रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


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प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Thursday, March 12, 2009

"इन हाथों की ताज़ीम करो..."- अली सरदार जाफरी के बोल और शुभम् का संगीत



आवाज़ पर इस सप्ताह हमने आपको मिलवाया कुछ ऐसे फनकारों से जो यूँ तो आवाज़ और हिंद युग्म से काफी लम्बे समय से जुड़े हुए हैं पर किसी न किसी कारणवश मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाए. इसी कड़ी में आज मिलिए -
दिल्ली के शुभम् अग्रवाल से




संगीतकार शुभम् अग्रवाल युग्म से उन दिनों से जुड़े हैं जब युग्म की पहली एल्बम "पहला सुर" पर काम चल रहा था. शुभम् कुछ सरल मगर गहरे अर्थों वाले गीत तलाश रहे थे, पर बहुत गीत भेजने के बावजूद उन्हें कुछ जच नहीं रहा था. फिर तय हुआ कि उनकी किसी धुन पर लिखा जाए. बहरहाल गीत लिखा गया और इस बार उन्हें पसंद भी आ गया. वो गीत अपनी अंतिम चरण में था पर तभी उन्हें लगा कि उनकी गायकी, गीत के बोल और धुन का सही ताल मेल नहीं बैठ पा रहा है. "पहला सुर" को प्रकाशित करने का समय नजदीक आ चुका था, और शुभम् उलझन में थे. उन दिनों वो मेरठ में थे, फिर दिल्ली आ गए. दूसरे सत्र के शुरू होने तक दिल्ली आकर शुभम् बेहद व्यस्त हो गए. पर निरंतर संपर्क में रहे. यहाँ उन्होंने अपनी नयी कंपनी के लिए एक जिंगल भी बनाया. वो आवाज़ से जुड़ना चाहते थे और युग्म भी अपने इस प्रतिभाशाली संगीतकार/गायक को अपने माध्यम से आप सब तक पहुँचने को बेताब था. इसी उद्देश्य से आज हम पहली बार आपके समुख लेकर आये हैं, शुभम् अग्रवाल के संगीत और गायिकी का एक नमूना जहाँ उन्होंने साहित्य अकादमी से सम्मानित मशहूर उर्दू शायर अली सरदार जाफ़री की एक उन्दा ग़ज़ल को अपने सुरों और आवाज़ से सजाया है. तो आनंद लीजिये इस ग़ज़ल का -







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3 श्रोताओं का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

बहुत सुन्दर गज़ल।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

शुभम जी,

सबसे पहले तो हिन्द-युग्म पर आपका स्वागत है। ग़ज़ल तो बहुत चुनी है और गाया भी बढ़िया है, लेकिन मुझे लगता है कि ग़ज़ल में संगीत का शोर बहुत है, ग़ज़ल में हमेशा बोल prominent होने चाहिए, म्यूजिक उसको सपोर्ट करनी चाहिए। एक बार आम श्रोता की दृष्टि से सोचिएगा।

Ankur का कहना है कि -

shubham ji,

maine itni achchi awaaz sirf jagjit singh ki hi suni hai ab tak. shubham ji ko to film main try karna chahiye. May God help you. Aur aap kya kya karte hain... bataiyega zaroor

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