रामनवमी पर सुनिए अमीर खुसरो, कबीर, तुलसी और राकू को
वैष्णव हिन्दू हर वर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को अपने भगवान श्रीराम के जन्मदिवस का त्योहार मनाते हैं। वर्ष २००९ में यह तिथि ३ अप्रैल को आयी है, इस दिवस पर रामनवमी नाम का त्यौहार मनाया जाता है। पुराण-कथाओं के अनुसार श्री राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता हैं। मान्यता है कि तीनों लोकों में धर्म की स्थापना के लिए ब्रह्म, विष्णु और महेश (शिव) नामक तीन तंत्र हैं और इनके काउँटरपार्टों की भी संकल्पना की गई है।
रामनवमी का त्योहार इस बात की याद दिलाता है कि मनुष्य को धर्म में आस्था कभी नहीं छोड़नी चाहिए। अधर्म कितना भी अपना अंधकार फैला ले, भगवान देर ही सही अभय प्रकाश लेकर ज़रूर अवतरित होते हैं। रामायण की कथा में महर्षि वाल्मिकी लिखते हैं कि अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ होने के बावज़ूद उन्हें कोई पुत्र नहीं था। दशरथ को अपने राजवंश के खत्म होने का डर था। शंका से ग्रस्त राजा दशरथ को वशिष्ठ ऋषि ने आशा का छोर न छोड़ने की सलाह दी और पुत्र-प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का रास्ता दिखलाया। पुत्र-कामेष्टि यज्ञ के अनुष्ठान के फलस्वरूप दशरथ को ४ पुत्रों का प्रसाद मिला था, जिसमें सबसे पहले भगवान विष्णु ने राम के रूप में कौशल्या के गर्भ में अवतार लिया था।
प्रतीक रूप में इस त्योहार को मनाने का एक उद्देश्य यह भी है कि मनुष्य को अधर्म के खिलाफ जंग ज़ारी रखनी चाहिए, क्योंकि ईश्वर के यहाँ देर है, अंधेर नहीं है।
सुन लो मेरी मेरे रघुराई
लगादो पार नैइया मेरे रघुराई
भव-सागर को पार करा दो
सुन लो मेरी दुहाई
लगादो...............................
जन्म मरन का बंधन टूटे
छुट जाए आवा जाई
लगादो ............................
तेरे दरस को नैना तरसे
तुझसे लौ जो लगाई
लगादो ............................
आँख पड़ा है लोभ का परदा
देता कुछ न दिखाई
लगादो ..........................
वचन की खातिर वन को चल गए
रघुकुल रीत निभाई
लगादो पार....................
-रचना श्रीवास्तव
महाकाव्य रामायण के तुलसी-संस्करण 'राम चरित मानस' के राम भारत के जन-जन में बसे हैं। राम भारत का इतना प्रभावशाली व्यक्तित्व है कि इसने भारत के भूत और वर्तमान दोनों को बराबर रूप में प्रभावित किया है। राम चरित मानस के बराबर साहित्य की कोई और कृति दुनिया में कहीं भी इस तरह से लोगों की रूह में नहीं समा सकी।शोखी-ए-हिन्दू ब बीं, कुदिन बबुर्द अज खास ओ आम,
राम-ए-मन हरगिज़ न शुद हर चंद गुफ्तम राम राम। -------अमीर खुसरो,
(हर आम और खास जान ले कि राम हिंद के शोख, शानदार शख्सियत हैं। राम मेरे मन में हैं और हरगिज़ न अलग होंगे, जब भी बोलूँगा राम राम बोलूँगा।)
क्रांतिकारी कवि कबीर ने भी राम को तरह-तरह के प्रतीकों में इस्तमाल किया। एक दोहा देखें
राम मिले निर्भय भय ,रही न दूजी आस
जाई सामना शब्द में राम नाम विस्वास ..........संत कबीर दास
तुलसीदास ने कहा-
नीलाम्बुजं श्यामलकोमलांगम्, सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौमहासायकचारुचापम्, नमामिरामम् रघुवंशनाथम्।।
नमामि रामम्
लेकिन हम बात करने जा रहे हैं एक ख़ास गीत की जिसमें महात्मा गाँधी का रामराज्य के सपने को याद किया गया है। इस गीत के संकल्पनाकर्ता राजकुमार सिंह 'राकू' अपने श्रीराम से कृपा करने की गुहार लगा रहे हैं। कह रहे हैं कि 'रामराज्य बापू का सपना, इस धरती पर लाओ राम'। सुनें-
(हमेशा सुनने के लिए डाऊनलोड करें)
इस गीत में शुरू में अमीर खुसरों के बोल हैं। उसके बाद कबीरदास के, फिर तुलसीदास के और शेष गीत राकू ने खुद लिखा है।
राकू |
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" 'नमामि रामम्' एक विनम्र आदरांजलि है हमारी अमर धरोहर श्री राम कों जो वस्तुतः किसी भी धर्म, भाषा, क्षेत्र से परे हैं। अमीर खुसरो, कबीर और संत तुलसीदास जैसे महान कवियों ने हमारी इस सांस्कृतिक पहचान के प्रति अगाध श्रद्धा, प्रेम और सम्मान व्यक्त किया है।'नमामि रामम्'संगीत के माध्यम से उसी मान,निष्ठा और श्रद्धा को समर्पित अभिव्यक्ति है।"
इस गीत के एल्बम का लोकार्पण गांधी निर्वाण के दिन (३० जनवरी २००८ को) बापू के साबरमती आश्रम में, आश्रम के मुख्य ट्रस्टी ललित भाई मोदी के हाथों संपन्न हुआ था। जिसमें देश-विदेश से आये बहुत सारे महानुभाओं ने हिस्सा लिया और प्रार्थना सभा के बाद चर्चा भी की।
