रेडियो प्लेबैक वार्षिक टॉप टेन - क्रिसमस और नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित


ComScore
प्लेबैक की टीम और श्रोताओं द्वारा चुने गए वर्ष के टॉप १० गीतों को सुनिए एक के बाद एक. इन गीतों के आलावा भी कुछ गीतों का जिक्र जरूरी है, जो इन टॉप १० गीतों को जबरदस्त टक्कर देने में कामियाब रहे. ये हैं - "धिन का चिका (रेड्डी)", "ऊह ला ला (द डर्टी पिक्चर)", "छम्मक छल्लो (आर ए वन)", "हर घर के कोने में (मेमोरीस इन मार्च)", "चढा दे रंग (यमला पगला दीवाना)", "बोझिल से (आई ऍम)", "लाईफ बहुत सिंपल है (स्टैनले का डब्बा)", और "फकीरा (साउंड ट्रेक)". इन सभी गीतों के रचनाकारों को भी प्लेबैक इंडिया की बधाईयां

Thursday, March 19, 2009

अलहदा है पियूष का अंदाज़, तो अलहदा क्यों न हो "गुलाल" का संगीत




वाकई पियूष भाई एक हरफनमौला हैं, क्या नहीं करते वो. एक समय था जब हमारी शामें दिल्ली के मंडी हाउस में बीता करती थी. और जिस भी दिन पियूष भाई का शो होता जिस भी ऑडिटोरियम में वहां हमारा होना भी लाजमी होता. मुझे उनके वो नाटक अधिक पसंद थे जिसे वो अकेले सँभालते थे, यानी अभिनय से लेकर उस नाटक के सभी कला पक्ष. सोचिये एक अकेले अभिनेता द्वारा करीब २ घंटे तक मंच संभालना और दर्शकों को मंत्रमुग्ध करके रखना कितना मुश्किल होता होगा, पर पियूष भाई के लिए ये सब बाएं हाथ का काम होता था. उनके संवाद गहरे असर करते थे, बीच बीच में गीत भी होते थे अक्सर लोक धुनों पर, जिसे वो खुद गाते थे. तो जहाँ तक उनके अभिनेता, निर्देशक, पठकथा संवाद लेखक, और गीतकार होने की बात है, यहाँ तक तो हम पियूष भाई की प्रतिभा से बखूबी परिचित थे, पर हालिया प्रर्दशित अनुराग कश्यप की "गुलाल" में उनका नाम बतौर संगीतकार देखा तो चौंकना स्वाभाविक ही था. गाने सुने तो उनकी इस नयी विधा के कायल हुए बिना नहीं रह सका. तभी तो कहा - हरफनमौला. लीजिये इस फिल्म का ये गीत आप भी सुनें -



उनका बचपन ग्वालियर में बीता, दिल्ली के एन एस डी से उत्तीर्ण होने के बाद ६ साल तक वो एक्ट वन से जुड़े रहे उसके बाद अस्मिता थियटर ग्रुप के सदस्य बन गए. यहाँ रंजित कपूर और अरविन्द गौड़ जैसे निर्देशकों के साथ उन्होंने काम किया. श्रीराम सेंटर के लिए उन्होंने पहला नाटक निर्देशित किया. मणि रत्नम की "दिल से" में पहली बार वो बड़े परदे पर नज़र आये. हालाँकि छोटे परदे के लिए वो "राजधानी" धारावाहिक में एक सशक्त भूमिका निभा चुके थे. राज कुमार संतोषी की "लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह" के संवाद लिखने के बाद पियूष भाई मुंबई शिफ्ट हो गए. २००३ में आई विशाल भारद्वाज की "मकबूल" में उनका किरदार यादगार रहा. "मात्त्रृभूमि", "१९७१", और "झूम बराबर झूम" में भी बतौर एक्टर उन्होंने अपनी छाप छोडी. "१९७१" के लिए उन्होंने स्क्रीन प्ले और "यहाँ" के लिए स्क्रीनप्ले और संवाद भी लिखे.

