मीना कुमारी ने 'हिन्दी सिनेमा' जगत में जिस मुकाम को हासिल किया वो आज भी अस्पर्शनीय है ।वे जितनी उच्चकोटि की अदाकारा थीं उतनी ही उच्चकोटि की शायरा भी । अपने दिली जज्बात को उन्होंने जिस तरह कलमबंद किया उन्हें पढ़ कर ऐसा लगता है कि मानो कोई नसों में चुपके -चुपके हजारों सुईयाँ चुभो रहा हो. गम के रिश्तों को उन्होंने जो जज्बाती शक्ल अपनी शायरी में दी, वह बहुत कम कलमकारों के बूते की बात होती है. गम का ये दामन शायद 'अल्लाह ताला' की वदीयत थी जैसे। तभी तो कहा उन्होंने -
कहाँ अब मैं इस गम से घबरा के जाऊँ
कि यह ग़म तुम्हारी वदीयत है मुझको
पैदा होते ही अब्बा अली बख्श ने रुपये के तंगी और पहले से दो बेटियों के बोझ से घबरा कर इन्हे एक मुस्लिम अनाथ आश्रम में छोड़ आए. अम्मी के काफी रोने -धोने पर वे इन्हे वापस ले आए ।परिवार हो या वैवाहिक जीवन मीना जो को तन्हाईयाँ हीं मिली
चाँद तन्हा है,आस्मां तन्हा
दिल मिला है कहाँ -कहाँ तन्हां
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थात्थारता रहा धुआं तन्हां
जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हां है और जां तन्हां
हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहाँ तन्हां
जलती -बुझती -सी रौशनी के परे
सिमटा -सिमटा -सा एक मकां तन्हां
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये मकां तन्हा
और जाते जाते सचमुच सरे जहाँ को तन्हां कर गयीं ।जब जिन्दा रहीं सरापा दिल की तरह जिन्दा रहीं ।दर्द चुनते रहीं संजोती रहीं और कहती रहीं -
टुकडे -टुकडे दिन बिता, धज्जी -धज्जी रात मिली
जितना -जितना आँचल था, उतनी हीं सौगात मिली
जब चाह दिल को समझे, हंसने की आवाज़ सुनी
जैसा कोई कहता हो, ले फ़िर तुझको मात मिली
होंठों तक आते -आते, जाने कितने रूप भरे
जलती -बुझती आंखों में, सदा-सी जो बात मिली
वह कोई साधारण अभिनेत्री नहीं थी, उनके जीवन की त्रासदी, पीडा, और वो रहस्य जो उनकी शायरी में अक्सर झाँका करता था, वो उन सभी किरदारों में जो उन्होंने निभाया बाखूबी झलकता रहा. फिल्म "साहब बीबी और गुलाम" में छोटी बहु के किरदार को भला कौन भूल सकता है. "न जाओ सैया छुडाके बैयाँ..." गाती उस नायिका की छवि कभी जेहन से उतरती ही नहीं. १९६२ में मीना कुमारी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए तीन नामांकन मिले एक साथ. "साहब बीबी और गुलाम", मैं चुप रहूंगी" और "आरती". यानी कि मीना कुमारी का मुकाबला सिर्फ मीना कुमारी ही कर सकी. सुंदर चाँद सा नूरानी चेहरा और उस पर आवाज़ में ऐसा मादक दर्द, सचमुच एक दुर्लभ उपलब्धि का नाम था मीना कुमारी. इन्हें ट्रेजेडी क्वीन यानी दर्द की देवी जैसे खिताब दिए गए. पर यदि उनके सपूर्ण अभिनय संसार की पड़ताल करें तो इस तरह की "छवि बंदी" उनके सिनेमाई व्यक्तित्व के साथ नाइंसाफी ही होगी.