मुख्य बात जो कही गयी कि इस गीत में ' रामराज्य' लाने की कही गयी है और वह 'रामराज्य' बापू के ही रामराज्य की परिकल्पना है।
बापू के 'रामराज्य' की परिकल्पना
राष्ट्रपिता बापू के संघर्ष का लक्ष्य था 'रामराज्य', जिसकी शुरूआत 'अन्त्योदय' से होनी थी यानी समाज के सबसे पिछडे की सेवा सर्वप्रथम, का वादा था। इसी क्रम से सम्पूर्ण समाज के सम्पूर्ण उदय का दर्शन था ' सर्वोदय'।
गीत की टीम
प्रार्थना- अमीर खुसरो, संत कबीर और संत तुलसी दास
निवेदन और गीत- राजकुमार सिंह 'राकू'
संगीत- विवेक अस्थाना एवं राकू
गायक- राजा हसन तथा सुमेधा [२००७ के सा रा गा मा के अंतिम चरण के विजेता]
प्रोग्रामिंग तथा डिजाइन- न्रिपंशु शेखर
रिकॉर्डिस्ट- साहिल खान
वाद्य:
सितार- उमाशंकर शुक्ल, बांसुरी- विजय ताम्बे, हारमोनियम- फिरोज़ खान
रिदम- मकबूल खान व ताल वाद्य- शेखर
कोरस(साथी गायक)- नीलेश ब्रह्मभट्ट, संगम उपाध्याय, हिमांशु भट्ट, शोभा सामंत, सुगन्धा लाड, संजय कुमार
रिकॉर्डिंग- आर्यन्स स्टूडियो (मुंबई)
अमीर खुसरो (१२५३-१३२५)- एक संक्षिप्त परिचय
कवी, संगीतज्ञ, इतिहासकार, बहुभाषा शास्त्री और इन सब से बढ़ एक सूफी संगीत वाहक, जिसने शांति, सद्भाव, भाईचारा और सर्वधर्म समभाव को बताया और जिया। फारसी, तुर्की, अरबी और संस्कृत के विद्वान जिसने हिंदी-उर्दू (जिसे वे 'हिंदवी' कहते थे) में ही रचनाएँ नहीं की बल्कि हिंदी की बोलियों ब्रज और अवधी वगैरह में भी गीत लिखे। फारसी में लिखा उनका विशाल भंडार भी है। ' हिंदवी' के पहले कवी जिन्होंने न इस भाषा को गढ़ा बल्कि हजारों गीतों, दोहों, पहेलियों, कह्मुकर्नियों आदि हर विधा में लिखा और गाया भी। उसमें समाई मानवीय करुणा से सबका मन जीता और अस्सीम सम्मान और प्यार पाया।
बहुत ही आला संगीत प्रेमी जिन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रतिमान गढ़े, जो आज तक निरंतर बने हुए हैं। उन्होंने पखावज से तबले का इज़ाद किया और वीणा को सितार का रूप दिया। महान सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया के प्रिय शिष्य रहे। जिन्होंने उनके भीतर समग्र मानवता के लिए एक गहरी सोच, करुणा, स्नेह और प्रेम भर दिया। यही 'खुसरो' को उस उच्चता पर प्रतिष्ठित करता है जिसकी अगली कड़ियाँ कबीर, सूर, तुलसी, नानक, मीरा, नामदेव, रैदास आदि उच्च संतों में प्रतिध्वनित होती हैं। यही भारत के इस महानतम पुत्र की उच्चता का पड़ाव है। ' खुसरो' खुद को 'तुतिये हिंद' यानी हिंद का तोता कहते थे, जो मीठा बोलता है.............. ' राम-राम' बोलता है। महान कवि ग़ालिब ने ये पूछे जाने पर की उनकी शायरी में इतनी मिठास कैसे? लिखा...........
" ग़ालिब मेरे कलाम में क्यूं कर मजह न हो,
पीता हूँ धो के खुसरावो शीरीं सुखन के पाँव।"
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33 श्रोताओं का कहना है :
वाह, बहुत खूब। आपने दिन बना दिया। अब तो पूरा दिन इसी प्रार्थना को सुनने में बीतेगा।
वाह, बहुत खूब। आपने दिन बना दिया। अब तो पूरा दिन इसी प्रार्थना को सुनने में बीतेगा।
फ़िर से आये हैं टिप्पणी करने,
आवाज के इस प्रयास की जितनी तारीफ़ करूं कम है। बस बार बार सुनकर डूबे जा रहें है।
इंतजार करते-करते तो बापू चले गए, हिंदुस्तान में उनके नाम पर जो हो रहा है, शायद वो बापू को पहले से ही पता था, तभी तो कहा था, स्वराज्य दिलाने का कार्य कांग्रेस का पूर्ण हो गया, इसलिए कांग्रेस को भंग कर दो. पर सत्ता लोलुपों ने उनकी एक न मानी.
जिस गांधी ने नमक पर टैक्स द्वारा मूल्य वृद्धि का विरोध करने हेतु "नमक-सत्याग्रह" किया और अंगरेजी सरकारों की चूले हिला दी, उसी गांधी के स्वतंत्र भारत में उनके नाम से सत्ता हतियाने वाले कंपनी में बनाने वाले नमक को "आयोडीन युक्त" नमक का प्रचार देकर दस से ग्यारह रुपये किलो में बिकने की इजाज़त दे रहे है..........और साथ में "आयोडीन युक्त" नमक प्रयोग करने का विज्ञापन देने में जनता के पैसे का भी उपयोग कर रहे हैं......
शायद अभी शर्म आने में अभी बहुत वक्त बाकी है, अभी तो कलियुग का प्रारंभिक चरण है, हाय तोबा अभी और मचने दो, तभी तो राम के आगमन का मार्ग प्रसस्त होगा, शायद इसे ही गांधी के तथाकथित भक्तों ने
"रामराज्य बापू का सपना, इस धरती पर लाओ राम"
का सहज और प्राकृतिक मार्ग स्वीकार कर लिया है.
