रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Sunday, March 22, 2009

पिया पिया न लागे मोरा जिया...आजा चोरी चोरी....



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 30

दोस्तों, कुछ गीत ऐसे होते हैं जो केवल एक मुख्य साज़ पर आधारित होते हैं. उदाहरण के तौर पर कश्मीर की कली का गाना "है दुनिया उसी की ज़माना उसी का" केवल 'सेक्साफोन' पर आधारित है. इस गीत के संगीतकार थे ओपी नय्यर. नय्यर साहब ने ऐसे ही कुछ और गीतों में भी सिर्फ़ एक मुख्य साज़ का इस्तेमाल किया है. उनके संगीत की खासियत भी यही थी की वो '7-पीस ऑर्केस्ट्रा' से उपर नहीं जाते थे. इसी तरह का एक गीत था फिल्म "फागुन" में जिसमें केवल बाँसुरी का मुख्य रूप से इस्तेमाल हुआ. फिल्म फागुन के सभी गीतों में बाँसुरी सुनाई पड्ती है जिन्हे बजाया था उस ज़माने के मशहूर बाँसुरी वादक सुमंत राज ने. तो आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में आप सुनने जा रहे हैं फिल्म फागुन का वही गीत जिसमें है सुमंत राज की मधुर बाँसुरी की तानें, ओपी नय्यर का दिलकश संगीत, और आशा भोंसले की मनमोहक आवाज़.

और अब इस फिल्म के गीत संगीत से जुडी कुछ बातें हो जाए? यह फिल्म बनी थी सन 1958 में. बिभूति मित्रा द्वारा निर्मित एवं निर्देशित इस फिल्म में भारत भूषण और मधुबाला ने मुख्य किरदार निभाए. इस फिल्म के कहानीकार, संवाद-लेखक और पट्कथा-लेखक थे क़मर जलालाबादी साहब. लेकिन बिभूति मित्रा चाहते थे कि ओपी नय्यर मजरूह सुल्तानपुरी से इस फिल्म के गाने लिखवाए. नय्यर साहब ने उन्हे समझाया कि क्योंकि कहानी और संवाद क़मर साहब ने लिखा है, तो उनसे बेहतर इस फिल्म के गाने और कोई दूसरा नहीं लिख सकता. तब जाकर क़मर साहब से गुज़ारिश की गयी और उन्होने गीत लेखन का भी ज़िम्मा अपने उपर ले लिया. और इस ज़िम्मे को कितनी सफलता से उन्होने निभाया यह शायद किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है. क़मर साहब पूरे 11 के 11 गीत लिखकर ले आए और नय्यर साहब को सौंप गये. गाने हाथ में आते ही नय्यर साहब ने केवल दो घंटे में पूरे 11 के 11 गीत स्वरबद्ध कर डाले. लेकिन नय्यर साहब भी कुछ कम नहीं थे. उन्होने निर्माता महोदय से कहा कि उन्हे गाने स्वरबद्ध करने में 1 महीना चाहिए. वो उन्हे एक एक महीने बाद बुलाते और एक एक करके गाना थमाते जाते. और इस तरह से हर गीत पर वाह वाही लूटते. नय्यर साहब का यह मानना था कि अगर वो सभी के सभी गीत एक साथ उन्हे दे देते तो शायद वो उन गीतों का सही मूल्यांकन नहीं कर पाते. तो ऐसे थे हमारे ओपी नय्यर साहब. तो पेश है फिल्म फागुन से "पिया पिया ना लागे मोरा जिया".



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. १९५९ में बनी इस सुपर हिट फिल्म में थे सुनील दत्त और नूतन.
२. सीनियर बर्मन का संगीत और उन्हीं की दिव्य आवाज़.
३. पहला अंतरा शुरू होता है "होता तू..." से

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
पहली बार पहेली का जवाब देने आयी पारुल ने शतक जमा दिया, और इस बार मनु जी और नीरज जी से पहले ही बाज़ी भी मार ली. बहुत बहुत बधाई...गाना वाकई बहुत प्यारा है, आशा है आप सब ने इसका आनंद लिया होगा, मनु जी सही कहा, इस फिल्म के सभी गीत लाजवाब हैं.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.





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5 श्रोताओं का कहना है :

पारुल "पुखराज" का कहना है कि -

सुन मेरे बंधू रे-film-सुजाता

manu का कहना है कि -

yes,,,,,

pyaaraa gaana hai,,

Neeraj Rohilla का कहना है कि -

पारूल जी तो शतक पे शतक मारे जा रही हैं। सही गाना बताया है हमें भी पता था इस बार। इसी फ़िल्म में तलत साहब की आवाज में बडा लाजवाब गीत है "जलते हैं जिसके लिये"। "आवाज" पर तलत साहब पर भी एक श्रृंखला चलनी चाहिये।

mamta का कहना है कि -

पारुल ने जो जवाब दिया वही मेरा भी जवाब है । :)

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -

बहुत सी नयी जानकारियां देने के लिए धन्यवाद.

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