अभी कुछ दिनों पहले हमने आपको सुनवाया था शिशिर पारखी की रेशमी आवाज़ में जिगर मुरादाबादी का कलाम. जैसा कि हमने आपको बताया था कि शिशिर इन दिनों अपने अफ्रीका दौरे पर हैं जहाँ वो अपनी ग़ज़लों से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर रहे हैं. पर वहां भी वो प्रतिदिन आवाज़ को पढना नहीं भूलते. बीते सप्ताह नारोबी (दक्षिण अफ्रीका) में हुए एक कंसर्ट में उन्होंने जगजीत सिंह साहब की एक खूबसूरत ग़ज़ल को अपनी आवाज़ दी जिसकी रिकॉर्डिंग आज हम आपके लिए लेकर आये हैं. जगजीत की ये ग़ज़ल अपने समय में बेहद मशहूर हुई थी और आज भी इसे सुनकर मन मचल उठता है. कुछ शेर तो इस ग़ज़ल में वाकई जोरदार हैं. बानगी देखिये -
उसकी आँखों से कैसे छलकने लगा,
मेरे होंठों पे जो माज़रा रह गया....
और
ऐसे बिछडे सभी रात के मोड़ पर,
आखिरी हमसफ़र रास्ता रह गया...
गौरतलब है कि अभी पिछले सप्ताह ही आवाज़ पर अनीता कुमार ने जगजीत सिंह पर दो विशेष आलेख प्रस्तुत किये थे, आज सुनिए शिशिर पारखी की आवाज़ में मूल रूप से जगजीत की गाई ये ग़ज़ल -
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2 श्रोताओं का कहना है :
शिशिर पारखी ने लिया, सचमुच ही जग जीत.
गा गज़ले जगजीत की, सत्य बना मन-मीत
धन्यवाद आवाज का, प्रस्तुति है अनमोल.
रस गागर सागर सदृश 'सलिल' रस भरे बोल.
शिशिर जी,
आपकी आवाज़ में तो ज़ादू है। अगर आप शुरू में कुछ नहीं बोलते तो मैं तो समझता कि जगजीत ही गा रहे हैं। बहुत खूब!
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