चन्द्र मोहन गुप्त
वाह बहुत बढ़िया....ये एक "ग्रैंड" सोंग है. सचमुच इसके गीतकार संगीतकार और सभी गायक/गायिकाएं और सभी संजिंदों की टीम भी बधाई की पात्र है. इतने बड़े रूप में गीत का संयोजन आसान नहीं रहा होगा. पर मेहनत साफ़ नज़र आती है, गीत का थीम और मिठास बाकायदा बरकरार रखी है पूरे गीत में. राकू जी इस गीत के बाद मैं आपके संगीत संयोजन का कायल हो गया हूँ. ये मेरे पसंदीदा संगीतकार जोड़ी एल पी के स्टाइल का गीत है. ऐसे गीत जहाँ इतने सारे वाद्यों का इतने बड़े स्तर पर इस्तेमाल बहुत कम ही देखने को मिलता है. सुमेधा और राजा हसन ने भी जम कर रंग जमाया है. राम नवमी की शुभकामनायें.
वाह बहुत ही सुन्दर एवं ग्यान वर्धक प्रस्तुति। युग्म को इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
शैलेशजी,यदि आप तारीफ सुनना चाहते हैं तो मैं तो यह काम कर नहीं पाँउगा क्योंकि काम आपने उससे कहीं अधिक का किया है.तीन महान संतों की रचनाएँ एक लय और एक ताल में निबद्ध हों और एक उच्च कोटी का संगीत संयोजन हो,उस पर राजा,जिसे मैं एक बहुत ही प्रतिभाशाली उदिमान गायक मानता हूँ,का इस प्रस्तुति के चयन राकुजी को एक जौहरी भी बनता है.सुमेधा ने तो कमाल ही कर दिया है.इस पूरे संयोजन में सुर-ताल-लय के साथ-साथ जिस भाव की भी आवश्यकता थी उसका निर्बाह इन दोनों गायकों ने बखूबी किया है और अपने चयन को उचित ही ठहराया है. जितना कहता-लिखता जाउगां,कम ही पड़ेगा,इसलिए........,
आप सभी बधाई के पात्र है.
एक बहुत हीं बढिया प्रस्तुतिकरण। ग़ालिब, खुसरो, कालिदास और तुलसीदास को एक जगह पढ कर और सुनकर मज़ा आ गया। और साथ हीं राकू जी, राजा और सुमेधा के क्या कहने। कुल मिलाकर एक संग्रहणीय गीत ।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
uttam,
nahi ati uttam ,
nahi sarvottam
behad hi naayab prastuti ,
abhaar
मैंने भी अभी सुना. बस लगता है कि आँख बंद करके सुनते ही जाओ सब कुछ भूलकर.
ऐसा लगा जैसे कि एक मंदिर में पहुँच गयी मैं. बहुत, बहुत, बहुत ही अच्छा संगीत.
उम्दा प्रस्तुति, बहुत ही अच्छे संगीत के साथ सुनना अत्मनुभूति को संन्तुष्ट कर रहा था।
बधाई
maja aa gaya... amir khusro ki lines ki hindi translation padha to maja duguna ho gaya...
aawaaz ka dhanyawaad.
Bahut hi khubsurat prayash, Bhajan sun kar bahut shukhad anubhuti hui.
इस भजन को कल से २५ से भी अधिक बार सुन चुका हूँ। राकू जी को संगीत की गहरी समझ है। अब इस तरह के भजन कहाँ बनते हैं। ज्यादातर लोग चर्चित फिल्मी गीतों की धुनों पर पैरोडी बनाते हैं, जो बहुत ही बकवास लगता है। हम भविष्य में भी राकू से इसी तरह के मौलिक कार्यों की उम्मीद करेंगे।
sabhee gunijanon ka man se aabhar. main ise 'ramkripa' hee manta hoon.
iske sanyojan me aur recording me bhee mere sahit pooree pooree team ne bhee pooree bhavna se mahsoos kiya ki kuch ' ram kripa ' hee rahee anyatha ye kam is roop ko na le paata. isme ek bhee vadya ,dhwani naheen hai jo 'stock' hai .sabhee strings aur rythem bhee ,sabhee real.sabhee bhartiya vadya. iseeliye itne vadyon ke sath prastuti bhee ek challenge hee ho gayee thee jo 'ram' ne hee kripa kee aur pooree kee.
aapko jan kar aanand hoga ki america,canada aur west indies me bhee ise saraha gaya aur bahut sare mandiron kee pooja prarthna me bhee shamil kiya gaya.
agar 'unkee' kripa rahee to aage bhee shayad aisa hee kuch kar paoon .mere do anya geet bhee hingyugm par hain, aap aanand len.
sabhee ko fir dhanyavad !
yah prastuti bazar me vikray hetu na milegee. sirf 'prasad' ke roop me saujany hee banee rahegee.aap sab ise aapas me mil baant sakte hain, bina kisee bandish copy bana sakte hain ,net pe share kar sakte hain, agrasarit kar sakte hain . sirf dhyan rakhen ki koyee vyavsayik durupyog na ho, bas ! tatha shraddha aur aanand ke liye hee hai . jitne logon tak pahunchegee use main apna saubhagya hee manoonga .
yah meree nirmanadheen film ' SALAM KA KALAAM ' ka climax hoga filmankan me , jiska main nirman tatha dikdarshan bhee kar raha hoon.
film aajkee bhartiya rajniti par ek marmik vyang hai tatha hansate gudgudate ek gambheer prashn bhee karegee ,hamse, is desh se aur samaj se .
saath hee yah film manneeya DR. A P J ABDUL KALAM KE SAPNE ' INDIA VISION 2020 ' KA SANDESH BHEE HOGEE .
aasha hai ki sabhee ke sneh prem se ise poora kar sakoon.
