रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Saturday, April 11, 2009

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (2)



रविवार सुबह की कॉफी के साथ कुछ और दुर्लभ गीत लेकर हम हाज़िर हैं. आज हम जिस फिल्म के गीत आपके लिए लेकर आये हैं वो कोई ज्यादा पुरानी नहीं है. अमृता प्रीतम के उपन्यास पर आधारित चन्द्र प्रकाश द्विवेदी निर्देशित २००३ में आयी एक बेहतरीन फिल्म है -"पिंजर". उर्मिला मातोंडकर और मनोज वाजपई ने अपने अभिनय से सजाया था फिल्म में पुरो और राशिद के किरदारों को. फिल्म का एक और बड़ा आकर्षण था उत्तम सिंह का संगीत. वैसे तो इस फिल्म के गीत बेहद मशहूर हुए विशेषकर "शाबा नि शाबा" और "मार उड़ारी". अमृता प्रीतम द्वारा उपन्यास में दर्ज गीत "चरखा चलाती माँ" और जगजीत सिंह का गाया "हाथ छूटे भी तो" भी काफी सराहा गया. यूँ तो आज हम आपको प्रीती उत्तम का गाया "चरखा चलाती माँ" और वाड्ली बंधुओं का "दर्द मारियाँ" भी सुन्वायेगें. पर विशेष रूप से दो गीत जो हम आपको सुनवा रहे हैं वो बहुत कम सुने गए हैं पर इतने बेहतरीन हैं कि उन्हें इस कड़ी में आपको सुनवाना लाजमी ही है. एक "वतन वें" और दूसरा है अमृता प्रीतम का लिखा "वारिस शाह नु..." अभी कुछ दिन पहले आवाज़ के नियमित श्रोता प्रदीप बाली जी ने हमें इस गीत की याद दिलवाई और कहा कि इसे कहीं से भी ढूंढ कर आवाज़ पर सुनवाया जाए. इस गीत को ऑंखें मूँद कर सुनियेगा हमारा दावा है कि गीत खत्म होते होते आपकी आँखों से भी एक मोती टूट कर ज़रूर गिरेगा. कुछ ऐसा दर्द है इस गीत में.

खैर इससे पहले कि हम इन गीतों को सुनें. कुछ बातें इन गीतों के संगीतकार उत्तम सिंह के बारे में हो जाए. दरअसल अधिकतर लोग उत्तम सिंह को जानने लगे थे यश चोपडा की "दिल तो पागल है" के सुपर हिट संगीत के बाद से. पर जिन लोगों ने दीवानों की तरह १९८० के दौर में जगजीत सिंह को सुना हो वो अच्छी तरह जानते हैं कि जगजीत की लगभग सभी अल्बम्स में संगीत संयोजन उत्तम सिंह का ही रहा है. पर हम आपको बता दें कि उत्तम सिंह का संगीत सफ़र १९६० में शुरू हुआ था. संगीत से जुड़े परिवार से आये उत्तम सिंह को १९६३ में मोहम्मद साफी (इनकी चर्चा फिर कभी करेंगे) द्वारा निर्मित एक लघु फिल्म में वोइलिन बजाने का मौका मिला. उसके बाद उत्तम ने सभी प्रमुख संगीतकारों के लिए वोइलिन बजाया. उन्होंने एक अन्य संगीतकार जगदीश के साथ मिलकर उत्तम जगदीश के नाम से जोड़ी बनायीं. इस जोड़ी को पहला ब्रेक दिया मनोज कुमार ने फिल्म "पेंटर बाबू" में उत्तम जगदीश का संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ फिल्म "वारिस" में. लता का गाया "मेरे प्यार की उम्र हो इतनी सनम" आज भी याद किया जाता है. १९९२ में जगदीश की आकस्मिक मृत्यु के बाद उत्तम ने स्वतंत्र रूप से "दिल तो पागल है" से कमियाबी पायी. "ग़दर-एक प्रेम कथा" में तमाम हिंसा के बावजूद उनके मधुर संगीत को अवाम ने सर आँखों पे बिठाया. उदित नारायण की आवाज़ में "उड़ जा काले कावां" ने मेलोडी गीतों को वापस स्थापित कर दिया. संगीत संयोजक के रूप में भी फिल्म "मैंने प्यार किया" और "हम आपके हैं कौन" में भी उनका काम सराहा गया. पर "पिंजर" में तो उनका संगीत अपने चरम पर था. एक से बढ़कर एक गीत हैं इस फिल्म में. उनकी बेटी हैं प्रीती उत्तम जिन्होंने इस फिल्म के "चरखा चलाती माँ" और अन्य गीतों को अपनी आवाज़ दी. इन गीतों को गाकर प्रीती ने हमेशा हमेशा के लिए खुद को संगीत प्रेमियों के दिलो-जेहन में कैद कर लिया है. तो चलिए और अब और इंतज़ार नहीं कराते आपको. वैसे तो आपको रुलाने का इरादा नहीं है पर किसी शायर ने कहा है न -

घर की तामीर चाहे जैसी हो.
इसमें रोने की कुछ जगह रखना...

सुनिए, प्रीती की मर्मस्पर्शी आवाज़ में - "चरखा चलाती माँ"


दरदां मारियाँ माहिया


वतना वे..


और सुनिए ये गीत "वारिस शाह नु..."


पिछले अंक में कुछ श्रोताओं ने हमसे गुजारिश की थी कि वो लता का गाया पहला गीत सुनना चाहते हैं. तो लीजिये आपकी फरमाईश पर फिल्म "आपकी सेवा में" से लता मंगेशकर का गाया पहला फ़िल्मी गीत प्रस्तुत है (सौजन्य- अजय देशपांडे, नागपुर)

पा लागूं कर गोरी से...




"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.




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5 श्रोताओं का कहना है :

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

आपका यह प्रयास स्तुत्य है, कामयाबी की मंज़िलें तय करे ये शुभकमानायें...

Dineshrai Dwivedi का कहना है कि -

आज से हर रविवार सुबह की कॉफी आप के साथ फिक्स!

Pradeep Kumar का कहना है कि -

वाह दिल खुश हो गया ! इतनी जल्दी फरमाइश पूरी हो जायेगी ये उम्मीद नही थी . क्या कहूं शब्द नही मिल रहे . बस किसी का ये शेर याद आ रहा है - इतनी खुशी मिली कि निबाही नही गई , इतना हँसे कि आँख से आंसू निकल पड़े

पारुल "पुखराज" का कहना है कि -

वहीदा रहमान की "खामोशी" के बाद "पिंजर" hii एक ऎसी फिल्म थी जो रूह तक उतर गयी -खासकर चरखा चलती माँ , गीत ऐसा असर छोड़ता है की दिनों तक इसके बोल घुमडते हैं . इस गीत के लेखक देव मणि जी हैं जिसका इल्म खुद मुझे उनके मेल से हुआ ... मनोज बाजपेयी और उर्मिला की अदायगी भी बेमिसाल है . इस यादगार पोस्ट का आभार

Vikas Shukla का कहना है कि -

आपका यह उपक्रम बहुत अच्छा लगा. एक फर्माइश कर रहा हूं. मैं १०-१२ सालसे एक गानेकी तलाश में हूं. अनील बिस्वास जी का संगीत हैं, फिल्म का नाम हैं 'गजरे' गीत हैं लता जी का 'बरस् बरस बदरी बिखर गयी'. उसके बारेमें सिर्फ पढा हैं शिरीष कणेकर की किताब में (गाये चला जा). तबसे उसे ढूंढ रहा हूं.
आशा हैं आप जरूर सुनवायेंगे.
विकास शुक्ल

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