ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 30
दोस्तों, कुछ गीत ऐसे होते हैं जो केवल एक मुख्य साज़ पर आधारित होते हैं. उदाहरण के तौर पर कश्मीर की कली का गाना "है दुनिया उसी की ज़माना उसी का" केवल 'सेक्साफोन' पर आधारित है. इस गीत के संगीतकार थे ओपी नय्यर. नय्यर साहब ने ऐसे ही कुछ और गीतों में भी सिर्फ़ एक मुख्य साज़ का इस्तेमाल किया है. उनके संगीत की खासियत भी यही थी की वो '7-पीस ऑर्केस्ट्रा' से उपर नहीं जाते थे. इसी तरह का एक गीत था फिल्म "फागुन" में जिसमें केवल बाँसुरी का मुख्य रूप से इस्तेमाल हुआ. फिल्म फागुन के सभी गीतों में बाँसुरी सुनाई पड्ती है जिन्हे बजाया था उस ज़माने के मशहूर बाँसुरी वादक सुमंत राज ने. तो आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में आप सुनने जा रहे हैं फिल्म फागुन का वही गीत जिसमें है सुमंत राज की मधुर बाँसुरी की तानें, ओपी नय्यर का दिलकश संगीत, और आशा भोंसले की मनमोहक आवाज़.
और अब इस फिल्म के गीत संगीत से जुडी कुछ बातें हो जाए? यह फिल्म बनी थी सन 1958 में. बिभूति मित्रा द्वारा निर्मित एवं निर्देशित इस फिल्म में भारत भूषण और मधुबाला ने मुख्य किरदार निभाए. इस फिल्म के कहानीकार, संवाद-लेखक और पट्कथा-लेखक थे क़मर जलालाबादी साहब. लेकिन बिभूति मित्रा चाहते थे कि ओपी नय्यर मजरूह सुल्तानपुरी से इस फिल्म के गाने लिखवाए. नय्यर साहब ने उन्हे समझाया कि क्योंकि कहानी और संवाद क़मर साहब ने लिखा है, तो उनसे बेहतर इस फिल्म के गाने और कोई दूसरा नहीं लिख सकता. तब जाकर क़मर साहब से गुज़ारिश की गयी और उन्होने गीत लेखन का भी ज़िम्मा अपने उपर ले लिया. और इस ज़िम्मे को कितनी सफलता से उन्होने निभाया यह शायद किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है. क़मर साहब पूरे 11 के 11 गीत लिखकर ले आए और नय्यर साहब को सौंप गये. गाने हाथ में आते ही नय्यर साहब ने केवल दो घंटे में पूरे 11 के 11 गीत स्वरबद्ध कर डाले. लेकिन नय्यर साहब भी कुछ कम नहीं थे. उन्होने निर्माता महोदय से कहा कि उन्हे गाने स्वरबद्ध करने में 1 महीना चाहिए. वो उन्हे एक एक महीने बाद बुलाते और एक एक करके गाना थमाते जाते. और इस तरह से हर गीत पर वाह वाही लूटते. नय्यर साहब का यह मानना था कि अगर वो सभी के सभी गीत एक साथ उन्हे दे देते तो शायद वो उन गीतों का सही मूल्यांकन नहीं कर पाते. तो ऐसे थे हमारे ओपी नय्यर साहब. तो पेश है फिल्म फागुन से "पिया पिया ना लागे मोरा जिया".
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. १९५९ में बनी इस सुपर हिट फिल्म में थे सुनील दत्त और नूतन.
२. सीनियर बर्मन का संगीत और उन्हीं की दिव्य आवाज़.
३. पहला अंतरा शुरू होता है "होता तू..." से
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
पहली बार पहेली का जवाब देने आयी पारुल ने शतक जमा दिया, और इस बार मनु जी और नीरज जी से पहले ही बाज़ी भी मार ली. बहुत बहुत बधाई...गाना वाकई बहुत प्यारा है, आशा है आप सब ने इसका आनंद लिया होगा, मनु जी सही कहा, इस फिल्म के सभी गीत लाजवाब हैं.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
5 श्रोताओं का कहना है :
सुन मेरे बंधू रे-film-सुजाता
yes,,,,,
pyaaraa gaana hai,,
पारूल जी तो शतक पे शतक मारे जा रही हैं। सही गाना बताया है हमें भी पता था इस बार। इसी फ़िल्म में तलत साहब की आवाज में बडा लाजवाब गीत है "जलते हैं जिसके लिये"। "आवाज" पर तलत साहब पर भी एक श्रृंखला चलनी चाहिये।
पारुल ने जो जवाब दिया वही मेरा भी जवाब है । :)
बहुत सी नयी जानकारियां देने के लिए धन्यवाद.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)