ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 45
शक्ति सामंता एक ऐसे फिल्मकार थे जिन्हे हमेशा यह मालूम होता था कि लोग किस तरह की फिल्म देखना पसंद करते हैं. और यही वजह थी कि उनकी ज़्यादातर फिल्में सफल रहीं. 1964 में शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर को लेकर "कश्मीर की कली" बनाने के बाद वो इन दोनो को लेकर एक ऐसी फिल्म का निर्माण करना चाहते थे जो किसी विदेशी शहर की पृष्ठभूमि पर आधारित हो. शक्ति बाबू ने पैरिस को चुना और अपने फिल्म का शीर्षक "अन इवनिंग इन पैरिस" रखने का निश्चय किया. एक मुलाक़ात में उन्होने कहा था कि इस फिल्म की कहानी में कोई ख़ास बात नहीं थी. लेकिन दोस्तों, किसी साधारण कहानी को लेकर ऐसी सफल फिल्म बनाना भी तो एक ख़ास बात ही है. फिल्म की कहानी के अनुसार इस फिल्म का संगीत भी पाश्चात्य रंग में रंगा हुआ होना था. और उस ज़माने में पाश्चात्य 'ऑर्केस्ट्रेशन' के लिए शंकर जयकिशन का नाम सबसे उपर आता था. बस, फिर क्या था! शक्ति सामंता ने इस फिल्म के संगीत के लिए शंकर जयकिशन को नियुक्त किया, और इस जोडी के साथ साथ गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी भी शामिल हो गये. यूँ तो इस फिल्म के ज़्यादातर गीत रफ़ी साहब ने अकेले ही गाए हैं जो बेहद मशहूर भी हुए हैं. लेकिन एक युगल गीत ऐसा है जो इन सब गीतों से बिल्कुल अलग है. शैलेंद्रा का लिखा और आशा भोसले और मोहम्मद रफ़ी का गाया हुआ यही युगल गीत आज 'ओल्ड इस गोल्ड' की शान है.
जब हम फिल्मी युगल गीतों की बात करते हैं तो आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी की जोडी एक मशहूर जोडी रही है जिन्होंने असंख्य लाजवाब युगल गीत हमें दिए हैं. और "अन इवनिंग इन पैरिस" फिल्म का यह गीत भी इन्ही लाजवाब गीतों में शामिल है. रूमानियत और मादकता से भरपूर यह गीत किसी कविता से कम नहीं. शैलेंद्रा ने अपने ख्यालों को इस क़द्र शक्ल दिया है इस गाने में जो हमें किसी और ही दुनिया में ले जाती है. रात और सुबह का मानवीकरण बेहद सुंदर तरीके से किया गया है इस गीत में. और शंकर जयकिशन के संगीत के तो क्या कहने, जैसी ज़रूरत बिल्कुल वैसा ही संगीत उन्होने हमेशा दिया है. 'गिटार' का असरदार प्रयोग इस गीत में सुनने को मिलता है. अगर आपने इस गीत को पर्दे पर देखा है तो आपको याद होगा कि पूरे गीत के पार्श्व में रात का पॅरिस शहर नज़र आता है जिसमें जगमगाहट भी है लेकिन एक अकेलापन भी जो रूमानियत से भरे दो दिलों को और भी ज़्यादा जज़्बाती बना देते हैं. तो याद कीजिए पॅरिस की वो रंगीनियाँ और सुनिए यह खूबसूरत नग्मा.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. मजरूह साहब का लिखा एक शानदार गीत, नौशाद का संगीत है.
२. यूँ तो पूरा गाना मुकेश ने गाया है पर शुरू में कुछ ऊंचे नोट्स महेंद्र कपूर से गवाए गए हैं.
३. मुखड़े में शब्द युग्म है - "तेरी सदा".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
मनु जी राज की बात है आसान सिर्फ आपके लिए दी है हमने, ताकि काफी दिनों से आपका खोया हुआ "फॉर्म" लौट आये. खैर बधाई, अरे नीलम जी भी हैं और इस बार सौ फीसदी सही जवाब के साथ. आचार्य जी किशोर की आवाज़ में ये गीत वाकई बहुत मधुर है.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








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6 श्रोताओं का कहना है :
पता नहीं ,,,,
नौशाद के साथ केवल शकील बदायुनी,,,,और रफी ही ध्यान आ रहे हैं अभी तो,,,,
पर बाकी के सब कहा गए,,,,
पारुल जी नीरज जी,,,,,
ज़रा आकर बताइये,,,,,,,,,
कम से कम हाजिरी तो दीजिये,,,,
नहीं इस समय कुछ याद नहीं आ रहा, लेकिन मुकेश और महेन्द्र कपूर के काम्बिनेशन पर १-२ गीत जेहन में हैं लेकिन ठीक से याद नहीं आ रहे हैं। शाम तक याद करने की कोशिश करते हैं।
अच्छा, हमने बेईमानी कर ली। दिये गये हिंट में से दो गूगल में टाईप करते ही रिजल्ट देखते ही गाना याद आ गया। बाकियों को मौका देते हैं, एक और हिंट दे देते हैं।
गाने की शुरूआत के ऊंचे स्वर कुछ कुछ "मुगले आजम" के गीत "जिन्दाबाद, जिन्दाबाद ऐ मोहब्बत जिन्दाबाद" वाले अन्दाज के हैं।
अब किसी को याद आया?
शायद ...जो चला गया उसे भूल जा,,,,,
वो ना सुन सकेगा तेरी सदा,,,,,,,
कुछ कुछ लगता है के इस गीत में महेंद्र कपूर ने शुरूआत की है,,,,,
अगर ये नहीं है तो फिर और ध्यान नहीं आयेगा,,,,
नीरज जी ने तो अपनी तरफ से बहुत हिंट दे दिया,,,,,
अपने ही दिमाग की बत्ती गुल है आज कल,,
भूला -बिसरा मधुर गीत सुनाने के लिए धन्यवाद.
शैलेन्द्र जी सच में एक असरदार गीत कार भी थे |
गीत में किसी कविता का पुट मिलता सा लगता है |
धन्यवाद |
अवनीश तिवारी
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