रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


ComScore
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Tuesday, March 31, 2009

आजा रे प्यार पुकारे, नैना तो रो रो हारे...



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 38

"दिल ने फिर याद किया", 1966 की एक बेहद कामयाब फिल्म. इसी फिल्म से रातों रात मशहूर हुई थी संगीतकार जोडी सोनिक ओमी. सोनिक और ओमी रिश्ते में चाचा भतीजा हैं. सोनिक सन् 1952 में ममता, 1952 में ही ईश्वर भक्ति, और 1959 में एक पंजाबी फिल्म में संगीत दे चुके थे. सोनिक, जो ढाई साल की उम्र में अपनी ऑंखें खो चुके थे, उन्होने लाहौर और लखनऊ से पढाई पूरी की और फिर दिल्ली के आकाशवाणी से जुड गये और इस तरह से एक सुरीले सिलसिले की भूमिका बनती चली गयी. सोनिक और ओमी कई बार मुंबई आए लेकिन कोई ख़ास बात नहीं बन पाई. लेकिन वो अपने अपने तरीके से कोशिश करते रहे. इसी बीच सोनिक बने संगीतकार मदन मोहन के सहायक और ओमी रोशन के. इस तरह से फिल्म संगीत जगत में इन दोनो की पहचान बनी, नतीजा यह हुआ कि उन्हे "दिल ने फिर याद किया" जैसी फिल्म मिल गयी और दोनो ने पहली बार अपनी जोडी बनाई. और कहने की ज़रूरत नहीं, पहली फिल्म में ही इन दोनो ने कमाल कर दिया. दिल ने फिर याद किया के सभी गीत बेहद मक़बूल हुए, उन्हे बहुत बहुत सहारना मिली. इस फिल्म को बनाया था सी एल रावल ने, वही फिल्म के निर्देशक भी थे और गीतकार भी. धर्मेन्द्र, नूतन और रहमान के अभिनय से सुसज्जित यह फिल्म लोकप्रियता की कसौटी पर खरी उतरी, जिसका मुख्य श्रेय फिल्म के संगीत को जाता है.

दोस्तों, हम बड़ी दुविधा में पड गये थे इस बात को लेकर कि इस फिल्म का कौन सा गीत आपको सुनवाएँ 'ओल्ड इस गोल्ड' में, क्योंकि जैसा कि हमने कहा इस फिल्म का हर एक गीत अपने आप में लोकप्रियता की मिसाल है. आखिरकार हमने जो गीत चुना वो है "आजा रे प्यार पुकारे" जिसे लता मंगेशकर ने बडे ही दर्दीले अंदाज़ में गाया है. अब आप पूछेंगें कि हमने इस गीत को ही क्यूँ चुना. वो इसलिए कि एक 'इंटरव्यू' में जब ओमी-जी से यह पुछा गया था कि इस फिल्म का कौन सा गीत उन्हे सबसे ज़्यादा पसंद है, तो उन्होने इसी गीत का ज़िक्र किया था. और क्यूँ ना हो, यह गीत है ही दिल को छू जाने वाला. उसी 'इंटरव्यू' में ओमी-जी ने इस गीत से जुडा एक मज़ेदार किस्सा भी बताया था. हुया यूँ कि इस गाने में नायिका अपने प्रेमी का इंतज़ार करती है और अपने प्यार की दुहाई देकर वापस लौट्ने के लिए आवाज़ लगाती है. तो जब लता-जी गाने की 'रेकॉर्डिंग' के बाद 'रेकॉर्डिंग रूम' से बाहर आईं, तो सी एल रावल साहब ने सोनिक ओमी से कहा, "ओमी, यह गाना सुनने के बाद भी अगर 'हीरो' वापस ना आए तो भाड में जाए". यह सुनकर वहाँ मौजूद सभी ज़ोर से हंस पडे. आप भी सुनिए और सुनकर अपनी राय 'पोस्ट' करना मत भूलिएगा.



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. इस गीत में दो गायकों ने जम कर एक दूजे का मुकाबला किया है, एक हैं मन्ना डे...
२. राजेंदर कृष्ण ने बोल लिखे हैं इस बेमिसाल गीत के जिसका वाकई कोई सानी नहीं है.
३. मुखड़े में दूसरे गायक ने जिसका नाम हमने आपको नहीं बताया जो पंक्तियाँ गाते हैं उसमें शब्द है -"जाल"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम-
नीरज जी, मनु जी और सलिल जी सही जवाब, हाँ सही है ये ग़ज़ल नहीं गीत है, अंतिम अंतरा भी बहुत सुना हुआ है सही है, पर रिकॉर्ड में जो हमारे पास उपलब्ध था उसमें नहीं मिला. यदि इस गीत का पूरा संस्करण किसी श्रोता के पास मौजूद हो तो हमें उपलब्ध करवायें. संगीता जी आपका भी आभार. शरद जी देर से आये लेकिन दुरुस्त आये


खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.




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5 श्रोताओं का कहना है :

पारुल "पुखराज" का कहना है कि -

एक चतुर नार कर के सिंगार -पडोसन

Neeraj Rohilla का कहना है कि -

बधाई हो पारूलजी,

manu का कहना है कि -

सी ,एल , रावल जी की बात पढ़कर हंसी छूट गयी,,,,,
एकदम तो सही कहा था,,,

पारुल जी,
एकदम सही,,,,,बड़ा ही अलबेला गीत है,,,,वाकई इसका कोई सानी नहीं,,,,,
अपनी मिसाल बस खुद ही है,,,,

शोभा का कहना है कि -

bahut meetha geet. abhaar.

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -

एक चतुर नार... मैं आज आया हूँ. कल नहीं आ सका... लेख रात २ बजे पूरा हुआ. आज कार्यालय से आते ही हाज़िर...देर से सही नार को सलाम न किया तो फिर किसी की नाराजी झेलनी पड़ेगी...इसलिए हाजिरी तो लगा ही लें.

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