इस बीच पियूष भाई ने अपनी पहचान बनायीं, एक गीतकार के तौर पर भी. 'दिल पे मत ले यार" और "ब्लैक फ्राईडे" जैसी लीक से हटकर बनी फिल्मों के लिए उन्होंने उपयुक्त गीत लिखे तो "टशन" जैसी व्यवसायिक फिल्म के लिए चालू गीत भी खूब लिखे. माधुरी दीक्षित की वापसी वाली फिल्म "आजा नचले" के शीर्षक गीत को लिखकर बेबात के विवाद में भी फंस गए, पर मुंबई में अब उनके इस बहुआयामी प्रतिभा पर हर निर्माता निर्देशक की नज़र हो चुकी थी. अनुराग ने गुलाल में पियूष को अपनी कला का भरपूर जौहर दिखने का मौका दिया. और परिणाम - एक बहतरीन एल्बम जो कई मायनों में आम एल्बमों से से बहुत अलग है. पर यही "अलग" पन ही तो पियूष मिश्रा की खासियत है. सुनिए एक और गीत इसी फिल्म से -



"गुलाल" चुनाव का सामना करने जा रही आज की पीढी के लिए सही समय पर प्रर्दशित फिल्म है. मूल रूप से फिल्म गीतकार शायर "साहिर लुधियानवीं" को समर्पित है या यूँ कहें उनके मशहूर "ये दुनिया अगर मिल भी जाए..." गीत को समर्पित है. ये कहानी अनुराग ने तब बुनी थी जब उनके संघर्ष के दिन थे, उनकी फिल्म सेंसर में अटकी थी और कैरियर अधर में. निश्चित रूप से ये उनकी बेहतरीन फिल्मों में से एक है. देखिये किस खूबी से पियूष भाई ने इस गीत को समर्पित किया है फिल्म "प्यासा" के उस यादगार गीत के नाम -



बहुत कम फिल्मों में गीत संगीत इतना मुखर होकर आया है जैसा कि गुलाल में, वैसे जिस किसी ने भी पियूष भाई को उनके "नाटकों" में सुना है उनके लिए ये पियूष भाई के विशाल संग्रह का एक छोटा सा हिस्सा भर है, पर यकीनन जब बातें एक फिल्म के माध्यम से कही जाएँ तो उसका असर जबरदस्त होना ही है. यदि आप चालू संगीत से कुछ अलग सुनना पसंद करते हैं, और शुद्ध कविता से बहते गीत जो भीतर तक आपके भेद जाये, और ऐसी आवाजें जिसमें जोश की बहुतायत हो तो एल्बम "गुलाल" अवश्य सुनिए. हम आपको बताते चले कि इन गीतों को खुद पियूष भाई के साथ स्वानंद किरकिरे और राहुल राम ने आवाजें दी हैं. अनुराग कश्यप को भी सलाम है जिन्होंने पियूष की प्रतिभा को खुल कर बिखरने की आजादी दी. यदि ऐसे प्रयोग सफल हुए तो हम यकीनन भारतीय सिनेमा को एक नए आयाम पर विचरता पायेंगें. पियूष भाई की प्रतिभा को नमन करते हुए सुनिए इस फिल्म से मेरा सबसे पसंदीदा गीत. इसके शब्दों पर गौर कीजियेगा -





फेसबुक-श्रोता यहाँ टिप्पणी करें
अन्य पाठक नीचे के लिंक से टिप्पणी करें-

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

16 श्रोताओं का कहना है :

Vinay Prajapati 'Nazar' का कहना है कि -

waqai lajaawab sangeetkar hai piyush!

संजय बेंगाणी का कहना है कि -

पियुषजी के बारे में जानकारी के साथ सुनना यानी सोने में सुहागा.

