुनिए ये गीत -




आवाज़ की टीम ने दिए इस गीत को 4.5 की रेटिंग 5 में से. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसा लगा? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीत को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.

क्या आप जानते हैं ?
आप नए संगीत को कितना समझते हैं चलिए इसे ज़रा यूं परखते हैं.सुखविंदर और कैलाश खेर ने इस गीत से पहले रहमान के संगीत निर्देशन के एक मशहूर दोगाना गाया है, जानते हैं कौन सा है वो गीत ? बताईये और हाँ जवाब के साथ साथ प्रस्तुत गीत को अपनी रेटिंग भी अवश्य दीजियेगा.

पिछले सवाल का सही जवाब दिया नीलम जी ने बधाई...शमिख जी, शैलेश जी, नीलम जी और मंजू जी सभी ने रेटिंग देकर हौंसला बढाया आभार.


अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.

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10 श्रोताओं का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

बेकार गीत....गुलज़ार ने लिखा तो वाहवाही लूट रहे हैं....समीर लिखते तो सब चुप रहते.....

Playback का कहना है कि -

tippani ke liye shukriya, lekin aap agar saath mein apna naam bhi likhenge to hamein aur achchha lagegaa

नीरज गोस्वामी का कहना है कि -

गज़ब का गीत...सुर,ताल और गायकी....बेमिसाल...फिल्मीकरण थोडा सा बोझिल...5 में से 4 नंबर...
नीरज

neelam का कहना है कि -

सौदा करे सहेली का,
सर पे तेल चमेली का,
कान में इतर का भाया रे....
फटाक फटाक..

pahli baar kisi anonymos ji ki baat se sahmat hoon ,waahiyaat gana ,
beedi tak to theek tha guljaar bhaai thoda to khyaal rakhiye kuch bhi likh denge ar wo bikega hi pasand bhi kiya jaayega hi .aisi kaun si majboori hai jo aapse yah sab kahwa rahi hai ya phir umr ka taqaaza hai .allah aapko sadbudhi de ki aap apne banaaye hue maandando se koi samjhouta kadaapi n karen

Manju Gupta का कहना है कि -

गाने बढिया हैं .मैं तो ४/५ की रेटिंग दूंगी .

विश्व दीपक का कहना है कि -

मुझे यह गीत वाकई बेहद पसंद है। यह अलग बात है कि पहली बार में मुझे यह गीत समझ नहीं आया था, फिर जब "अजी एड्स का खतरा है" लाईन सुना तो माज़रा समझ में आया। फिर उसके बाद इस गीत को न जाने कितनी बार सुना और अब भी सुनता आ रहा हूँ। मैं इस गीत को ५ में से ४.५ अंक देता हूँ, क्योंकि एड्स से जागरूकता के लिए इससे अच्छा गीत नहीं लिखा जा सकता, जिसमें वैसे शब्दों का इस्तेमाल न हो जिससे दुनिया नाक-भौं सिकोड़ती है। और हाँ, यह भी बता दूँ कि यह गीत एक एन०जी०ओ० के सहयोग के लिए तैयार किया गया है, इसलिए इस गीत के फिल्मांकन के दौरान जो भी डांसर दिखते हैं, दर-असल वो उस एन०जी०ओ० के सदस्य हैं। (यह बात मैं खुद बना कर नहीं बोल रहा, बल्कि विशाल भारद्वाज ने एक इंटरव्यु में कहा है)

हर किसी को गीत पसंद-नापसंद करने का हक़ है, बस "एनोनिमस" बंधु से एक दरख्वास्त है कि बुरा लगने का वज़ह बता देते तो अच्छा होता और हाँ अपना नाम लिख कर हम पर कृपा भी कर देते। बाकी मुझे तो अच्छा लगा (गाँव/रेड लाईट या ऐसी हीं कोई जगह के शब्द इस्तेमाल होने से कोई गाना खराब नहीं हो जाता या फिर गीतकार नीचले दर्जे का नहीं हो जाता बल्कि गाने को सही अर्थ मिलता है और यही कारण है कि मुझे गुलज़ार साहब के लिखे गीत अच्छे लगते हैं, समीर भी अच्छा लिखते हैं, लेकिन ऐसा असर अगर उनके शब्दों में होता तो फिर और हीं बात होती)

-विश्व दीपक

'अदा' का कहना है कि -

संगीत और गायिकी अच्छी है लेकिन नई नहीं है.....कैलाश खेर और सुखविंदर सिंह दोनों ने उसी जाने पहचाने अंदाज में गाया है.....गीत के बारे में मैं ......'बे-नाम' जी और नीलम जी से कुछ हद तक सहमत हूँ .....

गाना मुझे समझ में ही नहीं आया है.....जैसा कि बताया गया है कि यह ऐड्स के प्रति जागरूकता के लिए लिखा गया है...तो सन्देश स्पष्ट होना चाहिए.....इस बात को समझने के लिए इतनी मगज-मारी करने कि जरूरत नहीं होनी चाहिए......सीधा-सरल सन्देश ज्यादा कारगर होगा.....गीत अपना मकसद पूरा नहीं कर पाया है.....जब गीत का ज्ञान रखने वाले लोग बार-बार सुन कर भी नहीं समझ पाए तो....रेड-लाइट में बैठी अनपढ़ युवतियां क्या समझेंगी....साथ ही ऐड्स वीभत्स है....इससे दूर रहना चाहिए ये बात कहाँ कही जा रही है ?? बस शब्दों का एक जाल है...आप अपने हिसाब से मतलब निकाल लो.....

एक भूल सुधार लें....
जुगनू हमेशा सताएगा,
'जुगनू' की जगह 'चिपकू' है
मेरी रेटिंग २/५

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मुझे गीत नहीं पसंद आया. मैं २/५ दूंगा.

manu का कहना है कि -

गाना तो पहली नजर में समझ आ गया था..
हमें कोई ख़ास पसंद आया....

ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै
इक आग का दरिया है ,और डूब के जाना है..

एड्स की जागरूकता के नाम पर एक पवित्र शे'र का सरासर मजाक बनाया है,,,,
हम इसे एक भी नम्बर नहीं दे सकते.....
आइन्दा से कोशिश करेंगे के ये भूले से भी हमारे कानों में भी ना पड़े..

Vipin Goyal का कहना है कि -

so so
2/5

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