सीधे दिल तक पहुँचनेवाली प्रस्तुति...शब्द...भाव...संगीत... स्वर हर अंश श्रेष्ठ...बधाई...सुनते रहने से मन नहीं भरता...
भजन सुनते सुनते इसके भावों में ही खो गयी, बहुत सुन्दर प्रस्तुति और बेहद भाव पूर्ण अभिव्यक्ति है .
राजा, सुमेधा , राकू जी और समस्त टीम को बहुत बहुत बधाई.
पूजा अनिल
शैलेश जी,
अमीर खुसरो के हवाले से उद्धृत फारसी के एक मूल शे’र का जो अनुवाद दिया गया है उसे देख कर मुझे हिन्द-युग्म के स्तर के विषय में बहुत चिन्ता हो रही है। मैं तो समझता था कि अपने बन्द कमरे में फारसी शब्दों के अटकलपच्ची से कुछ अर्थ लगा कर इस भाषा के काव्य आनन्द उठाने वाले मुझ जैसे लोग कम ही होंगे। पर मेरी इस धारणा को निर्मूल सिद्ध करती है आपकी “रामराज्य बापू का सपना, इस धरती पर लाओ राम” शीर्षकधारी प्रविष्टि। अनुमान से शब्दार्थ करने वाले यह अनुवादक न केवल इस दिशा में मुझ से कहीं आगे हैं अपितु वे अपने ग़लत-सलत अनुवाद को बहुत आात्मविश्वास के साथ अन्तर्जाल पर साज़ और आवाज़ के सहारे निरीह जनता से बांटने को भी तत्पर हैं। हो सकता है कि यह भ्रान्तिपूर्ण अनुवाद राजकुमार सिंह “राकू” जी ने किया हो, या किसी और ने। आपका तो यह कार्य नहीं लग रहा। लेकिन आप के सौजन्य से यह अन्तर्जाल पर है तो कृपया अनुवादक से यह पूछना आपके लिये ही उचित होगा कि
शोखी-ए-हिन्दू ब बीं, कुदिन बबुर्द अज खास ओ आम,
राम-ए-मन हरगिज़ न शुद हर चंद गुफ्तम राम राम।
का अनुवाद
“हर आम और खास जान ले कि राम हिंद के शोख, शानदार शख्सियत हैं। राम मेरे मन में हैं और हरगिज़ न अलग होंगे, जब भी बोलूँगा राम राम बोलूँगा” क्योंकर हुआ। और टुकड़ों/किस्तों में पूछना-बताना चाहें तो
रामे-मन का अर्थ “राम मेरे मन में हैं” कैसे हुआ?
हरगिज़ न शुद का अर्थ “हरगिज़ न अलग होंगे” कैसे हुआ?
और हर चंद गुफ्तम राम राम का अर्थ “जब भी बोलूँगा राम राम बोलूँगा” कैसे हुआ?
अभी पहले मिसरे की तो मैंने बात ही नहीं की। आपसे सविनय किन्तु आग्रहपूर्वक अनुरोध है कि किसी अच्छे फारसी जानने वाले व्यक्ति से जाँच करवा लें। फिर यदि मेरी आपत्ति ठीक पाई जाय तो खेद प्रकाश करते हुए इस पूरी प्रविष्टि को ”राकू” जी के गीत समेत अपने जाल स्थल से हटाकर अपनी सदाशयता का परिचय दें व साहित्यिक मर्यादाओं को स्वीकृति प्रदान करें। । इस विषय में देरी न करें। मैं पहले ही इस आशय का एक पत्र ईकविता में भेज चुका हूं। आपने अवश्य देखा होगा। आशा है कि मेरी टिप्पणी देख कर इस विषय में अन्य सुधी पाठक भी अपना अभिमत देंगे।
- घनश्याम
६ अप्रैल २००९
priya ghanshyamjee
aapkee tippanee prapt kar mujhe ek tarah se khushee hee hasil huyee hai . karan ki yah anuvad mera kiya hua naheen hai .NEW YORK KE MERE MITRA HAIN DR. KHALEEQ .U. ARSHED . VE MOOLTAH LAHOR PAKISTAN KE HAIN .UNKEE PATNEE DR. NAHEELA K.ARSHED URDU-FARSEE ADAB KEE JANKAR HAIN. 2005 ME UNHONE NEWYORK ME 'KHUSRO' PAR EK LAMBEE NRITYA NATIKA PESH KEE THEE .MAIN AMEER KHUSRO KEE HINDAVEE KAVITA SE PARICHIT THA . MUJHE MALOOM PADA KI UNKA BRIHAT KAM FARSEE ME HUA HAI .
UNHEEN SE MUJHE UPROKT 'RACHNA' PRAPT HUYEE .AUR MUJHE YAHEE ANUVAD BATAYA GAYA .IS PAR JO BHEE AALEKH LIKHA HAI VAH SANDARBH BHEE MAINE US NRITYA NATIKA ME CHAPE ENGLISH PART KA ANUVAD HEE KIYA HAI.
GHANSHYAM JEE KEE TIPPANEE INGIT KARTEE HAI KI SHAYAD ANUVAD ME BHAYANKAR BHOOL HUYEE HAI .
UPROKT SOOCHIT ANUVAD MERA AANAND THA KI SHRI RAM KE BARE ME EK MUSLIM NE AADAR SOOCHAK BHAV VYAKT KIYE HAIN AUR BHARAT KEE 'NIREEH'JANTA SE MAINE YAHEE AANAND BANTNE KA PRAYAS KIYA HAI.