Manish Kumar का कहना है कि -

पियूष की प्रतिभा का जवाब नहीं। बड़ी अच्छी जानकारी दी आपने उनके बारे में। पिछले दो तीन दिन से इसी फिल्म के गीतों को सुन रहे हैं। कल हमलोग घर में चकमक चकमक वाले गीत पर झूम रहे थे।
बतौर गीतकार और अभिनेता उनका काम मुझे अद्भुत लगा।

डॉ .अनुराग का कहना है कि -

शुक्र है अनुराग कश्यप जैसे लोग हिंदी सिनेमा को एक नयी दिशा में ले जा रहे है .अपनी मर्जी से काम करके ..

पंकज सुबीर का कहना है कि -

पियूष जी को मेरी ओर से बधाई दीजियेगा उनका फोन नंबर मेरे पास नहीं है अन्‍यथा मैं व्‍यक्तिगत रूप से भी बधाई देता । आपने जिस गाने को पंसद किया है वही मुझे भी पसंद आया । इसी प्रकार के गाने कुछ सालों पहले आई फिल्‍म लाल सलाम में भी थे । लताजी, गुलजार साहब और हृदयनाथ जी की त्रिवेणी ने कुछ अद्भुत गीत रचे थे उसमें । हो सके तो उसके पूरे गाने सुनवाइयेगा कभी । एक और आर्ट फिल्‍म्‍ कई बरस पहले आई थी एक पल उसमें भी गुलजार जी और लता जी ने ऐसे ही प्रयोग किये थे विशेषकर लताजी का गीत 'जाने क्‍या है जी डरता है, रो देने को दिल करता है, क्‍या होगा '' तो कई बार सुनने लायक है ।

कंचन सिंह चौहान का कहना है कि -

पियूष मिश्रा को पहली बार परसों गुलाल में ही देखा.....! ऐक्टिंग के मुरीद हुए हम जब नेट पर बैठे तो पता चला कि फिल्म का संगीत इन्होने ही दिया है...और आज आप से उनके विषय में इतनी सारी जानकारी पा कर अभिभूत हूँ...! ईश्वर ऐसी हस्तियाँ कभी कभी ही बनाता है...!

heads off to such personality

विश्व दीपक का कहना है कि -

पियुष भाई के गीत सुनकर हीं पता चलता है कि सही गीतकारी क्या होती है। गुलाल के गीतों की सबसे अलहदा बात यह है कि इसके आधे से ज्यादा गाने इस अंदाज में गाए गए हैं, जिस अंदाज में मंच से कविता पढी जाती है और जिस अंदाज में लोगों को सम्मोहित किया जाता है , लोगों में जोश भरा जाता है। अगर किसी ने फिल्म देखी हो (मैने कल हीं देखी है) तो फिल्म में "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" गाने के रूपांतरण को ज़रूर नोटिस किया होगा। बिस्मिल को संबोधित करते हुए वे आज के युवा पर गहरा व्यंग्य करते हैं। फिल्म में पियुष भाई जितने भी संवाद कहते हैं, सारे आज की स्थिति पर कटाक्ष है। और हाँ, उनकी अदाकारी के क्या कहने!!

यहाँ पर अनुराग कश्यप की भी तारीफ़ करनी होगी। अनुराग जिस तरह नए-नए प्रयोग कर रहे हैं, उससे उनसे काफी उम्मीदें बढ चुकी हैं। देव डी को उन्होंने म्युजिकल बना दिया (१८ गाने) तो गुलाल में एक नए संगीतकार को मौका दिया। इस फिल्म में "के के" और "पियुष भाई" को छोड़ कर सारे कलाकार नए हैं, फिर भी पूरी फिल्म में किसी भी कलाकार में अनुभव की कमी महसूस नहीं होती। सुना है कि अप्रैल या मई में अनुराग की "पाँच" भी रीलिज होने वाली है और यह भी सुना है कि अनुराग की यह सबसे raw फ़िल्म है। ्फिल्म इंडस्ट्री को ऎसे हीं दिग्दर्शकों की जरूरत है जो अपनी बात कहने में नहीं कतराता।

