रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


ComScore
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Monday, March 23, 2009

सुन मेरे बन्धू रे, सुन मेरे मितवा....



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 31

किसी सुदूर अनजाने गाँव की धरती से गुज़रती हुई नदी, उसकी कलकल करती धारा, दूर दिखाई देती है एक नाव, और कानो में गूंजने लगते हैं उस नाव पर बैठे किसी मांझी के सुर. अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए वो अपनी ही धुन में गाता चला जाता है. दोस्तों, शहरों में अपने 'कॉंक्रीट' के 'अपार्टमेंट' में रहकर शायद हम ऐसे दृश्य का नज़ारा ना कर सके, लेकिन एक गीत ऐसा है जिसे सुनकर आप उसी नज़ारे को ज़रूर महसूस कर पाएँगे, वही नदी, वही नाव और उसी मांझी की तस्वीर आपकी आँखों के सामने आ जाएँगे, यह हमारा विश्वास है. और वही गीत लेकर आज हम हाज़िर हुए हैं 'ओल्ड इस गोल्ड' की इस महफ़िल में.

भटियाली संगीत, यानी कि बंगाल के नाविकों का संगीत. नाव चलाते वक़्त वो जिस अंदाज़ में और सुर में गाते हैं उसी को भटियाली संगीत कहा जाता है. और बंगाल के लोक संगीत के इसी अंदाज़ में सचिन देव बर्मन ने इस क़दर महारत हासिल की है कि उनकी आवाज़ में इस तरह का गीत जैसे जीवंत कर देता है उसी मांझी को हमारी आँखों के सामने. 1959 में फिल्म "सुजाता" में बर्मन दादा ने ऐसा ही एक गीत गाया था. संख्या के हिसाब से अगर हम देखें तो भले ही दादा ने कम गीत गाए हैं, पर अदायगी और भाव सम्प्रेषणता की दृष्टि से देखें तो ऐसी गायिकी शायद ही किसी और गायक की आवाज़ में सुनने को मिले. और यही कारण है कि एस डी बर्मन के गाए गीत 'कवर वर्ज़न' के शिकार नहीं हुए. बर्मन दादा भले ही संगीतकार के रूप में विख्यात हुए हों लेकिन क्या आपको पता है कि उन्होने फिल्मजगत में अपनी शुरुआत बतौर गायक ही की थी. सन 1941 में संगीतकार मधुलल दामोदर मास्टर के लिए फिल्म "ताज महल" में पहली बार उन्होने गीत गाया था. तो लीजिए आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में दादा बर्मन की गायिकी को सलाम करते हुए सुनते हैं उन्ही की आवाज़ में यह भटियाली सुर, फिल्म "सुजाता" से. फिल्म में यह एक पार्श्व-संगीत की तरह बजता है. सुनील दत्त और नूतन नदी के घाट पर खडे हैं और दूर किसी नाव में कोई मांझी यह गीत गा रहा है. तो सुन मेरे बंधु रे...



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. संजीव कुमार और सुलक्षणा पंडित अभिनीत इस फिल्म का ये शीर्षक गीत है.
२. एम् जी हशमत और कल्याण जी आनंद जी की टीम.
३. अंतरे में पंक्ति आती है "चैन मेरा क्यों लूटे..."

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
पारुल ने एक बार फिर रंग जमा दिया. मनु जी और नीरज जी भी बधाई स्वीकारें. ये शायद बहुत आसान था आप सब धुरंधरों के लिए :). नीरज जी तलत साहब पर हमारा आलेख और उनके कुछ ख़ास गीत आप यहाँ सुनें. धुरंधरों की सूची में ममता भी शामिल हो चुकी हैं।

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.





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6 श्रोताओं का कहना है :

पारुल "पुखराज" का कहना है कि -

अपने जीवन की उलझन को कैसे mai सुलझाऊं -film-उलझन

manu का कहना है कि -

apni to bas ab haajiri hi hai,,,,
ek dam sahi,,,,

Neeraj Rohilla का कहना है कि -

हम भी हाजिरी ही लगा रहे हैं, इस टाईम डिफ़्रेन्स के चक्कर में लेट हो जाते हैं। दूसरा पारूलजी देर रात में आकर उत्तर दे जाती हैं और हम सोते रह जाते हैं, :-)

shanno का कहना है कि -

सजीव जी,
पहेलियों के उत्तर ढूँढने में दिमाग नहीं लगाती हूँ, बस 'ओल्ड इज गोल्ड' के गाने सुनना अच्छा लगता है मुझे. और अगर घर में काम करते हुए सुनो तो आँखें काम पर और कान आवाज़ पर रहते हैं तो एक पंथ दो काज सा हो जाता है......काम भी और गाने सुनना भी. हिन्दयुग्म से गाने सुनना एक नयी चीज़ शामिल हो गयी है मेरे जीवन में. हिन्दयुग्म में इधर-उधर ताक-झांक करते हुए बीच-बीच में इसके गाने भी सुनती हूँ. अच्छा लगता है. इन गानों के लिए शुक्रिया.

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -

जीवन की उलझन यही, हो जाती है देर.
पारुल जी हैं सुलक्षणा, बूझें बिना अबेर.

shanno का कहना है कि -

सजीव जी,
आपसे एक गुजारिश है वह यह कि एक गाना मुझे बहुत पसंद है और वह 'कर्मा' फिल्म से है जिसमे नूतन जी और दिलीप कुमार जी हैं. और वह गाना है ' दिल दिया है जां भी देंगे ये वतन तेरे लिए'. यह गाना बहुत ही अच्छा लगता है मुझे, ना जाने क्यों. हिन्दयुग्म के संग बिताये पलों के दौरान मैं यह गाना मन भर कर खूब सुन सकती हूँ. इस गाने को कई-कई बार सुनकर भी मन नहीं भरता मेरा. इसे अपने गानों की list में शामिल कर लीजिये, please. धन्यबाद.

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