GHANSHYAM JEE AAP KE LIKHE SE LAGTA HAI KI AAP FARSEE KE PRAKAND GYANTA VIDVAN HAIN.PAHELIYAN BUJHANE KE BAJAY AGAR AAP ISKA ANUVAD DE DETE AUR BATATE KI KOYEE ANARTH HUA HAI TO MAIN PAHLA VYAKTI HOTA JO SUDHAR KEE PAHAL KARTA .MAIN FARSEE KA KOYEE VISHES GYAN NAHEEN RAKHTA. HAAN URDU SHAIREE ME SUMAR FARSEE KE SHABDON KE ARTH KUCH JANTA HOON AUR SAMAJH LETA HOON.
LAGTA HAI KI AAPKEE MUKHYA KAMNA MERE PRAYAS KO MOORKHTA AUR AGYAAN SABIT KARNA MATRA HAI,TRUTI NIVARAN NAHEEN,AUR SWAYAM KO MAHAN VIDVAN SABIT KARNA .AAPKEE VIDVATA TO AAP JANE APNE GYAN AUR USKE AADHAR KO MAINE BATA DIYA HAI. AUR KAISE USE AANAND MAN BANTNE KEE KOSHISH KEE , KI YAH HAMARE 'RAM' KEE SHAN ME HAI.
AAPKEE BAAT KO MAIN KAAT NAHEEN RAHA HOON.PAR AAP YEH TO BATATE KI BAND KAMRE ME GAHAN MANAN KARNE VALE AAP KAUN HAIN AUR SIRF AAPKEE AAPATTI PAR HEE AAPKEE ICHCHIT KARYAVAHEE KEE JAYE ?
ITNA LAMBA AALEKH LIKHNE KE BAJAYE AUR VIDVATA DARSHANE KI BAJAY MAHARAJ HAM JAISE MOORKHON KO SIRF BATAYEN KI SAHEE ARTH KYA HAI YA AAP MISRE KE BARE ME PAIR PAKADNE PE HEE 'GYAN' DENGE.
MEREE ASLEE CHINTA YAH HAI KI APNE 'SHRIRAM ' KEE SHAN ME TO KUCH GALAT ULLEKH NAHEEN KAR DIYA . MERE LIYE YAH PRASHN FARSEE, USKE AAP JAISE VIDVANON AUR 'ASLEE'
ANUVAD SE BADH KAR HAI SRIMAN.
FARSEE BHASHA MAINE NAHEEN PADHEE AUR APNE VISHWAS SE EK VIDVAN SE HEE JAN KAR KUCH KOSHISH KEE . ISMSE MERA FAYEDA UTHANA BHEE UDDESH NAHEEN HAI.VISHWAS KAREN SAHITYA KEEMARYADAVON KO MAIN AAPSE KAM SAMMAN NAHEEN DETA .
MAIN IS SAMAY USA ME HEE HOON AUR APNE SOURCE TAK PAHUNCHNE KEE KOSHISH KAR RAHA HOON. FIR BHEE SAATH HEE ANYA VIDVANON SE BHEE JANNE KEE KOSHISH KAR RAHA HOON.
PICHLE DEDH SAAL ME AB TAK KAYEE HAZAR CD'S KA 'PRASAD' BAANT CHUKA HOON. USME BADE SARE PAKISTANEE AUR MUSALMAN BHEE HAIN. NA JANE KITNEE PRASANSAYEN MILEEN.MERA DURBHAGYA KI ABHEE TAK KISEE VIDVAN SE MULAKAT NA HO PAYEE .AB KRIPAYA AAP BHOOL SUDHR KARAYEN AUR ISKA KUCH ARTH BHEE BATAYEN KI ISME 'RAMJEE' KE BARE ME KUCH ANUCHIT NA KAHA GAYA HO.
HINDYUGM SE BHEE PRARTHNA HAI KI POORN PRAYAS KAREN KI SAHEE ARTH MILE AUR UNKA STAR KHARAB NA HO.
GHANSHYAM JEE EK BAR FIR DHANYAVAD. HAMARA DURBHAGYA HAI KI HAMAREE CLASSICAL BHASHAYEN JAISE FARSEE ,SANSKRIT AADI KE VIDVAN KAM HO CHALE HAIN. KAM SE KAM ITNA TO BATA DEN KI ARTH JO HAI SO HAI YE RACHNA TO 'KHUSRO' KEE HEE HAI?
Raj Singh Ji, Ye Ghanshyam Ji wakai mahan viddwan hai aur Khushro ki is kriti ka puri prithwi par keval yehi anuvad karne me sakshm lagte hai, ath ye jimmewari inhe hi shope :(, aur is aalochak mahashay ki aatma ko waisi hi shanti pradan kare, jo baki logo ko aapke is bhazan ko sunne ke baad prapt hua.
Pharshi shabdo ke anubad ka to mai kuch khash nahi kah sakta, lekin aapka dheyay, aapke prayash ka mai tahe dil se samman aur swagat karta hu.
BHAYEE SANT SHARMAJEE,
NAMASKAR !
AAPKO MERE PRAYAS KE UDDESH PAR VISHWAS HAI AUR VAH AANAND DAYAK HAI YAHEE MEREE SANTUSTI HAI .FIR BHEE KISEE BHEE SAHITYIK PARIPATEE KA SAMMAN JAROOR HOGA. SIRF SAHYOG AUR GYAN KE AADAN PRADAN SE SAMBHAV HEE HAI PAR VIVAD SE KISEE KA BHALA NAHEEN . SIRF SAMAY VYARTH KARNA HOGA .
Raj Singh Ji,
Aapko bhi mera Pranam!
Mai aapki is baat se puri tarah sahmat hu vivad chota ho ya bada, vicharo ke adan-pradan se hi use mitaya jana chahiye, ya yu kahe ki mitaya ja sakta hai, parantu kuch log ye kaha samajh pate hai. Yadi anubad sambandhi koyi truti rahi bhi ho, to be use Point out karne ka Ghanshyam ji ka tarika katai sammanjanak nahi tha, aur uska virodh hona hi chahiye.