-विश्व दीपक

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -

मेरे संगणक पर कुछ सुनायी नहीं दे रहा. गुलाल जब भी मौका मिलेगा जरूर देखूँगा.

manu का कहना है कि -

शानदार लगे तीनो ही गीत,,,
एकदम अलग अलग अंदाज में,,,मजा आ गया,,,
पहला गीत सुनकर तो रावन द्वारा रचे शिव स्त्रोत की याद आ गई,,,,

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

फिल्म तो मैंने नहीं देखी, लेकिन इसके सभी गीत बहुत बढ़िया है। 'राणा जी' वाले गीत के माध्यम से दुनिया भर की हालत पर 'सटायर' किया गया है। मेरी जानकारी में हिन्दी फिल्मी गीतों में इस तरह का प्रयोग कभी नहीं हुआ। अनुराग कश्यप हिन्दी फिल्म को एक नई ऊँचाई देना चाह रहे हैं, और ज़रूर सफल होगे।

मैं जिस गीत का ज़िक्र कर रहा हूँ, उसकी कुछ पंक्तियाँ-

जैसे हरेक बात पे डेमिक्रेसी में लगने लग गयो बैन
जैसे दूरदेश के टावर में घुस जाये रे एरोप्लेन
जैसे सरेआम ईराक में जाकर जम गये अंकल सैम
जैसे बिना बात अफगानिस्ताँ का बज गयि भैया बैन

neeshoo का कहना है कि -

सजीव जी गीत के साथ आपने जानकारी को जिस तरह से संजोया है वो काबिले तारीफ है । फिल्म के गाने से ही प्रतिभा का आकलन करना कुछ कठिन नहीं । और भी कुछ ब्लागर ने गीतों को प्रस्तुत किया है पर " आवाज " पर सबसे अच्छे से गीत को सुना जा सकता है । धन्यवाद

दिलीप कवठेकर का कहना है कि -

सजीव जी, मैं हमेशा से इस उधेडबुन में रहता था कि ये गुणी कलाकार कौन है और उसका नाम क्या है?- जबसे १९७१ फ़िल्म में पाकिस्तानी सेना के अफ़सर का जानदार किरदार पियुस जी नें निभाया था.

आप की जनकारी में वह बात छूट गयी. ये कलाकार क्या हर फ़न मौला संस्कृति कर्मी है, अभिनय, गीत लेखन, स्क्रिप्ट लेखन, और अब संगीतकार !! वाह , वाह.

Deep Jagdeep Singh का कहना है कि -

वाह सजीव जी!!! वाह पीयूष से मिलवाने के लिए शुक्रिया, सचमुच लाजवाब हैं वो, हो सके तो सरफरोशी वाली कविता को भी आवाज पर प्रस्तुत करने की कोशिश करें।

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन का कहना है कि -

अनुराग, पीयूष और स्वानंद तो कुछ ख़ास ही हैं. गुलाल फिल्म भी काफी अलग सी ही दिख रही है. बहुत बढिया पोस्ट!

Anonymous का कहना है कि -

आज के इस दोर मे जहा गीत आधुनिक वद्यो के शोर मे खो जाता है, वही गुलाल के गीत लोक वाद्यो के मधिम स्वरो मे अच्छे शब्दो और मोहक तर्जो कि जगलिन्ग. पियुश जी को बधाई साथ हि आवाज़ टीम को भी बहुत बहुत बधाइ.

Anonymous का कहना है कि -

आज के इस दोर मे जहा गीत आधुनिक सन्गीत वाध्यो कि विभिन्न ध्वनीयो खो जाता है,वही गुलाल के गीत लोक वाध्यो के मद्दीम स्वरो मे शब्द जेसे" एक जूनुनी आवज के साथ प्रभावि शब्दो कि जगलीन्ग" . इतनी सुन्दर रचनाओ के लिये पियुश जी को बधाई साथ हि आवाज़ टीम को इतने अच्छे प्रस्तुतिकरन पर बधाई.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