रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, April 27, 2009

दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दे....रोशन के संगीत में लता की आवाज़ पुरअसर



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 63

फ़िल्म 'अनोखी रात' का मशहूर गीत "ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में" संगीतकार रोशन के संगीत से सजा आख़री गीत था। रोशन १६ नवंबर १९६७ को इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा के लिये छोड़ गए, लेकिन पीछे छोड़ गए अपनी दिलकश धुनों का एक अनमोल ख़ज़ाना। फ़िल्म 'बहू बेग़म' भी उनके संगीत सफ़र के आख़री फ़िल्मों में से एक है। यह फ़िल्म भी १९६७ को ही प्रदर्शित हुई थी। एम. सादिक़ निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, मीना कुमारी और प्रदीप कुमार। यह फ़िल्म एक 'पिरियड ड्रामा' है जिसमें पुरुष प्रधान समाज का चित्रण किया गया है, और उन दिनो नारी को किस तरह से दबाया - कुचलाया जाता था उसका भी आभास मिलता है इस फ़िल्म में। मीना कुमारी की सशक्त अभिनय ने इस फ़िल्म को उतना ही यादगार बना दिया है जितना कि इस फ़िल्म के गीत-संगीत ने। आज इसी फ़िल्म का गीत सज रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। लता मंगेशकर की आवाज़ में "दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें, तुमको ना हो ख्याल तो हम क्या जवाब दें" फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने की एक ऐसी मोती है जिसकी चमक आज ४० सालों के बाद भी वैसी की वैसी बरकरार है।

"पूछे कोई कि दर्द-ए-वफ़ा कौन दे गया, रातों को जागने की सज़ा कौन दे गया, कहने से हो मलाल तो हम क्या जवाब दें" - साहिर लुधियानवीं के ऐसे ही सीधे सादे लेकिन बड़े ही ख़ूबसूरत और सशक्त तरीके से पिरोये हुए शब्दों का इस्तेमाल इस ग़ज़ल की खासियत है। और लताजी की मधुर आवाज़ और रोशन के पुर-असर धुन को पा कर तो जैसे यह ग़ज़ल जीवंत हो उठी है। भले लताजी ने ग़ैर-फ़िल्मी ग़ज़लें बहुत कम गायीं हैं, उनकी शानदार और असरदार फ़िल्मी ग़ज़लों को सुनकर यह कमी भी पूरी हो जाती है। रात के सन्नाठे में कभी इस ग़ज़ल को सुनियेगा दोस्तों, एक अलग ही समां बंध जाता है, एक अलग ही संसार रचती है यह ग़ज़ल। यह ग़ज़ल है तो ३ मिनट की ही, लेकिन एक बार सुनने पर इसका असर ३ हफ़्ते तक रहता है। फ़िल्म में नायिका के दिल की दुविधा, समाज का डर, दिल की बेचैनी, शर्म-ओ-हया, सभी कुछ समा गया है इस छोटी सी ग़ज़ल में। समात फ़रमाइए...



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. जॉनी वाकर पर फिल्माया गया ओ पी नय्यर का रोमांटिक कॉमेडी गीत.
२. रफी और गीता दत्त की आवाजें.
३. गाने में कुछ खो गया है जिसे ढूँढने की कोशिश की जा रही है.

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
नीरज जी सही जवाब है, नीलम जी भी पहचान गयी और मनु जी भी.भारत पंड्या जी ने फिल्म का नाम गलत बताया पर गाना एक दम सही है भाई..नीलम जी नाराज़ मत होईये...अभी तो महफिल सजी है आपकी पसंद का गाना भी ज़रूर सुनाया जायेगा....फिलहाल ये बताएं कि आज का गाना कैसा लगा. और हाँ जाईयेगा नहीं....आपके बिना तो महफिल का रंग ही बेरंग हो जायेगा :)

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.



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10 श्रोताओं का कहना है :

manu का कहना है कि -

हा,,,,,,हा,,,,,,,,हा,,,,,,,,,,,

याद आ गया,,,,,
मोटी मोटी आँखों वाली नायिका थी,,,,,ओफ्फिस में गाना था,,,,बेंच के नीचे,,,,

जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी,,,,
अभी अभी यहीं था किधर गया जी ,,,,,,

manu का कहना है कि -

सर जी,
उत्तर देने की जल्दी में अब देख रहा हूँ,,,
ये गजल नहीं ,,बल्कि गीत है,,,
हाँ, मुखडा सुनकर जरूर गजल का ही गुमा होता है,,,,

manu का कहना है कि -

पर लगता है के आपने जानबूझ कर लिखा है इसे गजल,,,
है ना..........?????

sumit का कहना है कि -

jane kahan mera jigar gya ji.........
rafi sahab ki aawaj to main pehchaanta hoon par geeta ji ki aawaz ki pehchaan nahi hai aur khone aur dhondne ki baat aayegi to shayad har koi ye he gaat batayega

sumit का कहना है कि -

jane kahan mera jigar gya ji.........
rafi sahab ki aawaj to main pehchaanta hoon par geeta ji ki aawaz ki pehchaan nahi hai aur khone aur dhondne ki baat aayegi to shayad har koi ye he gaat batayega

sumit का कहना है कि -

jane kahan mera jigar gya ji.........
rafi sahab ki aawaj to main pehchaanta hoon par geeta ji ki aawaz ki pehchaan nahi hai aur khone aur dhondne ki baat aayegi to shayad har koi ye he geet batayega

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -

mera bhee uttar vahee jo manu ji ka hai..lgbhg 30 saaaal pahle dekhee hogee yah film...

Playback का कहना है कि -

manu ji, lataji bhi isey ghazal hi maanti hain, zara padhiye to unhone is geet (ghazal) ke baare mein kya kahaa tha -

"I simply adore this ghazal. The lyrics by Sahir saab were excellent. The tune by Roshan was as usual, impeccable. Roshan saab and I were friends. When he came to Mumbai in the 1940s, he stayed in a garage with his wife. Their first son, Rakesh was born in that garage. He had a vast knowledge of classical music and so did his wife. In fact Mrs Ira Roshan and I once sang a duet for Anilda (Anil Biswas). Two other songs composed by Roshan saab which I like very much are 'Rahen na rahen hum' from Mamata and 'Raat ki mehfil sooni sooni' from Noorjehan."

yeh mujhe Lataji ke ek website par mila

http://gaurav-kumar.tripod.com/index.htm

Anonymous का कहना है कि -

forgive me but everything old is not "Sona" and everything new is not "Pital"

shanno का कहना है कि -

कितने अच्छे-अच्छे गाने ढूढ़ कर ला रहे हैं सजीव जी आप. खूब enjoy करती हूँ.
गाने से याद आया कि सुमीत जी के बारे में बाल-उद्यान में यही सोचा जा रहा है कि ' अभी-अभी वहीँ था किधर गया जी'. लेकिन वह जनाब यहाँ 'आवाज़' में हाजिरी लगा रहे हैं लेकिन नीलम जी की साँस फूली जा रही है सुमीत के पीछे भागते हुए. आखिर में आज पकड़ में आ ही गए.

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