ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 11
'ओल्ड इस गोल्ड' की एक और सुरीली शाम ख़ास आपके नाम! हमें यकीन है आज का गीत आपके कानो में से होकर सीधे दिल में उतर जायेगा. आशा भोसले और ओ पी नय्यर के सुरीले संगम से निकला एक और अनमोल मोती है यह गीत. यह गीत है 1963 की फिल्म "फिर वोही दिल लाया हूँ" का. जॉय मुखेर्जी और आशा पारेख अभिनीत नसीर हुसैन की इस फिल्म ने 'बॉक्स ऑफिस' पर कामयाबी के झन्डे गाडे. और इस फिल्म के संगीत के तो क्या कहने! 50 के दशक के बाद 60 के दशक में भी ओ पी नय्यर के संगीत का जादू वैसे ही बरकरार रहा. नय्यर साहब ने इससे पहले नसीर हुसैन के लिए "तुमसा नहीं देखा" फिल्म में संगीत निर्देशन किया था सन 1957 में.
मजरूह सुल्तानपुरी ने बडे ही शायराना अंदाज़ में "फिर वोही दिल लाया हूँ" फिल्म के इस गाने को लिखा है. हर किसी के ज़िंदगी में ऐसा एक पल आता है जब दिल को लगता है कि जिसका बरसों से दिल को इंतज़ार था उसकी झलक शायद दिल को अब मिल गयी है. और दिल उसी की तरफ मानो खींचता चला जाता है, दुनिया जैसे एकदम से बदल जाती है. "खुद ढूँढ रही है शम्मा जिसे क्या बात है उस परवाने की", कितना खूबसूरत है यह अंदाज़-ए-बयान मजरूह साहब का. दोस्तों, उस सुनहरे दौर में ना केवल संगीत मधुर था बल्कि गीतों के बोल भी उतने ही खूबसूरत और असरदार हुआ करते थे. "अंदाज़ उसके आने का, चुपके से बहार आए जैसे, कहने को घड़ी भर साथ रहा पर उम्र गुज़ार आए जैसे". किसी के आने से दिल को जो खुशी मिली है उसका इससे बेहतर वर्णन भला और किन शब्दों में हो सकता था! मजरूह सुल्तनुपरी, ओ पी नय्यर और आशा भोंसले को सलाम करते हुए लीजिए सुनिए "फिर वोही दिल लाया हूँ" से दिल में उतर जानेवाला यह खूबसूरत नग्मा, आज के 'ओल्ड इस गोल्ड' के अंतर्गत.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. १९५६ में AVM के बैनर पे बनी थी ये हिट फिल्म.
२. गीता दत्त ने गाया इस गीत मदन मोहन के निर्देशन में.
३. मुखड़े में शब्द है - "बता दे".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
क्या बात है मनु, एक बार फिर शतक ठोंक दिया है आपने. फॉर्म वापसी की बधाई. उज्जवल कुमार जी आपका स्वागत है सही जवाब, नीलम जी आपको भी बधाई. राज जी पहली कोशिश थी चूक गए कोई बात नहीं...अगली बार सही.
प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


नए साल के जश्न के साथ साथ आज तीन हिंदी फिल्म जगत के सितारे अपना जन्मदिन मन रहे हैं.ये नाना पाटेकर,सोनाली बेंद्रे और गायिक कविता कृष्णमूर्ति.
नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म १९५१ में हुआ था.नाना पाटेकर का नाम उन अभिनेताओं की सूची में दर्ज है जिन्होंने अभिनय की अपनी विधा स्वयं बनायी.गंभीर और संवेदनशील अभिनेता नाना पाटेकर ने यूं तो अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत १९७८ में गमन से की थी,पर अंकुश में व्यवस्था से जूझते युवक की भूमिका ने उन्हें दर्शकों के बीच व्यापक पहचान दिलायी.समानांतर फिल्मों में दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित करने वाले नाना पाटेकर ने धीरे-धीरे मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया.क्रांतिवीर और तिरंगा जैसी फिल्मों में केंद्रीय भूमिका निभाकर उन्होंने समकालीन अभिनेताओं को चुनौती दी.फिल्म क्रांतिवीर के लिए उन्हें १९९५ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरष्कार मिला था.इस पुरष्कार को उन्होंने तीन बार प्राप्त करा.पहली बार फिल्म परिंदा के लिए १९९० में सपोर्टिंग एक्टर का और फिर १९९७ में अग्निसाक्षी फिल्म के लिए १९९७ में सपोर्टिंग एक्टर का.४ बार उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला.एक एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सपोर्टिंग एक्टर का और दो बार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का.
सोनाली बेंद्रे का जन्म १९७५ में हुआ.सोनाली बेंद्रे ने अपने करियर की शुरूआत १९९४ से की.दुबली-पतली और सुंदर चेहरे वाली सोनाली ज्यादातर फिल्मों में ग्लैमर गर्ल के रूप में नजर आई. प्रतिभाशाली होने के बावजूद सोनाली को बॉलीवुड में ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए.सोनाली आमिर और शाहरूख खान जैसे सितारों की नायिका भी बनीं.उन्हें ११९४ में श्रेष्ठ नये कलाकार का फिल्मफेअर अवॉर्ड मिला.
सन १९५८ में जन्मी कविता कृष्णमूर्ति ने शुरुआत करी लता मंगेशकर के गानों को डब करके.हिंदी गानों को अपनी आवाज से उन्होंने एक नयी पहचान दी. उन्हें ४ बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी गायिका का फिल्मफेयर पुरष्कार मिल चूका है. २००५ में उन्हें भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान मिला.
इन तीनो को इन पर फिल्माए और गाये दस गानों के माध्यम से रेडियो प्लेबैक इंडिया के ओर से जन्मदिन की शुभकामनायें.








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6 श्रोताओं का कहना है :
ai dil mujhe "bata de" tu kispe aa gaya hai ,wo kaun hai jo aakar khwaabo me chaa gaya hai .
इतना तो बता दे कोई हमें क्या प्यार इसी को कहते हैं,,
बार बार यही ध्यान आ रहा था,,,,,मगर ये सुरैया का है,,,
अब जाकर याद आया तो नीलम जी का सिक्सर लग चुका था,,
एय दिल मुझे बता दे,,,,,,,,,,,,,,,एकदम सही,,,,,
सजीव जी, का धन्यवाद दोबारा से , मुझे एक ऐसा गाना दिखाने का,,जिसे मैंने करीब 23 -24 साल पहले एक बार ही देखा था,,,और कई साल से इसके लिए परेशान था,,,
आज उतने समय पहले मिले इस गीत के साथ गए वक्त में लौटना कैसा लगा,,,,
बयान करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे,,,,,,
आपने जिस गाने का जिक्र किया है वो ,अशोक कुमार -किशोर कुमार अभिनीत फ़िल्म 'भाई-भाई 'फ़िल्म का है ।
इस फ़िल्म में संगीत -मदन मोहन का है और गीत के बोल राजेंद्र कृष्ण ने लेखे हैं ।
गीत है -
ऐ दिल मुझे बता दे
तू किस पे आ गया है
ये कौन है जो आ कर खाबों पे छ गया है ।
क्या बात है प्यारे से गाने की ः)
आशा का जादू चला करता था उन दिनों. आशा के पहले गीता राय (दत्त) ही सिरमौर रहीं. "ए दिल मुझे बता दे तू किस पे आ गया है" फिल्म भाई भाई का है. संगीत मदन मोहन का है. पुराने गीतों में गुलाम मोहमद द्वारा रचित गीत भी बहुत मधुर हुआ करते थे. आभार.
पुराने गीत याद दिलाने के लिए धन्यवाद. ये सभी छंद बद्ध हैं. क्या छंद हीन गीत इतना मधुर हो सकता है? रचनाकार सोचें?
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