होली के शुभ अवसर पर पंकज सुबीर की रोचक कहानी पलाश
'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं रोचक कहानियां, नई और पुरानी। पिछले सप्ताह आपने नीलम मिश्रा की आवाज़ में कुर्रत-उल-ऐन हैदर की रचना ''फोटोग्राफर'' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज होली के शुभ अवसर पर हम लेकर आये हैं पंकज सुबीर की रोचक कहानी "पलाश", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 18 मिनट।
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।
'मेड़ पर पड़े हुए पेड़ के कटे हुए हिस्से पर बैठ कर फाल्गुनी पलाश के फूलों पर धीरे धीरे हाथ फेरने लगी, कितने मुलायम हैं ये फूल मखमल की तरह । एक एक रंग को खूबसूरती के साथ सजाया है प्रकृति ने इसकी पंखुरियों पर, बीच में ज़र्द पीले रंग का छींटा, फ़िर सिंदूरी और किनारों पर कहीं कहीं चटख़ लाल, संपूर्णता का एहसास लिये ।' (पंकज सुबीर की "पलाश" से एक अंश) |
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#Twenty Eighth Story, Palash: Pankaj Subeer/Hindi Audio Book/2009/09. Voice: Anurag Sharma


नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








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7 श्रोताओं का कहना है :
वाह वाह मज़ा आ गया....होली पर बहुत शानदार प्रस्तुति....अनुराग जी बहुत दिनों बाद आपकी आवाज़ सुनने को मिली....पंकज जी जबरदस्त कहानी लगी. बधाई स्वीकारें.
Kahani sun ke achha laga...
अनुराग जी,
जितनी सुंदर कहानी उतनी ही सुन्दरता से आपने पढ़ा भी उसे. लेखक को भी बहुत बधाई. कहानी की शुरुआत एक खूबसूरत कविता सी लगी जिसमे होली के रंग बिखरे हैं. और समाप्ति भी एक कविता की तरह हुई. क्या खूब! और आपने आखिर में कुछ पंक्तियाँ गायीं भी. बड़ा अच्छा लगा.
बहुत ही सुंदर कहानी, कोमल भावनाओं से भरी, पूरा माहोल, परिवेश, पलाश और गाँव की पृष्टभूमि को फाल्गुनी के भोले अंदाज़ से सुंदर तरीके से बाँधा है, अंत तक कहानी में फाल्गुन की बहार और सुंदर कोमल भावनाओं एहसास बना रहता है. अनुराग जी ने बहोत ही मधुर और भावनात्मक पक्ष को बाखूबी से ताज़ा रखा है अपनी आवाज़ से, और कहानी तो क्या कहने, पंकज जी की बारे में कुछ कहना शायद सूरज को दीपक दिखाना ही होगा. आनंद आ गया
sajeevji ki baat ka samarthan karte hue ,aap sabhi ko holi ki subhkaamnaayen .
पंकज़ भाई की कहानी सुनकर मज़ा आ गया। पंकज भाई वाकई बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। पंकज भाई को मेरा सलाम।
गुरु जी को प्रणाम और अनुराग जी को स्वर देने के लिए बधाई ...
सुनते वक्त मन जैसे गुदगुदाने लगा था मन ही मन हस रहा था जो होठो पे मुज्स्कान लिए थोड़े देर तक रुक जाती रही...
ये तो बिश्वास है उनका पलाश पे और पलाश को उसे बचा के रखना है .... एक बिश्वास के अलावा बाकी सारी चीजे टूट के जुड़ जाती है ... ओहो क्या बात कही है गुरु देव न इस n जानते तो सभी है मगर इस बात से परिचय गुरु जी ने कराया...
पानी में धीरे धीरे पलाश अपना रंग छोड़ रहा था .... क्या बात है ... उफ्फ्फ्फ़ .....एक अद्भुत प्रेम कहानी पलाश और गुनी की जो मर्यादा में रहते हुए पुरे बाग़ को खुशबु से तर बतर करती रही...
देता रहा वो धुप में छाया गुलों से ही ..
उस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था....
नतमस्तक हूँ गुरु जी के लेख पे ..
आभार
अर्श
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