शैलेश जी,
आपने ईकविता परिवार को राम नवमी की बधाई दी और अमीर खुसरो के नाम से कुछ अनुवाद दिया जो मुझे संभाव्य नहीं लगा तो मैं आपके द्वारा दिये हिन्द-युग्म के स्थल पर गया और फारसी का “मूल” शे’र देखा। आपको एक पत्र लिख कर स्पष्ट किया था कि मुझे फारसी का यथेष्ट ज्ञान नहीं है और कुछ सन्देह है कि अनुवाद ठीक नहीं हुआ है। जब पत्र का उत्तर ईकविता पर नहीं मिला तो एक वैसा ही पत्र यहां हिन्दी-युग्म पर भी लिख दिया। अपने आप को विद्वान न समझता हूं न ऐसा दर्शाना ही मेरा उद्देश्य है। शायद टिप्पणी देने में मेरी अनुभवहीनता ने ही मुझे श्री राज सिंह और श्री संत शर्मा के इस अनपेक्षित कोप का भाजन बनाया । वैसे इस विषय में आपका मुझे लिखा व्यक्तिगत धन्यवाद पत्र तो अतीव सौम्य एवम् सहज था।
राज सिंह जी को इस बात की अधिक चिन्ता है कि मेरा नाम घनश्याम ही है या घनश्याम मेरा छद्मनाम है। दूसरे वे चिन्तित हैं कि मैं कहीं रामद्रोही तो नहीं। ये दोनों ही प्रश्न असंगत हैं। मेरा आग्रह क्या था यह मैं पहले ही लगभग स्पष्ट कर चुका हूं। फिर से स्पष्ट कर देता हूं कि अनुवाद यदि ठीक है तो ठीक है। गलत है तो ठीक किया जाय। वह भी आपकी इच्छा पर निर्भर है। गीत को हटाने की सलाह केवल उसमें गलत अनुवाद के कारण ही थी, और तो कोई मुद्दा मैंने उठाया ही नहीं। रही बात मेरे सही अनुवाद बताने की, सो मुझे जिन शब्दों पर विशेष संदेह था मैंने लिख दिये थे। मैं समझता हूं कि रामे-मन का अर्थ होगा “मेरे राम”, हरगिज़ न शुद का मतलब शायद “हरगिज़ न था” होगा और हरचंद गुफ्तम राम राम यानी “यद्यपि मैं राम राम कहता था”। राज साहब कुछ प्रश्न मुझसे पूछ रहे हैं “KAM SE KAM ITNA TO BATA DEN KI ARTH JO HAI SO HAI YE RACHNA TO 'KHUSRO' KEE HEE HAI?” तो मैं इस विषय में कुछ कैसे कह सकता हूं। पहली बार यह शे’र देखा। बताया गया कि अमीर खुसरो का है, हो भी सकता है। स्रोत पता लगे तो मुझे भी बतायें।
YEH TO BATATE KI BAND KAMRE ME GAHAN MANAN KARNE VALE AAP KAUN HAIN AUR SIRF AAPKEE AAPATTI PAR HEE AAPKEE ICHCHIT KARYAVAHEE KEE JAYE ? मैंने अपने विषय में गहन मनन की बात नहीं की थी “अटकलपच्ची” की बात की थी। मैं कौन हूं यह तो मैं ठीक से नहीं जानता पर इससे कुछ खास फर्क भी नहीं पड़ना चाहिये। विशेषकर अन्तर्जाल पर तो बिना नाम के या छद्मनाम से टिप्पणियां दी जाती हैं ताकि केवल सामग्री पर ध्यान दिया जा सके न कि सामग्री भेजने वाले के अन्यान्य विशेषणों पर। मैं कौन हूं इसे मैने क्या कहा से अलग कर के देखना ही औचित्यपूर्ण लगता है। वैसे मैंने अपने आपको छुपाने का भी कोई प्रयास किया हो या उसकी आवश्यकता समझी हो ऐसा भी नहीं है।
सिर्फ मेरी आपात्ति पर कोई कार्यवाही की जाय ऐसा तो मैंने कहा नहीं। जो हिन्दी-युग्म के संचालक हैं वे अपनी इच्छानुसार मेरी टिप्पणी का अर्थ लगायें और जो उचित समझें करें। मेरा उद्देश्य लोगों से मित्रभाव बढ़ाना है कम करना नहीं, इसलिये आपको अन्यथा आभास हुआ है ऐसा देखकर मैं यदि भविष्य में कभी कुछ और कहूंगा भी तो संभवतः अत्यधिक सावधान रहूंगा।
साहित्यप्रेमी हूं या नहीं यह बड़ा संकोच में डालनेवाला सवाल है। शायद हां ही कहना चाहूंगा। इसी प्रकार ध्वंसकर्ता तो अपने आपको नहीं कहूंगा। पर किसका ध्वंस? शिव का तांडव रूप या दुर्गा का मर्दिनी रूप तो सामान्य ध्वंस है नहीं।
मैं यह नहीं समझ पाया कि APNE SHRIRAM को “अपने श्रीराम” पढ़ूं या “आपने श्रीराम”? उस वाक्य में अर्थ बदल जाता है।
शैलेश जी, यदि मेरे उपरोक्त स्पष्टीकरण के बाद भी मुझे आपकी ओर से किसी प्रकार की क्षमायाचना का स्पष्ट निर्देश दिया जायेगा तो इस बात की ही अधिक संभावना है कि मैं उसका पालन करूंगा। किसी की भावनाओं को आघात पहुंचाना तो मेरा उद्देश्य कदापि नहीं रहा और मेरी बात की सम्प्रेषणीयता सीमित रह जाय तो इसमें सम्पूर्ण दोष मेरा होगा नहीं।
- घनश्याम
७ अप्रैल २००९
MITRO ,
MAINE YAHAN TORONTO ME BHEE KUCH FARSEE JANKARON SE VICHAR MANGE . UNKA KAHNA HAI KI SHABDSAH ANUVAD KEE CHODEN TO BHAVANUVAD ME KUCH GALAT NAHEEN HAI .