एक बार गुलज़ार साहब ने उनको एक नज़्म दिया था. लिखा था :
शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना
बुनती है रेशम के धागे
लम्हा -लम्हा खोल रही है
पत्ता -पत्ता बीन रही है
एक एक सांस बजाकर सुनती है सौदायन
एक -एक सांस को खोल कर आपने तन पर लिपटाती जाती है
अपने ही तागों की कैदी
रेशम की यह शायरा एक दिन
अपने ही तागों में घुट कर मर जायेगी
पढ़ कर मीना जी हंस पड़ी । कहने लगी -"जानते हो न, वे तागे क्या हैं ?उन्हें प्यार कहते हैं । मुझे तो प्यार से प्यार है । प्यार के एहसास से प्यार है, प्यार के नाम से प्यार है । इतना प्यार कि कोई अपने तन से लिपट कर मर सके तो और क्या चाहिए?" महजबीं से मीना कुमारी बनने तक (निर्देशक विजय भट्ट ने उन्हें ये नाम दिया), और मीना कुमारी से मंजू (ये नामकरण कमाल अमरोही ने उनसे निकाह के बाद किया ) तक उनका व्यक्तिगत जीवन भी हजारों रंग समेटे एक ग़ज़ल की मानिंद ही रहा. "बैजू बावरा","परिणीता", "एक ही रास्ता", 'शारदा". "मिस मेरी", "चार दिल चार राहें", "दिल अपना और प्रीत पराई", "आरती", "भाभी की चूडियाँ", "मैं चुप रहूंगी", "साहब बीबी और गुलाम", "दिल एक मंदिर", "चित्रलेखा", "काजल", "फूल और पत्थर", "मँझली दीदी", 'मेरे अपने", "पाकीजा" जैसी फिल्में उनकी "लम्बी दर्द भरी कविता" सरीखे जीवन का एक विस्तार भर है जिसका एक सिरा उनकी कविताओं पर आके रुकता है -
थका थका सा बदन,
आह! रूह बोझिल बोझिल,
कहाँ पे हाथ से,
कुछ छूट गया याद नहीं....
३१ मार्च १९७२ को उनका निधन हुआ. आज उनकी ३७ वीं पुण्यतिथि पर उन्हें 'आवाज़' का सलाम. सुनते हैं उन्ही की आवाज़ में उन्हीं का कलाम. जिसे खय्याम साहब ने स्वरबद्ध किया है -
चाँद तन्हा...
मेरा माज़ी
ये नूर किसका है...
प्रस्तुति - उज्जवल कुमार
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6 श्रोताओं का कहना है :
वाह वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मीना जी की आवाज़ सुनकर आनन्द आगया। युग्म को इतनी बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई।
मेरी नजर में,,,,,
नैन नक्श,,,भीगी आवाज,,शानदार अदाकारी लिए,,
धोखे ,,,और गम खाए हुए,,
दिल के सबसे करीब रहने वाली ,,,सबसे बेहतरीन अदाकारा,,,,
मीना कुमारी,,,ही है,,
सलाम,,,!!
अभी कुछ दिनों पहले एक पत्रिका देखी जिसमें मीना कुमारी के जीवन के बारे ३ पन्ने लिखे हुए थे। पढ़ता चला गया था और तब से मीना कुमारी की शायरी मुझे पसंद आने लगी। सोचा कि सजीव जी से इस बारे में बात करूँगा कि आवाज़ पर उनका लेख होना चाहिये।
उज्ज्वल जी, यकीन मानिये मजा आ गया। मैं चाहता हूँ कि आप इस शायरा की ज़िन्दगी से जुड़ी कुछ और बातें बतायें और शायरी भी।
दिल सा जब साथी पाया,
बेचैनी भी वो साथ ले आया।
मीना कुमारी को मेरा सलाम!!!
तपन जी,
शायद मीना कुमारी की एक ही रिकार्डिंग हुए है,,,
आई राइट आई रीसाईट,,,
खूबसूरत आवाज में एक से एक नज्में हैं,,,उसमें,,,
ऐसी पुरकशिश आवाज,,,वाह,,,,
यदि मिल सके तो वो सुनें,,,,आमतौर पर कम ही नज़र आती है,,
नहीं तो एक पुरानी कैसेट मेरे पास पड़ी है,,
नहीं,
वह नहीं थी इस ज़मीन के लिए.
वह तो कोई कशिश थी,
हर आज से दूर,
हर कल के पास,
हर मंजिल
उसे देती रही दगा,
और वह करती रही
हर दगे पर एतबार.
दगे थक गए
उससे फरेब करते-करते.
पर वह न थकी
फरेब खाते-खाते.
कौन जाने
वह आज भी कहीं छिपी हो
शबनम की किसी बूँद में,
आफ़ताब की चमक में,
माहताब की दमक में.
न भी हो तो
मन नहीं मानता कि
वह नहीं है.
वह नहीं हो तो
तन्हाई कैसे है?
वह नहीं है तो
रुसवाई कैसे है?
वह नहीं है तो
अदाकारी कैसे है?
वह नहीं है तो
आँसू कैसे हैं?
वह तो यहीं है-
मुझमें...
तुममें..
इसमें...
उसमें...
सबमें...
मानो या न मानो
पर वह है.
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chand tanha..aasmaan tanha..
chhod jayenge ye makaa tanha..
sunke aankhon mein aansu utar aaye..
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