रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Sunday, April 26, 2009

चंदा मामा मेरे द्वार आना...बच्चों के साथ बच्ची बनी आशा की आवाज़ में ये स्नेह निमंत्रण



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 62

साधारणत: हिन्दी फ़िल्मों के विषय नायक और नायिका को केन्द्र में रख कर ही चुने जाते हैं। लेकिन नायक-नायिका की प्रेम-कहानी के बिना भी सफ़ल फ़िल्में बनाई जा सकती है ये हमारे फ़िल्मकारों ने समय समय पर साबित किया है। ऐसी ही एक फ़िल्म है 'लाजवंती' जिसमें एक माँ और उसकी छोटी सी बच्ची के रिश्ते को बड़ी संवेदनशीलता से दर्शाया गया है। दोस्तों, मैने यह फ़िल्म बहुत साल पहले दूरदर्शन पर देखी था और जितना मुझे याद आ रहा है, इस फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की है कि ग़लतफ़हमी का शिकार पति (बलराज साहनी) अपनी पत्नी (नरगिस) को घर से निकाल देता है और इस तरह से माँ अपनी बेटी (बेबी नाज़) से भी अलग हो जाती है। थोड़े दिनो के बाद पति-पत्नी की ग़लतफ़हमी दूर हो जाती है और वो घर भी वापस आ जाती है लेकिन बेटी के दिल में तब तक अपनी माँ के लिए इतना ज़हर भर चुका होता है कि यही फ़िल्म का मुख्य मुद्दा बन जाता है। अंततः जब बेटी को सच्चाई का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है क्योंकि तब तक नरगिस आत्महत्या के लिए निकल पड़ती है। नरगिस खाई में छलांग लगाने ही वाली है कि पीछे से उसकी बेटी उसे "माँ" कहकर पुकारती है और इस तरह से माँ-बेटी के पुनर्मिलन के साथ फ़िल्म का सुखांत होता है।

१९५८ की फ़िल्म 'लाजवंती' में सचिन देव बर्मन का संगीत था और इस फ़िल्म के ज़्यादातर गीतों को आशा भोंसले ने गाया था । "कोई आया धड़कन कहती है", "कुछ दिन पहले एक ताल में कमलकुंज के अंदर रहता था एक हंस का जोड़ा" और "गा मेरे मन गा, यूहीं बिताये जा दिन ज़िन्दगी के" जैसे गीत बेहद मशहूर हैं। सन १९५७ में लता मंगेशकर और सचिन देव बर्मन के बीच कुछ ग़लतफ़हमी हो गई थी जिसकी वजह से दोनों ने एक दूसरे के साथ काम करना बंद कर दिया था। इस ग़लतफ़हमी की पूरी कहानी हम किसी और दिन आपको तफ़सील से बताएँगे। तो इस ग़लतफ़हमी की वजह से दादा बर्मन लताजी के बजाये आशाजी से गाने गवा रहे थे। 'लाजवंती' इसी दौरान बनी फ़िल्म थी और शायद यही वजह रही होगी कि दादा ने इस फ़िल्म का एक भी गाना लताजी से नहीं गवाया। आज इस फ़िल्म से हम आपको सुनवा रहे हैं आशा भोंसले और साथियों का गाया एक बच्चोंवाला गाना और गाने के बोल हैं "चंदामामा मेरे द्वार आना"। यह लीजिये, यह तो तुकबंदी भी हो गई। गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे इस गीत में परदे पर बेबी नाज़ और दूसरे बच्चों को स्कूल के किसी जलसे में स्टेज पर गाते और नृत्य करते हुए दिखाया गया है। तो सुनिये यह गीत और याद कीजिये अपने स्कूल के दिनो को और अपने स्कूल के वार्षिक जलसों को...



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. साहिर के बोल और रोशन का संगीत.
२. लता की जादूई आवाज़.
३. गीत शुरू होता है इस शब्द से - "दुनिया"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
जहाँ पिछली बार ढेरों विजेता थे इस बार एक भी नहीं...गीत मुश्किल था, इस कारण सभी को माफ़ी दी जाती है....

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.



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8 श्रोताओं का कहना है :

Neeraj Rohilla का कहना है कि -

फिल्म बहू बेग़म का बेहतरीन गीत,
दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें

neelam का कहना है कि -

iska doosra gana hume behad priy hai ,aap achche waale gaanon ki paheliyaan kyon nahi poochte

hum intjaar karenge tera kayaamat tak ,khuda kare ki kyamat ho aur too aaye .
visesh apeal -apne gaane ke saath is gaane ko bhi jaroor ,jarrooor se sunvaayiye nahi to hum nahi aane wale koi bhi gaana sunne aapke is aawaj section par

manu का कहना है कि -

यहाँ भी धौंस शुरू,,,,,,,,
सुनाओ जी,, वो गाना वाकई शानदार है,,इस दादागिरी के चलते हमें भी सुनने को मिल जायेगा,,,,
जवाब तो नीरज जी ने एकदम सही दे ही दिया है,,,

पर कल सब लोग कहा थे,,,,?

neelam का कहना है कि -

neeraj jike peeche aap ,aur aap ke peeche hum sab log line banakar chupe the .

apni bataayiye ki aap khaan the ,hehehehehehe jinke ghar sheese ke hote hain wo doosron par pathar nahi fenka karte .

manu का कहना है कि -

dekhaa hai,,,
sirf hamaari hi haajiri lagee hui hai sabse pahle ,,,ye kahne ke liye ke hame nahee aataa,,,,,

hamaare baad bas aachaarya hi hain,,,,,

Bharat Pandya का कहना है कि -

paheli ka uttar----Duniya kare savalto hum kya javab de Mamta film.

manu का कहना है कि -

ममता का नहें,
हमें तो ये गाना नीरज जी और नीलम जी की तरह,,,,,,,
बहू बेगम का लग रहा है,,,,

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -

लाजवंती को याद करना...वाकई कमाल है.

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