FIR BHEE GAHAN VICHAR JAROOREE HAI AUR MAIN KISEE SHANKA KO STHAN NAHEEN DENA CHAHTA .
SABHEE GUNIJANO KEE MADAD KEE PRARTHNA HAI .
YADI KISEE SUDHAR KEE JAROORAT HAI TO IS STAGE PAR AASAN HOGA AUR NIVEDAN KA TRACK FIR SE SUDHAR KAR JODA JA SAKTA HAI . LEKIN EK BAAR FILM KA HISSA BAN GAYA TO MUSHKIL JYADA HOGEE .
SABHEE KA SAHYOG PRARTHEE HOON .
RAJ SINH 'RAKU'
कविता के अनुवाद में भावानुवाद को प्राथमिकता दी जाती है दी जानी चाहिये।जो इस में पूर्ण रूपेण सही व सटीक है,मैं इसमें किसी खेद की गूंजाइश महसूस नहीं करता। और खेद किससे ? क्या खुसरो ऐसा कहते ?
नियंत्रक अब इस बहस में न पड़ें।
बहुत सुन्दर पोस्ट पर-प्रस्तुत करता व नियंत्रक बधाई के पात्र हैं
श्याम सखा ‘श्याम’
Ghanshyam Ji, Aapko sandeh keyu hai, keya :
1) Aapne Khushro dwara rachit sari rachnaye padhi hai ?
2) Aap is kriti ke vastavik rachayita ke bare me koyi jankari rakhte hai ?
yadi haa, to aap hi shrot batlakar is charcha ko viram digiye.
Yadi nahi, to aapke man me is prashn ke uthne ka koyi auchitya nahi banta, ath apne man ko samjhane ka prayash kare.
Aadhar vihin tark - vitark se kiska bhala hua hai aajtak, ki hum sabo ka hoga, boliye ?
ghanshyamjee ,
aap lagta hai bhramit hain ya bhramit kar rahe hain sabhee ko . main naheen samajh pa raha hoon ki jo aapne link diya hai uska is charcha se kya sambandh hai . yah link to GOPAL SINGH 'NEPALEE' KE GEET DARSHAN DO GHANSHYAM SE SAMBANDHIT HAI .FIR ISKA ULLEKH YAHAN KIS SANDARBH ME ?
DOOSARE, DR. ARSHAD SE PHONE PAR CONTACT KIYA.UNHONE BATAYA KI UPROKT SHER KHUSRO KA HEE HAI AUR USKE BHAVANUVAD ME KUCH GALAT NAHEEN HAI.AUR BATAYA KI YE TATHYA ALIGARH MUSLIM UNIVERSITY KE PHD SHODH PRABANDH SE UDHRIT HAI. AUR VAH DOCUMENTATION KE AADHAR PAR HEE UNKEE KHUSRO PAR LIKHI GAYEE NRITYA NATIKA ME BHEE SHAMIL KIYA GAYA THA .
MAIN ABHEE TORANTO ME HEE HOON AUR EK HAFTE ME NEW YORK PAHUNCHUNGA.KOSHIS KARUNGA KI LIKHIT/PRAKASHIT DASTAVEJ UPLABDH BAN PADE TO KAROON/KARAOON. FIR BHEE SIRF SHANKA KE AADHAR PAR HEE ITNA CHIDRANVESHAN UCHIT NAHEEN JAN PADTA.MAIN SWAYAM BHEE ISE BAHUT MAHATVAPOORN MANTA HOON AUR JANTA HOON KI IS PRAYAS ME ACADEMIC TRUTI ANUCHIT HAI. PAR TARK KA KUCH AADHAR TO HO .
MAIN CHAMA CHAHOONGA GHANSHYAM JEE KI AB TAK DIYE HUYE TARKON ME MAIN VAJAH NAHEEN PATA HOON KI IS PAR AUR VIMARSH KAR SAKOON .
ANYATHA NA LEN MUJHE BADE SARE SAARTHAK KAMO SE ITNEE FURSAT NAHEEN KEE ANDHERE ME TEER CHALANE ME AAPSE PRATIYOGITA KAROON . IS STAGE PAR ITNA HEE KAHOONGA KI 'MAIN SANTUSHT HOON ,AUR JO SHROT HAIN MUJHE UPLABDH UNKEE BINA PAR MAN SAKTA HOON KI YAH KHUSRO KA HEE SHER HAI AUR ISKA BHAVARTH TRUTIPOORN NAHEEN KAHA JA SAKTA .
IS BARE ME SHRI SANT SHARMA JEE NE BHEE KUCH TARKIK AADHAR RAKHE HAIN. UN PAR BHEE SOCHA JAYE.FIR KAHOONGA "MAIN TATHYON AUR VIDVAT MANDAL KEE SOOCHNA KA SWAGAT HEE KAROONGA AUR MERA KOYEE BHEE AHANKAR NAHEEN HAI NA HO SAKTA HAI
.
MAIN TO YAH BHEE SWEEKAR KARTA HOON KI MAIN PESHE SE ENGINEER HOON AUR IS BARE ME MAIN POORNATAH ANYA ACADEMIC SHROTON PAR HEE NIRBHAR HOON."
DHANYAVAD.
