ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 24
दोस्तों, आज पहली बार 'ओल्ड इस गोल्ड' में हम एक ऐसे संगीतकार जोडी को याद कर रहे हैं जिनकी जोडी फिल्म संगीत की दुनिया की पहली संगीतकार जोडी रही है. और यह जोडी है हुस्नलाल और भगतराम की. साल 1949 हुस्नलाल भगतराम के संगीत सफ़र का एक महत्वपूर्ण साल रहा. इस साल उनके संगीत से सजी कुल 10 फिल्में आईं - अमर कहानी, बड़ी बहन, बालम, बाँसुरिया, हमारी मंज़िल, जल तरंग, जन्नत, नाच, राखी, और सावन भादों. इनमें से फेमस पिक्चर्स के 'बॅनर' तले बनी फिल्म बड़ी बहन ने जैसे पुर देश भर में हंगामा मचा दिया. इस फिल्म के गीत इतने ज़्यादा प्रसिद्ध हुए कि हर गली गली में गूंजने लगे, इनके चर्चे होने लगे. डी डी कश्यप द्वारा निर्देशित इस फिल्म में सुरैय्या और गीता बाली ने दो बहनों की भूमिका अदा की, और नायक बने रहमान. चाँद (1944), नरगिस (1946), मिर्ज़ा साहिबां (1947), और प्यार की जीत (1948) जैसी कामियाब फिल्मों के बाद गीतकार क़मर जलालाबादी और हुस्नलाल भगतराम की जोडी बड़ी बहन में एक साथ आए और एक बार फिर चारों तरफ छा गये. हुस्नलाल भगतराम का संगीत संयोजन इस फिल्म में कमाल का था. छाली और ठेकों का ऐसा निपूर्ण प्रयोग हुआ कि गाने जैसे लोगों की ज़ुबान पर ही थिरकने लगे.
सुरैय्या उस दौर की सबसे कामयाब और सबसे महंगी अदाकारा थी. इस फिल्म में उनका गाया "वो पास रहे या दूर रहे नज़रों में समाए रहते हैं" उनके सबसे लोकप्रिय गीतों में माना जाता है. लेकिन उस समय लता मंगेशकर एक उभरती हुई गायिका थी, जिन्होंने इस फिल्म में गीता बाली का पार्श्वगायन किया. "चले जाना नहीं नैना मिलाके" लताजी की आवाज़ में इस फिल्म का एक मशहूर गीत था जो गीता बाली पर फिल्माया गया था. लेकिन इसी फिल्म में लता मंगेशकर, प्रेमलता और साथियों की आवाज़ों में एक ऐसा गीत भी था जो ना तो गीता बाली पर फिल्माया गया और ना ही सुरैय्या पर. फिल्म की 'सिचुयेशन' ऐसी थी कि सुरैय्या रहमान से रूठी हुई थी. तभी गानेवाली लड़कियों की एक टोली वहाँ से गुज़रती है और यह गीत गाती हैं. पहले पहले प्यार की पहली पहली मुलाक़ात का यह अंदाज़-ए-बयान लोगों को खूब खूब पसंद आया और यह गीत बेहद मक़बूल हुया. लेकिन यह गीत क़मर जलालाबादी ने नहीं, बल्कि राजेंदर कृष्ण ने लिखा था. ऐसा कहा जाता है कि फिल्म के निर्माता इस गीत से इतने खुश हुए कि उन्होने राजेंदर कृष्ण साहब को एक ऑस्टिन गाडी भेंट में दे दी. तो आप भी इस गीत का आज आनंद उठाइये 'ओल्ड इस गोल्ड' में.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. लता मुकेश के स्वर.
२. राजेंद्र कृष्ण के बोल और मदन मोहन का संगीत.
३. स्थायी में पंक्ति है -"इसको भी कुछ मिला है...".
कुछ याद आया...?
पिछली पहली का परिणाम -
वाह वाह दिलीप जी, नीरज जी, और मनु जी ने एक बार फिर सही गीत पकडा है, बहुत बहुत बधाई. अनिल सेठ जी भी पहेली में रुचि लेने लगे हैं और बिलकुल ठीक जवाब दिया है।
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








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5 श्रोताओं का कहना है :
यह गाना तो किसी error की वजह से नहीं सुन पाया, अगला गाना शायद मेरी पसंदीदा - 'इक मंजिल राही दो ...' है.
एक मंजिल राही दो,
फ़िर प्यार न कैसे हो...
वाह, क्या खोज खोज के गाने ला रहे हैं आप। सुभानअल्लाह...आफ़रीन...
मुखड़े से कुछ लेते या फिर सन बता देते.
बहुत अच्छी प्रस्तुति,
husan lal bhagat raam ji koi photo aapke paas ho plz upload kijiye
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