रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


ComScore
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Thursday, April 16, 2009

आंसू भरी है ये जीवन की राहें... कोई उनसे कह दे हमें भूल जाए...



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 53

'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल आपने जुदाई के दर्द में डूबा हुआ एक ख़ूबसूरत नग्मा सुना था, आज भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल कुछ ग़मज़दा सी ही है क्युंकि आज जो गीत हम लेकर आए हैं, वह बयां करती है दास्ताँ जीवन के रास्तों के साथ साथ बहनेवाली आंसूओं के नदियों की। और ये गीत है मुकेश की आवाज़ में राज कपूर और माला सिन्हा अभिनीत फ़िल्म परवरिश में हसरत जयपुरी का ही लिखा और दत्ताराम का स्वरबद्ध किया हुआ -"आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें, कोई उनसे कहदे हमें भूल जाएं"। संगीतकार दत्ताराम शंकर जयकिशन के सहायक हुआ करते थे। कहा जाता है कि शंकर से जयकिशन को पहली बार मिलवाने में दत्तारामजी का ही हाथ था। १९४९ से लेकर १९५७ तक इस अज़ीम संगीतकार जोड़ी के साथ काम करने के बाद सन १९५७ में दत्ताराम बने स्वतंत्र संगीतकार, फ़िल्म थी 'अब दिल्ली दूर नहीं'। पहली फ़िल्म के संगीत में ही इन्होने चौका मार दिया और इसके अगले साल १९५८ में अपनी दूसरी फ़िल्म 'परवरिश' में सीधा छक्का। ख़ासकर राग कल्याण पर आधारित मुकेश का गाया हुआ यह गाना तो सीधे लोगों के ज़ुबां पर चढ़ गया।

जैसा कि पहले भी हमने कई बार इस बात का ज़िक्र किया है कि मुकेश नाम दर्द भरी आवाज़ का पर्याय है। अनिल बिश्वास के संगीत निर्देशन में अपने पहले गाने से ही मुकेश दर्दीले गीतों के राजा बन गये थे। यह गीत था फ़िल्म 'पहली नज़र' से "दिल जलता है तो जलने दे, आँसू ना बहा फरियाद ना कर"। इस गीत को उन्होने अपने गुरु सहगल साहब के अंदाज़ में कुछ इस तरह से गाया था कि ख़ुद सहगल साहब ने टिप्पणी की थी कि "मैने यह गीत कब गाया था?" उस समय फ़िल्मी दुनिया में नये नये क़दम रखनेवाले मुकेश के लिए सहगल साहब के ये चंद शब्द किसी अनमोल पुरस्कार से कम नहीं थे। फ़िल्म परवरिश के प्रस्तुत गीत में भी मुकेश के उसी अन्दाज़-ए-बयां को महसूस किया जा सकता है। एक अंतरे में हसरत साहब कहते हैं - "बरबादियों की अजब दास्ताँ हूँ, शबनम भी रोये मैं वह आसमां हूँ, तुम्हे घर मुबारक़ हमें अपनी आहें, कोई उनसे कहदे हमें भूल जायें", कितने सीधे सरल लेकिन असरदार शब्दों में किसी के दिल के दर्द का बयान किया गया है इस गीत में! उस पर दताराम के संगीत संयोजन ने बोलों को और भी ज़्यादा पुर-असर बना दिया है। केवल शहनाई,सारंगी, सितार और तबले के ख़ूबसूरत प्रयोग से गाना बेहद सुरीला बन पड़ा है।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. ओपी नय्यर और आशा की सदाबहार टीम.
२. मजरूह साहब के बोल.
३. गीत शुरू होता है इस शब्द से -"बेईमान"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -


खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.



फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

7 श्रोताओं का कहना है :

Neeraj Rohilla का कहना है कि -

बेईमान बालमा, मान भी जा
सुन दर्द मेरा बेदर्द सनम...
दामन न छुडा तुझे मेरी कसम,
दिल ले के टालना ना,
बेईमान बालमा

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -

आपकी पारखी नज़र का कोइ सानी नहीं.

shanno का कहना है कि -

O MY GOD!!! कल ही तो मैं kitchen में काम करते हुए अपनी बेसुरीली आवाज़ में अपने ही लिए चुपचाप गा रही थी 'आंसू भरी हैं यह जीवन की राहें कोई इनसे कह दे....' और कमाल की telepathy है मेरे दिमाग और 'आवाज़' के बीच कि आज ही यह गाना सुनवाया गया. मेरा बहुत मन था कि 'आवाज़' पर यह गाना सुनवाया जाये. मैं यह सब जो बता रही हूँ बिलकुल ऐसा ही हुआ कल. तमाम देर तक बड़ी strong सी feeling रही इस गाने की तरफ. कोई मेरी पसंद भी चुरा सकता है मेरे दिमाग से तुंरत ही, और उस दिन ही जब मैं सोचूँ कि काश यह गाना आप कभी सुनवायें....unbelievable! इसे क्या कह सकते हैं सिवा telepathy के.
बहुत शुक्रिया बहुत मेहरबानी कि मुझे आपने यह गाना सुनाया.....

manu का कहना है कि -

कोई आंसू भरी नहीं हैं शन्नो जी,
साफ़ साफ़ कहिये के किचन में काम करने का दिल नहीं करता
मानीटरी झाड़ने की आदत पड़ गई है

सही जवाब नीरज जी का,
अब तो ऐसी आदत पड़ गई है के अपना दिमाग ही नहीं लगाते ....हम ...

shanno का कहना है कि -

मनु जी,
इस समय मुझे बेतहाशा हंसी आ रही है और ही,ही, ही,ही के अलावा और कुछ नहीं सूझ रहा है. आपका काम मुझे करना पड़ रहा है.

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -

ही...ही करते हुए आँसू भरी है गाना...वाह क्या अंतर्विरोध (कंट्रास्ट) है...हो जाये एक-एक दोहा/सोरठा/रोला/कुण्डली कुछ न कुछ इस पर...

SingerMukesh.com का कहना है कि -

Pls. visit www.SingerMukesh.com for more Mukeshji's memories.
Regards,
Pankaj Dwivedi
www.SingerMukesh.com

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