रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Thursday, April 9, 2009

नसीर और "फिराक" की बातें




दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा ने बहुत से कलाकार दिए है सिनेमा जगत को पर एक नाम जो इनमें सबसे अहम् है वो है नसीरूदीन शाह का. नसीर अदाकारी का आफताब है. अभिनय की ऐसी रेंज बहुत कम कलाकारों में देखने को मिलती है. जिस दौरान नसीर फिल्मों में आये, उस दौर में व्यवसायिक फिल्मों में अभिनय को कम और "स्टार वैल्यू" को अधिक तरजीह दी जाती थी पर ऐसा भी नहीं था कि सोचपूर्ण और अर्थवान फिल्मों के कद्रदान नहीं थे. यही वो दौर था जब कलात्मक फिल्में जिन्हें समान्तर फिल्मों ने भी अपने चरम को छुआ. श्याम बेनेगल, कुंदन शाह, केतन मेहता, सईद मिर्जा, मुज़फ्फ़र अली, प्रकाश झा, महेश भट्ट सरीखे निर्देशकों ने और नसीर, ओम् पूरी, शबाना आज़मी, और स्मिता पाटिल जैसे दिग्गज फनकारों ने सिनेमा को व्यवस्यिकता की अंधी दौड़ में गुम होने से बचा लिया. इनमें से नसीर ने अभिनय का एक लम्बा सफ़र तय किया है. उनकी सबसे ताजा फिल्म है - फिराक. आगे बढ़ें इससे पहले सुनिए इसी फिल्म से रेखा भारद्वाज की आवाज़ में दर्द की कसक-



"मिर्च मसाला" में तानाशाह सूबेदार की भूमिका हो, या "पार" में नौरंगिया का जटिल किरदार हो, "मंडी" का टुगरुस, "मंथन" का भोला हो या "जनून" का सरफ़राज़, "लिबास" का रंगकर्मी सुधीर या फिर "स्पर्श", "आक्रोश", "भूमिका", "अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है", "पेस्टन जी", "बाज़ार", "उमराव जान" और "इजाज़त" जैसी फिल्मों की जटिल भूमिकायें. "जाने भी दो यारों" में वो जम कर हंसाते हैं तो व्यवसायिक "वोह सात दिन", "मासूम", "करमा", "गुलामी", "हीरो हीरालाल", "त्रिदेव", "सरफ़रोश", "कभी हाँ कभी ना", "चमत्कार" और "क्रिश" जैसी फिल्मों में भी सहज ही ढल जाते हैं. "मिर्जा ग़ालिब" को वे अपने अभिनय से जिन्दा कर देते हैं तो हालिया प्रर्दशित "a wednesday" में आम आदमी के आकोश को बिना लाउड हुए परदे पर उतार देते हैं. अभिनेत्री से निर्देशिका बनी नंदिता दास ने उन्हें "फिराक" में एक मुस्लिम शास्त्रीय गायक की भूमिका दी है. नसीर के चाहने वालों के लिए ये फिल्म भी एक ट्रीट है. इस फिल्म के प्रीव्यू के दौरान नसीर ने कहा कि - "मैं ऐसी फिल्में करना चाहता हूँ जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करे." फिल्म की सफलता से प्रेरित होकर एक संगीत एल्बम भी अभी हाल ही में रीलीस किया गया है. सुनिए इसी एल्बम से नसीर की आवाज़ में ये कमेंट्री-



"फिराक" गुजरात दंगों पर आधारित है. नंदिता दास की इस पहली निर्देशित फिल्म ने पहले ही ढेरों रास्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मान जीत लिए हैं. फिल्म में नसीर के आलावा दीप्ति नवल, परेश रावल, रघुबीर यादव, संजय सूरी, और टिस्का चोपडा जैसे अदाकार हैं. कहने की जरुरत नहीं कि किस खूबी से नसीर ने अपने किरदार "खान साहब" को निभाया है. खान साहब गुजरात के ताजे हालातों से वाकिफ तो हैं पर शायद विश्वास नहीं कर पा रहे हैं या फिर नहीं करना चाह रहे हैं कि सिर्फ मजहब के नाम पर कैसे इंसान इंसान के खून का प्यासा हो चुका है. फिल्म में एक संवाद है जहाँ हालातों से मायूस हो चुके एक वरिष्ठ फनकार को ये कहना पड़ता है -"सिर्फ सात सुरों में इतनी ताक़त कहाँ जो इतनी नफरतों का सामना कर सके..". यकीन मानिए जब नसीर ऐसा कहते हैं तब दर्शकों के भीतर भी कहीं कुछ टूट सा जाता है. फिल्म का साउंड ट्रेक भी बहुत जोरदार है. संगीत प्रेमियों के लिए यह एक सार्थक संकलन है. महसूस कीजिये जगजीत सिंह की आवाज़ में "गुजरात के फिराक" को-




एक समय था जब कलात्मक फिल्मों को मिलने वाली उपेक्षा से दुखी होकर नसीर ने व्यावसायिक फिल्मों की तरफ रुख किया था, पर ऐसे किरदार जिनमें कोई चुनौती नहीं इस गहन अभिनेता को कहाँ संतुष्ट कर सकते थे. यही वजह थी कि नसीर ने वापस रंगमंच की तरफ रुख किया. सआदत हसन मंटो और इस्मत चुगताई के बहुत से कथा पात्रों को न सिर्फ उन्होंने अपने अभिनय से सजाया बल्कि उनके नाट्यरूपान्तरों का निर्देशन भी किया. हालाँकि अपनी पहली निर्देशित फिल्म "यूँ होता तो क्या होता" बहुत अधिक प्रभाव नहीं छोड़ पायी पर इस फिल्म से उन्होंने अपने बेटे इमाद शाह को बड़े परदे पर उतारा. अपने अभिनय से इमाद उम्मीदें तो जागते ही हैं. multiplex के दौर में अब जब व्यावसायिक और समान्तर सिनेमा के बीच की दूरिया ख़तम हो चुकी है और अधिक से अधिक निर्देशक आज सार्थक और मौलिक संवेदनाओं पर आधारित फिल्में रच रहे हैं नसीर जैसे कलाकारों को फिर से उनके कद के अनुरूप किरदार मिलने लगे हैं. "दस कहानियां", "परजानिया", "खुदा के लिए", "बारह आना", "तीन दीवारें", "a wednesday", "ओमकारा" और "फिराक" जैसी फिल्में इसी बात का सबूत है. मुझे लगता है अभी भी नसीर को उस रोल की तलाश है जिसमें वो अपना सब कुछ दे सके. जल्द ही हमें उनके अभिनय से सजी कुछ और बहतरीन फिल्में देखने को मिलेंगीं इस विश्वास के साथ सुनते हैं फिल्म फिराक से ही ये गीत -



नोट - फिल्म "फिराक" एल्बम के कुछ गीत मात्र ३२ kbps पर आपके लिए एक प्रीव्यू स्वरुप रखे गए हैं. पूरे गीतों को उच्चत्तम क्वालिटी पर सुनने के लिए ओरिजनल सी डी खरीदें.

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2 श्रोताओं का कहना है :

Dineshrai Dwivedi का कहना है कि -

गीतों में नयापन तो है।

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -

नसीरुद्दीन शाह सिर्फ भारतीय सिनेमा ही अहीं अपितु विश्व सिनेमा में अपना मकाम रखते हैं उनपर और विस्तार से जानकारी अपेक्षित है.

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