संत शर्मा जी के प्रश्नों का उत्तर ये है:
१. जी नहीं मैंने अमीर खुसरो द्वारा रचित सारी रचनायें नहीं पढ़ीं। यही नहीं, मेरा उर्दू-फारसी का ज्ञान बहुत सीमित है ऐसा भी मैं पहले कह चुका हूं। केवल एक सन्देह व्यक्त किया है जिसकी पुष्टि या खंडन करने में इस चर्चा में भाग लेने वालों का सहयोग अपेक्षित है। यह भी आवश्यक नहीं कि कोई अंतिम निर्णय हो। टिप्पणियों का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है विचारों का स्वस्थ आदान-प्रदान।
२. मुझे इस शे’र के रचयिता के बारे में पता नहीं है यह मैंने पहले भी कहा था। पहली बार सुना था। मुझे इस शे’र की इबारत भी कुछ ठीक नहीं लग रही। जैसे “कुदिन” के स्थान पर शायद “कि दीं” होना चाहिये। फिर मैं स्रोत कैसे बता सकता हूं?
कुतर्क का उदाहरण यह होगा कि इस शे’र को रूमी या सादी या हाफिज़ का कह दिया जाये और फिर संदेह करने वाले से प्रश्न किया जाये कि “क्या आपने इन महान साहित्यकारों का संपूर्ण साहित्य पढ़ा है?” महाकवि तुलसीदास रचित रामचरितमानस के कई संस्करण उपलब्ध हैं जिनमें कई क्षेपक प्रसंग हैं। सामान्यतः गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ को मान्यता प्राप्त है।
यहां तक लिखा तो श्री राज सिंह जी का नवीनतम पत्र देखा। अतएव मैं अपनी टिप्पणी को इन शब्दों के साथ समाप्त करता हूं:
१. राज जी, जो लिंक मैंने भेजा था उसमें मुद्दआ बहुत मिलता जुलता था कि “दर्शन दो घनश्याम नाथ” के रचयिता सूरदास थे या गोपाल सिंह नेपाली। पिछले सप्ताह किसी ने बताया कि यह मामला अब (बहुत दिनों से) न्यायालय में विचाराधीन है।
२. यदि श्री राज सिंह संतुष्ट हैं तो आगे चर्चा का औचित्य काफी कम हो जाता है। “DOOSARE, DR. ARSHAD SE PHONE PAR CONTACT KIYA.UNHONE BATAYA KI UPROKT SHER KHUSRO KA HEE HAI AUR USKE BHAVANUVAD ME KUCH GALAT NAHEEN HAI.AUR BATAYA KI YE TATHYA ALIGARH MUSLIM UNIVERSITY KE PHD SHODH PRABANDH SE UDHRIT HAI. AUR VAH DOCUMENTATION KE AADHAR PAR HEE UNKEE KHUSRO PAR LIKHI GAYEE NRITYA NATIKA ME BHEE SHAMIL KIYA GAYA THA". इस कथन के बाद भी मैं चर्चा को अपने स्तर पर समाप्त प्रायः ही समझता हूं। अनुवाद और भावानुवाद कितने ठीक हैं इसमें मेरा संदेह अभी भी है। मूल शे’र की इबारत मिलने पर नये सिरे से समझने की चेष्टा करूंगा।
३. समय का अभाव मैं भी महसूस करता हूं।
४. भ्रमित मैं स्वयं तो हो सकता हूं पर किसी को भ्रमित करना मेरा उद्देश्य कदापि नहीं है।
५. श्री सन्त शर्मा के किन तर्कों की बात कर रहे हैं? क्या मैंने ऊपर जो इस विषय में कहा वह यथेष्ट है?
सर्वे भवन्तु सुखिनः
- घनश्याम
इस पोस्ट से हम तो वंचित ही रहे. आभार की आपने इसकी लिंक दी. बहुत ही सुन्दर और प्रशंशनीय प्रयास. वाकई गायन भी उत्कृष्ट बन पड़ी है. अमीर खुसरो के के बारे में भी ज्ञानवर्धन ही हुआ. पुनः आभार. (पत्नी की टांग टूट गयी है. प्लेट लगा कर कसा गया है. फिलहाल एक माह व्यस्त ही हूँ
main bhi wahi kahna chaungi jo sabhi logo ne yahan aakar kaha ,itni pyaari prathna ke saath sabhi guru jano ka zikr liye pujya baapu ji dwara ki gayi sarvodya ki kalpana par vichar kul milakar ye post laazwaab rahi
मोके किरपा करो श्री राम .....राजा हसन औए सुमेधा जी द्वारा गया यह गीत ....कहीं भीतर तक एक सुकून सा देता है .....बस एकाग्रचित होकर सुनने wala adbhut गीत ......!!
sir I don't know how to comment here in HINDI. But i want to say in simple words that "Namaami Ramam" is not only a song or prayer, this is the Jan-Geet. This is one of the best SONG i have heard in my life. Swami Shraddhanand fulleri is not well known to all.. but he replaced "Atma" with "Dhan" by saying "Tan Man Dhan sab kuchh hai tera... swami sabkuchh hai tera... tera tujhko arpan.. kya laagey mera.. Om jai jagdeesh harey... bhakt jano ke sankat ... kshan mein door karein.." But i would say... this song gave me the idea that.. the day is coming when "Dhan" will be replaced by the "Atma". Life has three sub- pilers TAN, MAN, ATMA. MANN is being ruled by Atma, Tann is being ruled by MANN. when we replace Atma with Dhan.. the Mann will always be instable.. coz Dhan is not static by its nature... where as Atma is static.. this is perhaps the reason that ... the MANN is always Insecure just due to slavery of Dhann. If we want freedom or Ramrajya... our Mann must be ruled by ATMA... INSTEAD DHAN...
this is SOULFUL SONG...
ITS LIKE REVIEWING THE ATMA...
GIVING THE SOUL TO ITS ORIGINAL POSITION...
Thank u so much for this Exceptional Creation..
plz accept my Greetings..
R.K.JUGNOO
State GENERAL SECRETARY
J.D.(U)
DELHI
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